सियासी शतरंज में सफलता से चाल चलने के बारे में जितना नरेंद्र मोदी जानते हैं, शायद ही इस देश का कोई दूसरा राजनेता जानता होगा। इस बात को मानते हैं वे लोग भी जो मोदी के भक्त नहीं हैं। एक उदाहरण है वह हल्ला और हिंसा, जो कोलकाता में दिखा है पिछले दिनों। न्याय के लिए लड़ाई न रह कर अब पूरी तरह से पश्चिम बंगाल में राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम हो रहा है। ये खेल खेला जा रहा है भारतीय जनता पार्टी के आला राजनेताओं के इशारे पर। कहने को तो पिछले हफ्ते वाला बंद स्थानीय नेताओं ने बुलाया था आरजी कर अस्पताल के उस डाक्टर के लिए न्याय दिलवाने के प्रयास में, लेकिन आपने भी देखा होगा कि बंद का नेतृत्व आम लोग नहीं, भाजपा के लोग कर रहे थे।

सड़क पर संघर्ष पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए कम, सियासी फायदे के लिए ज्यादा

ऐसा नहीं है कि लोगों में उस बदनसीब डाक्टर के लिए हमदर्दी कम हुई है। ऐसा भी नहीं है कि लोग न्याय नहीं चाहते हैं। लेकिन यह भी जानते हैं हम कि न्याय की गाड़ी अब चल पड़ी है, इसलिए इसके बावजूद विरोध प्रदर्शन करना और बंद बुलाना सिर्फ ममता बनर्जी की सरकार को परेशान करने के लिए नहीं करवाए जा रहे हैं? असली मकसद जानना मुश्किल है, लेकिन एक बात साफ है और वह यह कि राष्ट्रीय स्तर पर इस घटना को उठाने में भाजपा का हाथ है। पिछले सप्ताह जब मैंने इस घटना पर राष्ट्रपति का बयान सुना कि ‘बस बहुत हो गया है’, तो जो शक था, यकीन में बदल गया! राष्ट्रपति के इस वक्तव्य को मैंने जब कोलकाता में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों से जोड़ा तो निष्कर्ष क्या यही निकला कि ममता की सरकार को गिराने के लिए आंदोलन शुरू हो गया है? भाजपा के कुछ प्रवक्ताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत है। क्या इसलिए ही नहीं राष्ट्रपति को इस दर्दनाक हादसे में घसीटा गया है?

ममता बनर्जी या तो चाल समझ नहीं रहीं है या सोच समझ कर हल्ला बोल रही हैं

ममता दी या तो ये चाल समझी नहीं हैं या सोच-समझ कर इस चाल का जवाब दे रही हैं खुद हल्ला बोल कर। कह दिया है उन्होंने कि बंगाल में आग लगेगी तो उसका असर असम, ओड़ीशा, बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भी दिखेगा। मैं उनके सलाहकारों में होती तो उनको सलाह जरूर देती कि इस तरह के भड़काऊ बयान देकर वे फंस रही हैं उस जाल में जो उनके लिए बिछाई जा रही है। ऐसे बयानों के बदले अगर शांति और संयम की बातें करतीं तो उनको ज्यादा लाभ मिलता। शायद उनकी सरकार बच जाती।

बंगाल में जो हो रहा है, अच्छा नहीं है, इसमें दो राय नहीं है। किसी सीमावर्ती राज्य में अशांति फैलाना भारत के हित में नहीं है। और इस वक्त जब बांग्लादेश में अराजकता फैली हुई है तो ऐसा करने से अपने देश की सुरक्षा को सिर्फ नुकसान पहुंचाने का काम होगा। ममता बेशक उस किस्म की मुख्यमंत्री हैं, जो भाजपा के आला राजनेताओं को पसंद नहीं हैं। लेकिन बंगाल के लोगों ने कई बार साबित किया है कि उनको अपने मुख्यमंत्री में पूरा विश्वास है। लेकिन उनको क्यों नहीं याद रहता है कि ममता एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं?

लोकसभा चुनावों में संदेशखाली को लेकर भाजपा ने खूब हल्ला मचाया था, इस उम्मीद से कि उनको ऐसा करने से चुनावी लाभ मिलेगा। ऐसा नहीं हुआ। तृणमूल कांग्रेस को उनतीस सीटें मिलीं और भाजपा को केवल बारह। विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, तो अभी से अशांति फैला कर क्या हासिल होने वाला है?

सवाल मन में आया तो जवाब भी आ गया। नरेंद्र मोदी को हारने की आदत नहीं है। तो महाराष्ट्र में जब उद्धव ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी का साथ 2019 वाले विधानसभा चुनावों के बाद छोड़ कर अपने आप को मुख्यमंत्री बनाया विपक्षी दलों के साथ मिलकर, तो मोदी और उनकी टीम फौरन हरकत में आ गई थी। याद कीजिए कैसे उन्होंने अजीत पवार को उप-मुख्यमंत्री बनाकर देवेंद्र फडणवीस को चालाकी से दोबारा मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश की थी।

आधी रात को राज्यपाल साहब को उठाकर शपथ दिलवाई गई। जब यह चाल नाकाम हुई तो उद्धव की सरकार गिराने की कोशिश शुरू हो गई थी। याद कीजिए किस नाटकीय तरीके से 2022 में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया था। उसके बाद पिछले साल एक चाल और चली गई और वह थी शरद पवार की पार्टी तोड़ने की।

महाराष्ट्र में भाजपा सरकार बन तो गई, लेकिन इसका खमियाजा पिछले लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ा था, जब भारतीय जनता पार्टी को चौदह सीटें खोनी पड़ी थीं। अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं महाराष्ट्र में, लेकिन जो कभी मोदी का जादू यहां दिखता था, आज गायब है। जिस गांव में मैं रहती हूं, वहां कभी मोदी के नाम पर वोट पड़ते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं बनती है महाराष्ट्र में, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।

हमारे राजनेता अक्सर मतदाताओं को भोले और बेवकूफ समझते हैं। उनके सामने जब घुटने टेकते हैं या साष्टांग प्रणाम करने का नाटक करते हैं, तो जानते नहीं कि इस देश के आम आदमी को कितनी समझ है आजकल अपने वोट की शक्ति की। तो जब चुनी हुई राज्य सरकारें गिराई जाती हैं, दिल्ली में बैठे शासकों के इशारे पर लोगों को अच्छा नहीं लगता है इसलिए कि ऐसा करने से राज्य में कई विकास के काम रुक जाते हैं और अस्थिरता का माहौल बन जाता है, जिससे किसी को फायदा नहीं है।
समस्या यह है कि हमारे राजनेता अपनी गलतियों से सीखते नहीं हैं और वही गलती करते रहते हैं जिनसे न सिर्फ उनका, बल्कि देश का नुकसान होता है। ऐसी गलती अब पश्चिम बंगाल में हो रही है।