भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा है कि राकेश टिकैत फंडिंग के ऊपर काम करते हैं। कांग्रेस की फंडिंग से ये आंदोलन चल रहा है। कानून वापस ले लिए गए हैं फिर भी ये बॉर्डर खाली नहीं करेंगे। ये ऐसे नहीं बलपूर्वक हटेंगे। उधर, नेशनल कांफ्रेंस के सर्वेसर्वा फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि जैसे नए कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने बलिदान किया, उसी तरह अपने राज्य और विशेष दर्जे को बहाल करने के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी बलिदान करना पड़ सकता है।
मोदी सरकार ने संसद के शीत कालीन सत्र में किसानों से जुड़े 3 कानून वापस ले लिए हैं। लेकिन किसानों ने अभी तक आंदोलन वापस लेने की बात नहीं की है। किसान नेता एमएसपी और 7सौ से ज्यादा किसानों की मौत पर सरकार से जवाब मांग रहे हैं। उनका कहना है कि पहले सरकार उनकी बातों को माने फिर वो फैसला करेंगे कि आंदोलन कब और कैसे वापस लेना है। हालांकि, सरकार से वार्ता के लिए शनिवार को 5 सदस्यीय टीम के ऐलान के बाद उम्मीद बंधी है कि आंदोलन अब खत्म हो सकता है। सरकार भी अपने तेवर छोड़कर झुक रही है। संसद के चालू शीत सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी विधेयक को पारित किया गया।
सोशल मीडिया पर भानू को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। अभिषेक ने लिखा- बड़ा दुःख हो रहा कि कानून वापस हो गए। सबसे पहले आप ही थे जो भागे थे। अरुण ने तल्ख तेवरों में लिखा- और तू किसकी फंडिंग पे काम कर रहा है। कानून वापसी ही किसानों का मुद्दा था क्या। Msp का क्या हुआ। महंगे डीजल का क्या हुआ। 2022 तक किसान की आमदनी दुगनी करनी थी उसका क्या हुआ। आज किसान लाइन में लगा हुआ खाद के लिए उसकी आपूर्ति क्यों नहीं हो रही।
उधर, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि 11 महीने किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया। 700 से अधिक किसान मारे गए। उसके बाद केंद्र को तीन कृषि बिलों को रद्द करना पड़ा जब किसानों ने बलिदान दिया। हमें अपने अधिकार वापस पाने के लिए वैसा बलिदान भी करना पड़ सकता है।
अब्दुल्ला ने कहा- यह याद रखें, हमने अनुच्छेद 370, 35-ए और राज्य का दर्जा वापस पाने का वादा किया है। हम कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि नेकां हालांकि भाईचारे के खिलाफ नहीं है और हिंसा का समर्थन नहीं करती है। केंद्र ने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था और पांच अगस्त, 2019 को इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था।