भारत और पाकिस्तान के बीच तीखे और उकसाने वाले बयानों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। इधर कुछ समय से पाकिस्तान जिस तरह संघर्ष विराम का उल्लंघन कर और पहले कश्मीर मुद्दा हल करने को तूल दे रहा है, उसने भारतीय सेना के अधिकारियों और सरकार में जिम्मेदार पदों का निर्वाह कर रहे लोगों को भी तल्ख बयान देने पर मजबूर किया है।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख राहील शरीफ ने कश्मीर को बंटवारे का अधूरा एजेंडा बताते हुए चेतावनी दी कि अगर ‘दुश्मन’ कोई छोटी या बड़ी हरकत करता है तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत के लिए अब यह सोचने की जरूरत है कि पाक अधिकृत कश्मीर को कैसे वापस लिया जाए।
पिछले हफ्ते भारतीय सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने भी कहा था कि भारत हर छोटे या बड़े युद्ध के लिए तैयार है। उधर पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने चेतावनी दी थी कि युद्ध की स्थिति में भारत को सन पैंसठ जैसा सबक सिखाया जाएगा। यह वाक्युद्ध ऐसे माहौल में चल रहा है जब सीमा पर गोलीबारी रोकने को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत के प्रयास हो रहे हैं।
भारत के सीमा सुरक्षा बल और पाक रेंजर्स के अधिकारियों के बीच इस मसले पर बातचीत होने वाली है। उफा में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच भी शांति वार्ता को लेकर सहमति बनी थी, पर पाकिस्तान के अड़ियल रवैए के चलते वह दम तोड़ गई। इस तरह तनातनी का माहौल कायम करके दोनों देशों को कुछ हासिल नहीं हो सकता।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का रुख दहशतगर्दी खत्म करने में भारत के सहयोग का रहता है, पर वतन लौटते ही उसके नेता और अधिकारी बिल्कुल उलट राग अलापना शुरू कर देते हैं। पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और भारत के खिलाफ उसके आतंकवादी संगठनों के इस्तेमाल से जुड़े अनेक तथ्य उजागर हो चुके हैं, पर इन्हें लेकर वह कभी गंभीर नजर नहीं आया। जबकि आतंकवाद खुद उसके लिए भी अमन और तरक्की के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है।
वह कश्मीर मुद्दे को ऊपर रख कर हर बार युद्ध की-सी स्थिति का भय बनाए रखना चाहता है। पिछले महीने दोनों देशों के बीच सुरक्षा सलाहकारों की बैठक न हो पाने के बाद उसने कहा कि भारत यह न भूले कि वह भी परमाणु अस्त्र संपन्न देश है। ऐसे तनातनी वाले बयानों से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अच्छे संकेत नहीं जाएंगे।
अमेरिकी मदद के मोह में पाकिस्तानी सेना भले भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते बना कर अपने कुछ स्वार्थों की सिद्धि कर ले, पर देश की तरक्की के रास्ते खोल पाना उसके लिए मुश्किल बना रहेगा। भारत भी युद्ध की भाषा बोल कर भले अपनी खीज कुछ मिटा ले, पर उसे कोई लाभ नहीं मिलने वाला। स्थितियां बिगड़ेंगी ही।
फिलहाल भारत को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने की फिक्र है, उसमें कोई भी युद्ध रोड़े अटका सकता है। पाकिस्तानी सेना युद्ध की भाषा बोल कर ही अपनी अहमियत साबित करती रही है, मगर राजनीतिक स्तर पर भारत से इस मामले में संयम की अपेक्षा की जाती है।
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