मशहूर शायर एवं गीतकार साहिर लुधियानवी किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उन्होंने हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक नगमे लिखे। साहिर की नज्में कई फिल्मों में गुनगुनाई गई, जो आज भी लोगों के जेहन में हैं। 1971 में साहिर लुधियानवी को पद्मश्री से नवाजा गया। साहिर लुधियानवी का जन्म लुधियाना में हुआ था। उनका असली नाम अब्दुल हई था। उन्होंने साहिर नाम खुद रखा था जिसका मतलब होता है जादूगर और चूंकि वह लुधियाना के रहने वाले थे इसलिए लुधियानवी नाम रखा। इस तरह उनका नाम साहिर लुधियानवी हो गया। साहिर के पिता एक धनी व्यक्तिथे, लेकिन उनके जीवन में माता-पिता दोनों का प्यार नहीं लिखा था। माता-पिता के अलगाव के बाद वो अपनी मां के साथ रहने लगे। मां के जीवन के दुख और संघर्ष ने साहिर के जीवन पर एक गहरी छाप छोड़ी। उनकी पढ़ाई-लिखाई लुधियाना में ही हुई। स्कूल की पढ़ाई लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से और आगे की पढ़ाई 1939 में गवर्नमेंट कॉलेज से हुई।
कॉलेज और मोहब्बत
साहिर लुधियानवी ने कॉलेज के दिनों में ही अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया था। कॉलेज में उनकी दोस्ती अमृता प्रीतम से हुई। अपने शेरों से दिल जीतने वाले साहिर लुधियानवी ने अमृता के दिल में वो जगह बनाई जिसे फिर कभी कोई और नहीं ले सका। अमृता प्रीतम का नाम साहित्य के क्षेत्र में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। साहिर के लिए उनकी बेइंतहां मोहब्बत जगजाहिर है। लेकिन उनका प्रेम असफल रहा। अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया क्योंकि साहिर मुसलिम थे। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। साहिर लुधियनावी आजीवन अविवाहित रहे।
शायरी की पहली किताब
कॉलेज छोड़ने के बाद साहिर लाहौर आ गए। 1943 में उनकी शायरी की पहली किताब ‘तल्खियां’ प्रकाशित हुई। इस किताब से वे बहुत मशहूर हुए। 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र ‘अदब-ए-लतीफ’ और ‘शाहकार’ के संपादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका ‘सवेरा’ के भी संपादक बने और इस पत्रिका में उनकी एक रचना को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया। इसके बाद 1949 में वे दिल्ली आ गए। दिल्ली में कुछ दिन गुजारने के बाद मुंबई आ गए, जहां वे उर्दू पत्रिका ‘शाहराह’ और ‘प्रीतलड़ी’ के संपादक बने।
फिल्मी गीतों का सफर
1949 में साहिर लुधियानवी ने फिल्म ‘आजादी की राह’ के लिए पहली बार गीत लिखें। हालांकि उन्हें फिल्म ‘नौजवान’, जिसके संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे, के लिए लिखे गीतों से लोकप्रियता मिली। बाद में साहिर ने कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। इनमें ‘हमराज’, ‘वक्त’, ‘धूल का फूल’, ‘दाग’, ‘बहू बेगम’, ‘आदमी और इंसान’, ‘धुंध’, ‘प्यासा’ जैसी अनेक फिल्मों के यादगार गीत शामिल हैं। कहा जाता है कि हिंदी फिल्मों के लिए लिखे उनके गानों में उनका व्यक्तित्व झलकता है। साहिर पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी।
सुधा ने दी साहिर के गीतों को आवाज
साहिर लुधियानवी ने अपनी शायरी और गीतों के जरिए इश्क को एक मुकम्मल आयाम दिया, लेकिन वे इश्क में नाकामयाब रहे। अमृता प्रीतम के अलावा सुधा मलहोत्रा का नाम भी साहिर के साथ जोड़ा गया। वे एक बेहतरीन गायिका थीं। साहिर के कहने पर सुधा ने उनके लिखे कई गीतों को अपनी आवाज दी, जिनमें से एक है ‘तुम मुझे भूल भी जाओ तो हक है तुम को, मेरी बात और है…।’
सम्मान
1963 में उन्हें फिल्म ‘ताजमहल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 1976 में उन्हें एक बार फिर फिल्म ‘कभी कभी’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 8 मार्च 2013 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। ल्ल
