भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India : SBI) ने विभिन्न धड़ों से अपनी आलोचना के बाद गर्भवती महिलाओं की भर्ती से जुड़े एक सुर्कलर को ठंडे बस्ते में डालने का फैसला लिया। दरअसल, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्जदाता ने हाल में गर्भवती महिला कैंडिडेट्स के लिए तय नियमों के साथ ‘बैंक में भर्ती से जुड़े फिटनेस मानदंड’ की समीक्षा की थी। इस रिव्यू के बाद जारी नए नियमों के तहत तीन महीने से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को ‘अस्थाई तौर पर अयोग्य’ माने जाने की बात कही गई थी। साथ ही गर्भवती महिलाएं प्रसव के चार महीने के भीतर ही नौकरी शुरू कर सकती हैं।

एसबीआई ने नई भर्तियों या प्रमोटेड (पदोन्नत) लोगों के लिए अपने ताजा मेडिकल फिटनेस दिशा-निर्देशों में बताया था कि तीन महीने के समय से कम गर्भवती महिला कैंडिडेट्स को ‘फिट’ माना जाएगा। बैंक की ओर से 31 दिसंबर, 2021 को जारी फिटनेस से जुड़े मानकों में कहा गया था कि गर्भावस्था के तीन महीने से ज्यादा होने पर महिला कैंडिडेट को अस्थाई तौर पर अयोग्य करार दिया जाएगा। ऐसे में उन्हें बच्चे के जन्म के बाद चार महीने के अंदर शामिल होने की मंजूरी दी जा सकती है।

एसबीआई के इस प्रावधान को श्रमिक संगठनों और दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) समेत समाज के कई तबकों ने महिला-विरोधी करार दिया था। साथ ही इसे तत्काल निरस्त करने की मांग उठाई थी। विवाद बढ़ने पर बैंक ने जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इन कैंडिडेट्स की भर्ती से जुड़े संशोधित दिशा-निर्देशों को स्थगित करने का निर्णय लिया।

बकौल बैंक, “गर्भवती महिलाओं की भर्ती संबंधी पुराने नियम ही प्रभावी होंगे।” एसबीआई ने इसके साथ ही साफ किया कि उसने कहा कि भर्ती से जुड़े मानकों में बदलाव के पीछे उसका मकसद अस्पष्ट या बहुत पुराने बिंदुओं पर स्थिति साफ करने का था।

वैसे, एसबीआई के कदम की बैंक स्टाफ और अखिल भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एम्प्लॉइज एसोसिएशन (All India State Bank Of India Employees’ Association) सहित कुछ संगठनों ने आलोचना की थी। अखिल भारतीय स्टेट बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव के एस कृष्णा ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया- यूनियन ने एसबीआई प्रबंधन को पत्र लिखकर इन दिशा-निर्देशों को वापस लेने का आग्रह किया है। बैंक की ओर से प्रस्तावित संशोधन मौलिक रूप से नारीत्व के खिलाफ है। प्रस्तावित संशोधन असंवैधानिक होगा, क्योंकि यह गर्भावस्था को एक बीमारी/विकलांगता के रूप में मानते हुए महिलाओं के साथ भेदभाव करता है।

इस बीच, भाकपा (CPI) के राज्यसभा सदस्य बिनॉय विश्वम ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इस बाबत चिट्ठी लिखी। उन्होंने इस खत के जरिए गर्भवती महिलाओं की भर्ती के लिए दिशा-निर्देशों से जुड़े एसबीआई के मेडिकल फिटनेस सर्कुलर को फौरन वापस लेने की मांग की थी। साथ ही कहा है, “यह महिलाओं के अधिकारों को कमजोर करता है।”

इससे पहले, छह महीने तक की गर्भावस्था वाली महिला कैंडिडेट्स को कई शर्तों के तहत बैंक में शामिल होने की अनुमति थी। इन शर्तों में एक विशेषज्ञ स्त्री रोग विशेषज्ञ से सर्टिफिकेट लेकर पेश करना शामिल है कि उस स्तर पर बैंक की नौकरी लेने से उसकी गर्भावस्था या भ्रूण के सामान्य विकास में किसी तरह हस्तक्षेप की आशंका नहीं है या उसके गर्भपात या फिर उसकी तबीयत पर असर पड़ने की आशंका नहीं है।