क्या देशभक्त (पैट्रियॉट) और राष्ट्रवादी (नेशनलिस्ट) एक ही हैं? नहीं। देशभक्त या वतनपरस्त वो है जो अपने देश को प्यार करता है, हर तरह से उसके साथ रहता है, उसकी जीवन शैली का समर्थन करता हो और उसके लिए लड़ता-मिटता है। राष्ट्रवादी वह है जो देश के प्रति वफादार और समिर्पत हो, उसे बाकी सब चीजों से ऊपर मानता हो। उसके लिए राष्ट्र बाकी सभी चीजों से ऊपर होता है और उसका मुख्य जोर देश की संस्कृति और रुचियों पर होता है- जिंदगी जीने का राष्ट्रीय तरीका। दूसरे राष्ट्र या समूहों के विरोध की कीमत पर।
मैं देशभक्त माना जाऊं, यह मेरे लिए बहुत आसान है। क्या मुझे अपने देश से प्यार है? शायद है। क्या मुझे अपने देश और देशवासियों की उपलब्धि पर दिल से खुशी होती है? होती है। क्या मैं अपने देश की सुरक्षा के लिए हथियार उठा सकता हूं? हां, जरूरी हुआ तो जरूर उठाउंगा। मैं किसी देशभक्त को कैसे बयां करूंगा? आसान शब्दों में कहें तो जो राष्ट्रीय व आर्थिक हितों और सुरक्षा से समझौता नहीं करे। देश व देशवासियों के हित में काम करे। मैं नहीं मानता कि देशभक्ति के मामले में कोई प्रतिस्पर्द्धी पैमाना होगा।
राष्ट्रवादी होने में मुझे समस्या आती है। क्या भारतीय के रूप में मेरा कोई एक खास रुझान होना चाहिए? क्या मेरी कोई खास संस्कृति होनी चाहिए जो भारतीय के रूप में मुझे परिभाषित करे? यह जरूर है कि भारतीय होने की पहचान कुछ खास बातें हैं- पारिवारिक मूल्य, परंपरा, दायित्व, जिम्मेदारी का भाव, हमारे संगीत, नृत्य, स्थापत्य कला, पेंटिंग और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को लेकर हमारी पसंद, खास तरह के मुहावरे, भाषाओं के जरिए की जाने वाली अभिव्यक्ति, क्षेत्र, धर्म आदि। पर क्या यह सब मुझे राष्ट्रवादी बनाते हैं?
मैं खुद को देशभक्त मानता हूं। तिरंगा लेकर घूमने वाला नहीं, बल्कि तिरंगे का सम्मान करने वालों की तरह देशभक्त। पर मैं भारतीय किस रूप में हूं? सबसे आसान, लेकिन सशक्त रूप में। एक ऐसे नागरिक के रूप में जो एक ही बात में यकीन रखता है कि मुझे उसी रूप में पहचाना जाए जो मैं हूं और उसी रूप में मुझे संविधान में मिली हर तरह की आजादी दी जाए। लेकिन इसके साथ ही मुझे अपने अधिकार और कर्तव्य का भी बोध रहे।
राष्ट्रवादियों की परिभाषाओं में मैं अपने को फिट नहीं पाता हूं। जब अलग-अलग चलन और संस्कृतियों की बात की जाती है, जब धर्म की भूमिका सबसे ज्यादा प्रभावी हो जाती है, तो मैं अपना रुख मोड़ लेता हूं। जब लोग इसे राष्ट्रवाद के रूप में परिभाषित करते हैं तो मुझे इस बात को लेकर बड़ी समस्या हो जाती है कि भारतीय होने के संकेतों के रूप में हिंदुत्व को परिभाषित किया जा रहा है।
एक देशभक्त के रूप में मेरे देश की सुरक्षा और अखंडता के साथ-साथ सभी लोगों की जान-माल की हिफाजत करना बेहद अहम है। उतना ही अहम यह भी है कि अलग-अलग राष्ट्रवाद की मान्यता की मांग का विरोध किया जाए। इस बात के लिए लड़ा जाए कि हर धर्म की मान्यताओं को देश में जगह मिले। लेकिन, यहां यह भी स्पष्ट कर देना जरूरी है कि अगर किसी भी रूप में इसका इस्तेमाल मानव जीवन के मूल्यों, व्यक्ति की स्वतंत्रता व समानता को नुकसान पहुंचाने या गंगा-जमनी तहजीब को बढ़ावा देने के बजाय समाज में एक विचार-सिद्धांत-धर्म को फैलाने के लिए किया जाए तो इसे मानवता के विरुद्ध जंग मानना चाहिए। मैं ऐसे सभी सिद्धांतों को खारिज करता हूं।
मैं भारत माता को सलाम करूंगा, लेकिन देश के प्रतीक के रूप में। देवी मां के रूप में नहीं। जैसा कई मुसलमान कहते हैं जन्मभूमि के प्रति वफादारी की बात कुरान में ही कही गई है। तो मुझे किसी भी धार्मिक जलसे में जाने से परहेज नहीं है। पर मैं इस बात को कभी नहीं मानूंगा कि धर्म को देश चलाने-संभालने का आधार माना जाए। मुझे राष्ट्रवादी नहीं बनना। मैं देशभक्त हूं। देशभक्त ही रहूंगा।
(लेखक पूर्व कांग्रेसी सांसद हैं)