जीवन में कभी-कभी ऐसे लोग मिल जाते हैं, लगता है उनसे आपका जन्म-जन्म का रिश्ता है। उन दोनों की मुलाकात भी ऐसे ही हुई थी। दोनों के बीच में किसी भी तरह का रिश्ता बनने की संभावना न के बराबर थी। वह एक छोटे से आॅफिस में छोटी-सी नौकरी करता था। पैसे इतने मिलते थे कि बस घर चल जाए। प्रेम के लिए उसके पास न समय था न तबीयत। फिर भी वह हर समय अकड़ में रहता था। आॅफिस का माहौल भी ऐसा नहीं था कि वहां किसी को बुला सके, बिठा सके। लेकिन पता नहीं कैसे एक दिन एक लड़की उसे ढूंढ़ते हुए वहां आ पहुंची। अपनी और आॅफिस की मुफलिसी को दिखाने के लिए उसने थोड़ा रूखा व्यवहार किया। पता नहीं यह उसने किसी रणनीति के तहत किया या सहज रूप से हो गया।  ऐसा पहली बार हुआ था कि आॅफिस आने वाले से उसने चाय न पूछी हो। उसकी उपेक्षा लड़की की आंखों से भी छिपी नहीं रह पाई। कुछ पल वह अपने आप को सहज करने की कोशिश करती रही और वह लगातार काम में डूबे होने का नाटक करता रहा। जब दोनों के लिए ही स्थितियां बर्दाश्त से बाहर हो गर्इं तो लड़की ने कहा- ‘लगता है आप बहुत ज्यादा बिजी हैं!’ उसने जवाब की प्रतीक्षा नहीं की और चली गई। उसे थोड़ा अफसोस भी हुआ कि बिना बात के उसने एरोगेंसी दिखाई। लेकिन फिर सोचा कि उसका लड़की से क्या लेना देना है।

कुछ दिन इसी तरह बीत गए। वह उसे लगभग भूल गया। याद रखने लायक कुछ था भी नहीं। फिर भी मन में कहीं लग रहा था कि वह उसे फोन जरूर करेगी। एक दिन वह आॅफिस में बैठा था। मोबाइल की घंटी बज उठी। किसी का नाम स्क्रीन पर फ्लैश नहीं हो रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान तैर आई। पता नहीं उसे क्यों लगा कि ‘उसी’ का फोन होगा। उसने दो-तीन बार घंटी बजने के बाद उठाया।
उधर से आवाज आई, ‘हैलो…’
‘हैलो…’
‘उस दिन आप सचमुच बिजी थे या मुझे दिखाने के लिए सब नाटक कर रहे थे?’
‘तुम्हें क्या लगता है?’
‘मुझे लगता नहीं है, बल्कि मैं जानती हूं कि आप मुझे दिखाने के लिए वह सब कर रहे थे।’
‘तो ऐसा ही समझ लो… एक बात कहूं?’
‘कहो।’
‘तुम्हारे अंदर अकड़ बहुत है।’
‘तुम्हारे अंदर भी तो है।’
‘हां है तो… लेकिन तुम अपनी अकड़ छोड़ नहीं सकती?’
‘नहीं, तुम छोड़ सकते हो?’
‘शायद नहीं। मैं तुम्हारी अकड़ की वजह से ही तुम्हें पसंद करता हूं।’
‘मैं भी… मुझे बहुत विनम्र पुरुष पसंद नहीं हैं।’
यह उन दोनों के बीच छोटी-सी बातचीत हुई थी, जिसे पहली बातचीत कहा जा सकता है। इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से वे दोनों जब भी मिले, किसी में भी अकड़ दिखाई नहीं दी। दोनों मिले, मिलते रहे और मिलते रहे। वक्त बीतता रहा। मोबाइल ने भी दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा की। एसएमस, कॉल्स… हंसी-मजाक, सब कुछ संग-संग होने लगा। लेकिन दोनों में से किसी ने किसी से नहीं कहा कि वे दूसरे को पसंद करते हैं या एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। दोनों की अकड़ भी घुल चुकी थी। बावजूद इसके दोनों के बीच लड़ाइयां होती रहती थीं। अब वह भी उसे फोन करने लगा था।
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एक दिन उसने फोन किया और सीधा कहा, ‘देख रहा हूं आजकल तुम मेरा बहुत ज्यादा ध्यान रखने लगी हो।’
‘तुम नहीं रखते?’
