सुमन बाजपेयी

नया वर्ष यानी नई सौगात। उगते सूरज की पहली किरण विश्वास की आंच देती है कि आने वाला हर पल मंगलमय और खुशियों से भरा होगा। हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी आशाओं में रंग भर जाएं। उपलब्धियों के द्वार पर उमगता मन दस्तक देता है। पिछली यादें और कड़वाहट भुला कर हम नई और दिशा दिखाती राहों पर कदम रखते हैं। प्रयास और आत्मविश्वास की राहें ही उपलब्धियों के मार्ग प्रशस्त कर भविष्य को संवारती हैं, इसीलिए नववर्ष का आगमन होते ही हम एक बार नए विश्वास और उत्साह के साथ नए संकल्प करते हैं। उस समय मन में यही भाव होता है कि इन्हें हम पूरा करके ही रहेंगे।
बीते वर्ष के साथ जो सपने, जो हसरतें अधूरी रह गई थीं, उन्हें पूरा करने की जिजीविषा, उनको साकार होते देखने की चाह बाहें पसार आतुर हो उठती है, नए साल का स्वागत करने को।
नया वर्ष… नया विस्तार… नई उम्मीदें… नए सपने और नए संकल्प।
लेकिन फिर ऐसा क्या हो जाता है कि वे संकल्प पूरे नहीं हो पाते? कुछ महीनों, हफ्तों, दिनों और अकसर कुछ घंटों में ही वे संकल्प टूट कर बिखर जाते हैं। आखिर क्यों होता है ऐसा? जबकि हर नया साल यही संदेश देता है कि सारी दुश्चिंताओं को एक किनारे कर आशा के दीप प्रज्ज्वलित करो, भविष्य के प्रति एक आशावादी दृष्टिकोण रख अपने सपनों को साकार करो।

हर दिन है नया
संकल्प या वादे अगर हम निभा न पाएं तो जाहिर है कि उनके टूटने का दुख होगा ही। बार-बार तोड़ने या कहें टूट जाने वाले संकल्प क्या इस बात का प्रतीक नहीं हैं कि कहीं न कहीं हमारे प्रयासों में कमी है, कहीं न कहीं हम में हिम्मत की कमी है। संकल्पों के पूरा न होने पर अफसोस होता है, जिससे आत्मविश्वास में भी कमी आ सकती है। क्या इससे बेहतर यह नहीं कि एक लक्ष्य सिद्ध कर उसे पाने का प्रयास किया जाए पर नववर्ष पर संकल्प करके नहीं। वक्त किसी के लिए नहीं रुकता, इसलिए इंतजार करने से सिर्फ समय ही व्यर्थ होता है।

वास्तव में अगर सोचा जाए तो हमारा हर दिन नया हो सकता है, क्योंकि इंसान लगातार ही तो संघर्षरत रहता है। वह प्रतिदिन जिस रचनात्मकता का सृजन करता है, वह नवनिर्माण में सहायक होता है। यह नवनिर्माण ही तो सृष्टि को अनवरत रूप से चलाने के लिए अनिवार्य है। नए-नए रूपों में इंसान कलात्मक अभिव्यक्ति को व्यक्त करता है वही तो सृष्टि को सुंदर बनाती हैं। यह एक न खतम होने वाला सिलसिला है। इस निर्माण के लिए हम किसी खास दिन का तो इंतजार नहीं करते हैं, हम कोई संकल्प तो नहीं लेते हैं क्योंकि अगर नियमित रूप से चक्र न घूमा तो सृष्टि की सुंदरता नष्ट हो जाएगी। इसी चक्र को अनवरत चलाने के लिए मनुष्य निरंतर लक्ष्य पाने में जुटा रहता है। आवश्यक होती है दृढ़ता और लग्न की जो किसी खास दिन की मोहताज हो ही नहीं सकती है।

परंपरा सी बन गई है 

हम में से ज्यादातर लोग दिसंबर में ही सोच लेते हैं कि नए साल में हम क्या करेंगे और क्या नहीं करेंगे। धूम्रपान छोड़ दूंगा, गुस्से पर काबू रखूंगा, अपनी चीजें करीने से रखूंगी, टालमटोल नहीं करूंगा, सुबह सैर किया करूंगी, वजन कम किया जाएगा- नए वर्ष में संकल्पों की सूची बहुत लंबी है। दिलचस्प बात यह है कि बीस प्रतिशत लोग जनवरी के पहले हफ्ते में ही अपना संकल्प तोड़ देते हैं और पचास प्रतिशत लोग तीन महीने के अंदर। विडंबना देखिए कि जो लोग अपने क्षेत्र में किसी मुकाम पर पहुंचे हुए हैं, वे नए साल में अपने लिए किए गए संकल्प पर टिक तक नहीं पाते।

आज हो यह रहा है कि एक परंपरा की तरह लोग नए साल पर संकल्प करते हैं। सुबह बनाते हैं और शाम तक तोड़ भी देते हैं। असल में हमारी मूल्य व्यवस्था में गड़बड़ी है। मूल्यों को हम पर्याप्त मान नहीं देते हैं। बेशक ये संकल्प हम अपनी बेहतरी के लिए करते हैं पर चूंकि हमारे मन में उनके प्रति आस्था नहीं होती है, इसलिए वे जैसे बनते हैं वैसे ही टूट भी जाते हैं। कार्य तो रोज ही करने चाहिए उसके लिए नववर्ष पर संकल्प करने का कोई औचित्य नहीं है। नए साल पर संकल्प करना यह केवल पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण मात्र है। और अगर नववर्ष में अपनी कमियों को दूर करने या बुरी आदतों पर विजय पाने का संकल्प किया भी जाता है तो क्या उसे निभाना नहीं चाहिए? सच तो यह है कि संकल्प करना इंसान की मजबूरी नहीं, बल्कि स्वभाव है। इसीलिए बेहतर होगा कि साल-दर-साल संकल्पों की गठरियां जोड़ने के बजाय बीते वर्ष में किए गए काम, अधूरे छूटे काम और गलतियों का मूल्यांकन किया जाए।

मूल्यांकन करने से स्वयं का विश्लेषण करने का मौका मिलेगा, जो गलतियां सुधार कर और कुछ करने का हौसला देगा। हर दिन एक नया अनुभव होता है। उन्हीं अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ने में जीवन का सार छिपा है। हो सकता है कि बीता वर्ष कुछ आपको हंसा गया हो, कुछ पल आप रोएं भी हों, कभी आपकी हिम्मत टूटी हो तो कभी आत्मविश्वास डगमगाया हो। हो सकता है आपकी उम्मीदों और अपेक्षाओं पर बीता वर्ष खरा न उतरा हो। स्थितियों के आगे विवश होकर हो सकता है आपका हर संकल्प विफल हो गया हो। पर फिर भी जरूरी है प्रयास करना न छोड़ना। जो घट गया उसे बदला नहीं जा सकता है, पर भविष्य को तो संवारा जा सकता है। नववर्ष के आगमन के साथ वर्तमान का खुले मन से स्वागत तो कर सकते हैं। नए साल का आने वाला हर पल नए ढंग से जीवन के विविध पहलुओं का मूल्यांकन करने का संदेश देता है। संकल्प करें कि हम अपनी कमियों को स्वीकार कर नए सिरे से नववर्ष के साथ अपनी जिंदगी की शुरूआत करेंगे।