वकालत के पेशे से जुड़े लोगों को लेकर एक किस्सा है। एक वकील साहब के घर में रात को चोर घुस गया। कुछ खटपट हुई तो वकील साहब की नींद खुल गई। उन्होंने चोर को चोरी करते देख लिया। फिर वे सोचने लगे कि इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए। पहला विकल्प तो उन्हें यही सूझा कि शोर मचा दिया जाए, ताकि मुहल्ले के लोग निकल आएं और चोर को पकड़ लिया जाए। मगर फिर सोचा कि इस तरह दो बातें हो सकती हैं- या तो लोगों के घरों से बाहर निकलने से पहले ही चोर चंपत हो जाएगा या फिर वह गुस्से में मुझ पर हमला कर सकता है।
फिर चोर को पकड़ने का क्या उपाय हो सकता है। चोर चोरी करता रहा, वकील साहब लेटे-लेटे उसे चोरी करते देखते रहे और उसे पकड़ने के उपाय सोचते रहे। सोचा कि डंडे से उसके सिर पर वार कर देना चाहिए। इस तरह वह बेहोश हो जाएगा और पकड़ा जाएगा। मगर इस उपाय को लेकर वकील साहब को भारतीय दंड संहिता की कोई धारा सूझ गई। उसमें वकील साहब खुद फंस सकते थे। फिर दूसरा कोई उपाय सोचा, उसमें भी कानून की कोई धारा याद आ गई, जिसमें उन पर भी मामला बन सकता था। इस तरह वे उपाय सोचते रहे और उनसे जुड़ी कोई न कोई धारा याद आती गई। अंत में हुआ यह कि चोर आराम से चोरी करके उनके घर से निकल गया और वकील साहब उसे जाते हुए देखते रहे।
ज्यादा ज्ञान होने पर भी ज्यादा दुविधा पैदा होती है। इसलिए कहा जाता है कि जीवन किताबों में लिखी बातों से नहीं, व्यावहारिक ज्ञान से चलता है। इसलिए सयाने लोग किताबी ज्ञान के बजाय व्यावहारिक ज्ञान को अधिक अच्छा मानते हैं। अगर ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग नहीं हो पाता, तो वह ज्ञान किसी काम का नहीं होता।