‘रखता हूं।’
‘क्यों रखते हो?’
‘क्योंकि तुमसे प्यार नहीं कर सकता।’
‘तुम क्यों मेरा ध्यान रखती हो?’
‘मुझे तुम्हारी केयर करना अच्छा लगता है।’
‘लेकिन हम एक-दूसरे से प्यार नहीं कर सकते।’
‘हमारे बीच उम्र का एक लंबा फासला है।’
‘दिलीप कुमार और सायरा बानो के बीच भी तो बहुत लंबा फासला है।’
‘वह बॉलीवुड है… और न तुम दिलीप कुमार हो और न मैं सायरा बानो।’
‘आज मेरे दिल में तुम्हारे लिए सम्मान और बढ़ गया है।’
‘क्यों?’
‘क्योंकि हम एक-दूसरे से प्रेम नहीं कर सकते।’
उसे हमेशा लगता रहा है कि प्रेम इंसान को कमजोर करता है। एक-दूसरे की स्वतंत्रता में बाधक है। एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ाता है। आदमी की सोच को संकुचित करता है। इसलिए वह हमेशा ही प्रेम से बोाता आया है। खासकर तक जब यह तय हो जाए कि दोनों को एक साथ रहना है- वह भी जीवन भर के लिए। अगर यह तय हो कि दोनों साथ नहीं रह सकते, तो प्रेम लंबा चल सकता है। लेकिन लगता है अब उसकी धारणा बदल रही है। वह सोचता है कि कहीं किसी से प्रेम न होने के कारण ही तो उसने यह धारणा नहीं बना रखी थी। अब लगातार उसे लग रहा है कि वह उससे प्रेम करने लगा है। लेकिन दोनों ने ही कभी प्रेम स्वीकारोक्ति नहीं की है। हां, अब मोबाइल से बाहर आकर दोनों का मिलना-जुलना भी बढ़ रहा है। कोजी कॉर्नर तलाशने के लिए दोनों को ही थ्री वीलर की सबसे मुफीद जगह नजर आती है। हालांकि एक-दूसरे को छूने और चूमने से वे दोनों अब भी बचते हैं। और यही बात दोनों को और नजदीक ला रही है।
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दोनों ने दरियागंज से प्रगति मैदान के लिए आॅटो किया। वह एक कोने पर बैठी और वह दूसरे कोने पर। कुछ देर इसी तरह बैठे रहे और आॅटो चलता रहा। कुछ देर खामोशी रही। लेकिन वह जानता है कि खामोशी भी एक भाषा है। तो क्या वह भी वही सोच रही होगी, जो वह सोच रहा है? क्या वह भी आज आॅटो में ही प्रेम का इजहार करने वाली है? लेकिन वह कुछ नहीं बोली। शायद वह इस बात का इंतजार कर रही थी, कि पहल वह करेगा। प्रगति मैदान पहुंचने में अब ज्यादा वक्त नहीं था। और वह नहीं चाहता था कि इस बार आॅटो का सफर बेकार जाए। आखिर उसने बोलने का फैसला कर लिया।
‘क्या सोच रही हो?’
‘वही जो आप सोच रहे हैं।’
‘मैं क्या सोच रहा हूं?’
‘जो मैं सोच रही हूं।’
‘ये पहेलियां मत बुझाओ, साफ-साफ बताओ मैं क्या सोच रहा हूं?’
‘यह तो आप ही बता सकते हैं, पर इतना तय है कि आप कुछ सोच रहे हैं या कुछ कहना चाहते हैं।’
‘तुम कुछ नहीं कहना चाहती?’
