Bihar Voter List: नाथनगर की तंग गलियों में, जहां बांस की टोकरियां बुनने वाले परिवार दिन-रात मेहनत करते हैं, वहां रहता है सुरेंद्र। उसकी जिंदगी बस एक राशन कार्ड और चुनावी वोट के इर्द-गिर्द घूमती है। कभी-कभी उसका नाम राशन कार्ड से गायब हो जाता है, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे मिटा दे। “इलेक्शन में नाम आता है,” वह कहता है, “मेरा जो उसको वोट ऐसे किए।” लेकिन 10 साल पहले से उसका नाम वोटर लिस्ट से हट गया। पहले वह चुनाव में वोट देता था, अब नाम ही नहीं आता। फिर भी, वह कहता है, “वोट तो मोदी जी को देंगे, चाहे कितना भी नोट दे दें, क्योंकि उन्होंने हिंदू की इज्जत बचाई।” राशन मिलता है, हां, सिर्फ राशन और कुछ नहीं। लेकिन वो राशन भी क्या? सुरेंद्र की पत्नी करो देवी शिकायत करती है, “कमाते हैं तो पेट नहीं भरता, ऊपर से राशन काट देते हैं। एक किलो चावल बचा तो क्या खाएंगे? तीन बेटे हैं, दो दिन भी नहीं चलता।” तीन परिवारों में कितना बांटें? महीने में तीन किलो चावल, एक किलो से महीना कैसे चले? चावल भी कभी कुत्ते वाला, कभी मसूरी वाला – कभी अच्छा नहीं मिलता, माल-जाल तो दूर की बात। यहां मतदाताता कहते हैं मोदी जी के राज में सब महंगा हो गया। राशन महंगा, 20 रुपये किलो चावल, 50 किलो आलू, 60 किलो प्याज। कमाई बढ़ी नहीं, हरज बढ़ गया। सुरेंद्र सोचता है, “मोदी जी ने राशन को एकदम महंगा कर दिया।” चुनाव आ रहा है, वोट की मजबूरी है, लेकिन राशन की रोटी टूट रही है। क्या वोट से बदलाव आएगा, या फिर वही पुरानी कहानी चलेगी?