सड़क पर भीख मांगने और कुछ गलत करने से अच्छा है कि महिलाएं स्टेज पर डांस करके रोजी-रोटी कमाएं, जीवनयापन करें। आप नहीं कह सकते कि डांस नहीं हो सकता।’ यह तल्ख टिप्पणी सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा डांस बार के लाइसेंस के लिए कुछ नई शर्तें बढ़ाए जाने के मामले की सुनवाई करते समय की। सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से साफ-साफ कहा कि नियमन और प्रतिबंध में अंतर होता है। सरकार एक तरफ नियमन की बात कर रही है, जबकि उसकी नीयत डांस बार को प्रतिबंधित करने की है। ऐसा लगता है, महाराष्ट्र सरकार ने डांस बार मामले को नाक का सवाल बना लिया है। शायद यही कारण है कि वह अदालत के आदेशों की लगातार अवमानना कर रही है।

गौरतलब है कि बीते 18 अप्रैल को सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा था कि उसके आदेश के बावजूद मुंबई में डांस बार के लाइसेंस क्यों नहीं जारी किए गए? सर्वोच्च अदालत ने एक सप्ताह के भीतर इस सवाल का जवाब मांगते हुए मुंबई के डीसीपी-लाइसेंसिंग को भी पेश होने के आदेश दिया था। डांस बार के नए कानून के बाबत अदालत ने कहा कि वह पहले कह चुकी है कि वहां अश्लील डांस नहीं होगा और यह कानून में भी प्रतिबंधित है। लेकिन, सरकार उस नए कानून को आधार बनाते हुए अदालत के आदेश का पालन नहीं कर रही है, जो अभी तक अधिसूचित नहीं हुआ। सुनवाई के दौरान याची डांस बार ओनर्स ने अदालत को बताया था कि उसके आदेश के बाद पंद्रह मार्च को दो लाइसेंस जारी किए गए थे, लेकिन वे 18 मार्च को वापस ले लिए गए और संबंधित अधिकारी को भी पद से हटा दिया गया।

बीते 25 अप्रैल को मामले की दोबारा सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार उसके आदेश का पालन क्यों नहीं कर रही है? आखिर वह क्या चाहती है? राज्य सरकार की ओर से पेश हुई सॉलिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने अदालत से कहा कि सरकार चाहती है कि डांस बार में कोई अश्लीलता न हो। इस पर सहमति जताते हुए अदालत ने कहा कि सरकार कार्यस्थल पर महिलाओं का सम्मान और गरिमा बनाए रखे। अश्लीलता को किसी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा, लेकिन डांस को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।

सरकार की नई शर्तों पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि डांस बार के लाइसेंस के लिए बीएमसी-(बंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन) के स्वास्थ्य विभाग की मंजूरी लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि होटल-रेस्टोरेंट का लाइसेंस लेते समय उनके मालिक स्वास्थ्य विभाग से पहले ही प्रमाण-पत्र ले लेते हैं। अदालत का कहना था कि डांस बार का लाइसेंस लेते समय आवेदक की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच जरूरी है। इसके अलावा डांस बार के स्टेज की ऊंचाई तीन फीट और दर्शकों की बार बालाओं से दूरी पांच फुट सुनिश्चित की जाए। अदालत ने राज्य सरकार की उस शर्त को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि डांस बार की प्रस्तुतियों के वीडियो फुटेज इलाकाई थाने को उपलब्ध कराए जाएं। अदालत ने कहा कि अगर इतनी ही निगरानी करनी है तो आप निरीक्षण कर सकते हैं, पुलिस भेज सकते हैं, प्रवेश और निकासी के रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे लगा सकते हैं।

राज्य सरकार की इस शर्त का कोई औचित्य समझ में नहीं आता कि डांस के लाइव वीडियो फुटेज इलाकाई पुलिस को दिए जाएं। आखिर इस बात की क्या गारंटी है कि पुलिस डांस बार में कोई गलत हरकत देखकर मौके पर पहुंचेगी ही? यह भी तो हो सकता है कि संबंधित थाने की पुलिस वीडियो फुटेज का इस्तेमाल अपने मनोरंजन के लिए कर ले। सवाल है कि डांस बार में किसी तरह की अनैतिक गतिविधियां न हों, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी है? आखिरकार शासन और प्रशासन की। कानून व्यवस्था को क्षति न पहुंचे, डांस बार बालाओं के सम्मान-गरिमा पर कोई आंच न आए, यह देखना राज्य सरकार और मुंबई प्रशासन की जिम्मेदारी है। यह सब करने के बजाय महाराष्ट्र सरकार ऐसे 18 नए नियम-कानून ले आई, जिनमें से ज्यादातर अव्यावहारिक हैं।

कहा गया कि स्कूल-कॉलेज या मंदिर के एक किलोमीटर के दायरे में डांस बार नहीं खुलेंगे। यहां सवाल उठता है कि रिहायशी इलाकों में शराब ठेके खोलने के लिए सरकार ने क्या मानक तय कर रखे हैं? कितने शराब ठेके स्कूल-कॉलेज या मंदिर से निर्धारित दूरी से दूर हैं? डांस बार में किस आय वर्ग वाले लोग जाते हैं? आप डांस बार में नियम-कानून तोड़ने वाले दर्शकों और बार मालिक-संचालक के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सकते हैं, मोटा जुर्माना लगा सकते हैं और डांस बार जाने के लिए आयु सीमा का निर्धारण कर सकते हैं।

डांस बार बालाओं के काम के घंटे और न्यूनतम वेतन तय करने जैसी सरकार की बातें तो समझ में आती हैं, साथ ही उन्हें घर से लाने-ले जाने की जिम्मेदारी डांस बार संचालक उठाएं, यह भी जायज शर्त है, लेकिन प्रत्येक विभाग से अतिरिक्त एनओसी लेने जैसी बात समझ से परे है, क्योंकि ऐसी अनुमति होटल-रेस्टोरेंट संचालक पहले ही हासिल कर चुके होते हैं। 2005 में महाराष्ट्र की विलास राव देशमुख सरकार द्वारा डांस बार पर पाबंदी लगाने के बाद लगभग सत्तर हजार बार बालाएं बेरोजगार हो गई थीं। डांस बार बंद होने से तकरीबन डेढ़ लाख लोग प्रभावित हुए थे।

12 अप्रैल, 2006 को जब बांबे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर और एसएस निज्जर की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा डांस बार पर पाबंदी के फैसले को खारिज किया, तो उसने साफ कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद (19-1-जी) यानी (कोई भी व्यवसाय, नौकरी या व्यापार करना) के विरुद्ध है। बांबे हाईकोर्ट के इसी आदेश पर सर्वोच्च अदालत ने 16 जुलाई, 2013 को अपनी मुहर लगाते हुए कहा था कि डांस बार पर प्रतिबंध से जीवनयापन के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। तबसे राज्य सरकार किसी न किसी बहाने नए लाइसेंस जारी करने में अड़ंगे लगा रही है।

उसे तत्काल डांस बार के नए लाइसेंस जारी करने चाहिए। मजे की बात यह कि राज्य सरकार की कोई भी दलील अदालत में टिक नहीं सकी। उसकी ओर से कहा गया कि डांस बार की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा परवान चढ़ रहा था। महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का रवैया सर्वथा उचित है। अदालत किसी भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार की मनमानी सहने के लिए बाध्य नहीं है। अदालत चुनाव में नहीं उतरती, वह सिर्फ तथ्यों-सुबूतों के आधार पर सच और गलत का फर्क करते हुए अपना फैसला देती है, जिसके पीछे किसी नफा-नुकसान का गणित नहीं होता।