‘मुझे सुनना ज्यादा अच्छा लगता है।’
‘अगर यही बात मैं भी कहूं?’
‘तो इससे अच्छा कुछ नहीं है। हम दोनों बिना बोले भी एक-दूसरे की मन की बात तो सुन ही रहे हैं।’
वह कुछ पल चुप रहा। वह जानता है कि सामने बैठी लड़की से जीतना आसान नहीं है। प्रगति मैदान आने ही वाला है। समय बीत रहा है। वह नहीं चाहता कि समय बीते। आखिर उसने हिम्मत जुटा ही ली।
‘मुझे लगता है तुम मुझसे प्रेम करने लगी हो।’
‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं।’
‘तुम मुझसे प्रेम करती हो।’
‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं। क्या तुम मुझसे प्रेम करते हो?’
‘मुझे ऐसा लगता है कि मैं तुमसे प्रेम करने लगा हूं, चौबीसों घंटे तुम्हारे ही बारे में सोचता हूं। क्या तुम मेरे बारे में सोचती हो?’
‘हमेशा सोचती रहती हंू।’
‘यानी तुम भी मुझसे प्रेम करती हो।’
‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं।’
‘तुम कहने से डर रही हो।’
‘डरती मैं किसी चीज से नहीं।’
‘तो फिर कहती क्यों नहीं कि तुम मुझसे प्रेम करती हो… आई नो यू लव मी।’
‘यस आई लव यू।’
‘क्या… स्कूटर के शोर में सुनाई नहीं दिया।’
‘हां… मैं तुमसे प्रेम करती हूं… आई लव यू… आई लव यू… आई लव यू।’
स्कूटर से बाहर चारों ओर उसकी आवाज फैल गई… आई लव यू… आई लव यू…।
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और फिर शुरू हुआ टेक्नोलॉजी प्रेम, यानी मोबाइल पर प्रेम का सिलसिला। पर दोनों ने तय किया कि वे दोनों आपस में शारीरिक दूरी बना कर रखेंगे। बस प्रेम करते रहेंगे। शारीरिक संबंध के लिए दोनों अगले जन्म का इंताजार करेंगे। लेकिन वे अगले जन्म का अभ्यास इसी जन्म में करते रहे। सुबह… शाम और रात….। पता नहीं दोनों को इतना समय कैसे मिलने लगा।
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कहते हंै प्रेम या तो बढ़ रहा होता है या कम हो रहा होता है। वह एक ही बिंदु पर नहीं ठहरता। लेकिन उन दोनों का प्रेम लगातार ऊपर की ओर ही जाता रहा। वक्त इस प्रेम का गवाह बना रहा। एक साल बीत गया। एक दिन अचानक उसने सूचना दी।
‘मेरी शादी तय हो गई है।’
‘चुप्पी…’
‘क्या हुआ, उदास हो गए?’
‘न…’
‘हम अगले जन्म में मिलेंगे जान।’
‘तो इस जन्म में क्यों मिली?’
‘अगले जन्म में प्रेम का पूर्वाभ्यास करने के लिए।’
‘कर लिया?’
‘हां… देखो तुम उदास लग रहे हो… तुमने वादा किया था कि मेरी शादी की खबर सुन कर उदास नहीं होगे।’
‘क्या तुम उदास नहीं हो?’
‘मेरी उदासी का कोई अर्थ नहीं है। मैं तुम्हें जरूर मिलूंगी, अगले जन्म में तुम्हीं मेरे पति बनोगे। तुम मुझसे प्रेम करते हो तो उदास मत होना… वरना किसी गैर-पुरुष (पति) के साथ जीवन गुजारना मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा।’
‘ठीक है मैं उदास नहीं हूं… अच्छा जब तुम लोगों का पहला बच्चा होगा तो उसका नाम क्या रखोगी?’
‘वह तो हम पहले ही तय कर चुके हैं।… तुम्हें याद है? बताओ!’
‘मी… टू… मीटू…।’ ०