मानस मनोहर

जौ की राबड़ी
आजकल बाजार के फैशन वाले भोजन के दौर में जौ कम ही लोग खाते हैं। यहां तक कि गांवों में भी गेहूं ही ज्यादा खाया जाता है। मगर हकीकत यह है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से जौ अधिक गुणकारी होता है। जौ मोटे अनाज की श्रेणी में आता है और इसकी तासीर ठंडी होती है। यानी भारतीय मौसम के हिसाब से यह सबसे मुफीद अनाज है। इसलिए गर्मी के मौसम में कई गर्म इलाकों में जौ से बने खाद्य अवश्य खाए जाते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में जौ का सत्तू खाया जाता है, तो अन्य इलाकों में इससे बने अन्य खाद्य। उन्हीं में से एक सबसे लोकप्रिय है राबड़ी या राब। जौ की राबड़ी राजस्थान और हरियाणा में बहुत लोकप्रिय है। इसे बनाना बहुत आसान है। जैसे गेहूं की दलिया बनाते हैं, उसी तरह इसे भी बनाया जाता है।

वैसे घर में भी जौ का दलिया तैयार कर सकते हैं। मगर जौ का छिलका चूंकि मोटा और सख्त होता है, इसलिए अगर उसे ठीक से न उतारा जाए, तो मुंह में आता है और राबड़ी का मजा खराब करता है। हालांकि पुराने लोग इसका छिलका उतारने की विधि जानते हैं कि किस तरह थोड़ी देर इसे पानी में भिगो कर रखा और फिर कूट कर इसका छिलका उतारा जाता है। फिर दल कर दलिया बना लिया जाता है। मगर आजकल लोग इतनी झंझट में पड़ना नहीं चाहते। इसी को देखते हुए अब बाजार में जौ का दलिया भी अनेक कंपनियों ने उतार दिया है। यह आसानी से कहीं भी मिल जाता है।

राबड़ी बनाने के लिए एक कप यानी करीब डेढ़ सौ ग्राम दलिया लें। एक से दो बार अच्छी तरह धो लें। फिर इसमें एक गिलास छाछ डालें और अच्छी तरह घोट लें। अब इसे एक मिट्टी के बर्तन में पकाएं, तो बेहतर स्वाद आएगा, नहीं तो कड़ाही में भी पका सकते हैं। कड़ाही में दलिया डालें और धीमी आंच पर चलाते हुए पकाएं। जब दलिया थोड़ी गाढ़ी होने लगे, तो करीब एक लीटर पानी डालें और चलाते हुए पंद्रह से बीस मिनट तक पकाएं।

दलिया अच्छी तरह गाढ़ा हो जाए तो आंच बंद कर दें। इसे चाहें तो किसी बर्तन में निकाल कर रख सकते हैं। जितना पीना हो उतना निकालें और फिर बाकी को फ्रिज में रख दें। एक गिलास में एक कलछी दलिया लें और उसमें बाकी हिस्सा छाछ से भर दें। ऊपर से थोड़ा काला नमक, थोड़ा सफेद नमक, भुना हुआ जीरा पाउडर और पुदीने की कुछ कटी हुई पत्तियां डालें और अच्छी तरह सारी चीजों को मिला कर पीएं।

जौ की राबड़ी को सुबह-सुबह पीना चाहिए। गर्मी के मौसम में अगर सुबह इसी का नाश्ता करें, तो दिन भर पेट में ठंडक बनी रहेगी। पाचन तंत्र ठीक रहेगा और लू से बचे रहेंगे। अगर दो गिलास राबड़ी पी लें, तो पर्याप्त नाश्ता हो जाता है।

सौंफ का शर्बत
जौ की तरह सौंफ की तासीर भी ठंडी होती है। सौंफ के बहुत सारे औषधीय गुण हैं। खासकर पाचन तंत्र के लिए तो सौंफ बहुत गुणकारी है। गर्मी के मौसम में सौंफ का उपयोग लू से भी बचाता है, शरीर को तरावट देता है। ऐसे में सौंफ का शर्बत सबसे उपयुक्त पेय है। बाजार में बहुत तरह के बोतलबंद शर्बत मिल जाते हैं, पर सौंफ का शर्बत कम ही मिलता है। मगर इसके लिए बाजार का शर्बत लाना ही क्यों, जब घर में ही आसानी से बन सकता है। सौंफ का शर्बत बनाना भी बहुत आसान है। एक बार बना कर बोतल में भर कर रख लीजिए और फिर पंद्रह दिनों तक सुबह चाय की जगह एक बार इसे पीजिए, फिर देखिए कि यह किस तरह दिन भर शरीर को ठंडक पहुंचाता है।

शर्बत के लिए पतली वाली हरी सौंफ लें। करीब ढाई सौ ग्राम। इतनी ही मात्रा में मिश्री लें। मिश्री की तासीर भी ठंडी होती है। इसलिए सौंफ के शर्बत के लिए हमेशा मिश्री का उपयोग करें, चीनी का नहीं।
सौंफ को अच्छी तरह धोकर रात भर के लिए भिगो कर रख दें। कई लोग इसे सूखा ही पीस कर पाउडर बना लेते हैं। मगर भिगो कर पीसने से सौंफ के गुण बढ़ जाते हैं। जब सौंफ अच्छी तरह फूल जाए तो इसे पानी से निकाल कर ग्राइंडर में अच्छी तरह पीस लें।

इसी तरह अलग से मिश्री को भी पीस लें। अब दोनों चीजों को अच्छी तरह मिलाएं। ध्यान रखें कि इसे पकाना नहीं है। गरम करने से सौंफ की ताकत कम हो जाती है। कई लोग इसे लंबे समय तक टिकाऊ बनाने के लिए कड़ाही में उबाल लेते हैं। बाजार में बोतलबंद सौंफ का शर्बत भी इसी तरह बनता है। मगर सौंफ को पकाना नहीं चाहिए। बिना पकाया हुआ सौंफ मिश्री का मिश्रण भी करीब पंद्रह दिन तक खराब नहीं होता। जब मिश्री और सौंफ का मिश्रण अच्छी तरह मिल जाए तो, जो सौंफ का बचा हुआ थोड़ा पानी लेकर मिला दें, ताकि मिश्रण बोतल में डालने लायक हो जाए।

अब इस मिश्रण को मोटी छन्नी से छान लें और बोतल में बंद करके फ्रिज में रख दें। जब शर्बत पीना हो, तब एक गिलास में डेढ़ से दो चम्मच मिश्रण डालें, कुछ बर्फ के टुकड़े, पुदीने की दो पत्तियां डालें और बाकी हिस्सा पानी मिला कर घोलें और पी लें। खुद तो पीएं ही, मेहमान आएं तो उन्हें भी परोसें। दिन में कभी भी सौंफ का शर्बत पी सकते हैं, पर सुबह नाश्ते के साथ पीएं, तो दिन भर शरीर में ठंडक और ताजगी बनी रहेगी।