दिवाली के दिन न, न करते हुए भी बच्चे कहां बाज आते हैं। वे कहीं न कहीं से पटाखे ले ही आते हैं और खूब हो-हल्ला करते हुए जलाते हैं। वायु, ध्वनि प्रदूषण व स्थान विशेष के सरकारी नियमों को ध्यान में रखते हुए यूं तो पटाखे जलाने से बचना चाहिए। लेकिन, पटाखे जला भी रहे हैं तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए, अन्यथा थोड़ी सी लापरवाही होने पर आंखों और त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है।

आज पटाखों को लेकर सबसे पहली सावधानी यह कि आप किस जगह पर रह रहे हैं और वहां प्रदूषण व इससे जुड़े नियम-कानूनों की स्थिति कैसी है। पटाखे तो दिवाली के त्योहार के साथ ऐसे जुड़ गए हैं कि कुछ लोग शगुन के तौर पर भी थोड़ी रोशनी और आवाज चाहते हैं। सिर्फ बच्चे ही नहीं बड़ों को भी पटाखों के बिना दिवाली फीकी सी लगती है। खास बात यह है कि देश में सभी जगहों का जनसंख्या घनत्व और उपभोक्ता सूचकांक भी एक जैसा नहीं होता व सांस्कृतिक विविधता भी होती है। इसलिए पटाखों के संदर्भ में सबसे पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।

परेशानी से बचाए सावधानी

दिवाली में पटाखों को लेकर लोग विशेषकर बच्चे तो बहुत लापरवाही बरतते हैं। इस दिन पटाखे जलाते समय सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं बच्चों के जलने की सामने आती हैं। अनार या बम की चिंगारी, हो या राकेट की आग, शरीर पर पड़ते ही चिपक जाती है। तेज धमाके वाले पटाखों से कई बार हाथ और उंगली में चोट लग जाती है। पटाखों के रसायन से आंखों में धुआं लग जाता है। इससे उनमें जलन-चुभन के साथ लाली की समस्या उभर आती है। इसके अलावा पटाखों से लगने वाली चोट आंखों में घाव कर सकती है कई बार आंखों की पुतली को भी नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए बहुत सावधानी से पटाखे जलाएं।

रसायन न कर दे परेशान

पटाखों के धुएं से होने वाले प्रदूषण के कारण त्वचा में जलन, लाल चकत्ते पड़ना और फुंसियां आम शिकायतें होती हैं। कुछ लोगों की त्वचा बेहद संवेदनशील होती है, उन्हें इससे परेशानी हो सकती है। पटाखों का धुआं भी बहुत खतरनाक होता है। इसमें मौजूद कार्बन के कण हवा में आक्सीजन का स्तर घटा देते हैं और इससे लोगों को सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसे में अस्थमा, सांस या दिल के मरीजों को बहुत अधिक दिक्कत हो सकती है।

बच्चों पर बड़ों की निगरानी

बड़ों को यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि बच्चे पटाखे कैसे जला रहे हैं। जहां तक संभव हो, उन्हें अकेले में पटाखे न जलाने दें। बच्चों द्वारा आतिशबाजी के समय बड़े लोगों को पूरी निगरानी रखनी चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि बच्चों को कभी तेज आवाज के पटाखें न दें। आतिशबाजी को सदैव शरीर से दूर रखकर ही जलाएं। आतिशबाजी वाले स्थान से ऐसी वस्तुएं हटा दें, जो आग पकड़ सकती हैं। इसके अलावा पानी भरी बाल्टी अवश्य पास रखें। स्थानीय प्रशासन ने कितनी देर और किस समय से किस समय तक पटाखे जलाने की अनुमति दी है, बच्चों से इसका पालन करवाएं

हरित को कहें हां

हरित पटाखों में पर्यावरण के लिए नुकसानदायक रसायन शामिल नहीं होते हैं। इसलिए इनसे प्रदूषण में 30-40 फीसद तक की कमी आती है। इनमें एल्युमिनियम, बैरियम, पौटेशियम नाइट्रेट और कार्बन का इस्तेमाल न के बराबर या बिल्कुल नहीं होता है। हालांकि ये दिखने में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। परेशानी से बचने और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से हरित पटाखों का विकल्प अपनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पर्यावरण हितैषी और ‘मध्यम’ गुणवत्ता वाले हरित पटाखों के उपयोग की इजाजत दी है।

सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद तो बड़े पैमाने पर हरित पटाखों का उत्पादन हो रहा है। देश के किसी भी शहर में पंजीकृत दुकानदार से हरित पटाखे आसानी से खरीदे जा सकते हैं। हरित पटाखों में फुलझड़ी, फ्लावर पाट, स्काईशाट यानी राकेट वगैरह बच्चों की पसंद के सभी पटाखे मिलते हैं। अब तो खुशबू वाले पटाखे भी आने लगे हैं। हालांकि ये थोड़े महंगे होते हैं।

(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)