कथा है कि सम्राट अकबर एक बार अजमेर शरीफ गया। दरगाह में प्रार्थना करने के बाद बाहर निकला तो दरवाजे पर खड़े खादिम से कहा, ‘आज तुम्हें जो कुछ मुझसे मांगना है, मांग लो। बोलो, क्या चाहिए तुम्हें?’ खादिम ने मुस्करा कर कहा, ‘मुझे जो चाहिए, वह मैंने उससे मांग लिया है, जिससे तुम अभी-अभी अपने लिए मांग कर लौटे हो।’

जिसे सर्वोच्च सत्ता पर भरोसा है, उसे राजाओं-महाराजाओं, शासकों, अधिकारियों से भला क्या चाहिए। उसे तो यकीन है कि उसकी जरूरत की हर चीज वह अदृश्य शक्ति दे ही देगी। वह उसे कभी किसी विपत्ति, किसी संकट में पड़ने नहीं देगी। वह उसका हाथ सदा थामे रहेगी। बस, उससे तार जुड़ा होना चाहिए। उससे तार जोड़ने के लिए बस साफ मन की जरूरत है।

एक कथा और है कि किसी गांव में दो फकीर रहते थे। बिल्कुल सीधे-साधे। जीवन के सारे गुणा-भाग से अनजान। निहायत गंवार जैसे। मगर लोग देखते थे कि जब भी उन्हें नदी पार करनी होती थी, वे दोनों कोई प्रार्थना करते और पानी पर चलते हुए उस पार पहुंच जाते। यह बात जब उस देश के पहुंचे हुए संत को पता चली, तो वह गया उनसे मिलने कि आखिर उन्होंने ऐसी क्या साधना की हुई है। जब वह वहां गया, तो वे दोनों नदी किनारे ही बैठे थे। संत ने उनसे पूछा कि कौन-सी साधना की है, तुमने पानी पर चलने की? वे दोनों चौंके। पूछा, साधना क्या होती है। हम तो जानते भी नहीं कि इसके लिए कोई साधना करनी पड़ती है। हम तो अपने परमात्मा की प्रार्थना करते हैं और चले जाते हैं उस पार। कभी तो डूबे नहीं।

अब हैरान होने की बारी उस संत की थी। उसने पूछा, कौन-सी प्रार्थना करते हो? उन दोनों ने प्रार्थना सुना दी, ‘हे परमात्मा, तुम तो जानते हो कि हमें कुछ नहीं पता। बस, तुम्हारे हाथ में है हमारा हाथ। तुम्हारा लाख-लाख शुकराना कि हमें संभाल रखा है तुमने।…’ और उठ कर पानी पर चलते हुए उस पार चले गए। संत हैरान कि, यह भी कोई प्रार्थना हुई भला। मगर उनकी प्रार्थना का प्रभाव प्रत्यक्ष था।