प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
साहिर के माता-पिता की आपस में बनती नहीं थी, इसलिए दोनों अलग हो गए। मगर साहिर दोनों से अलग नहीं होना चाहते थे, हालांकि मजबूर होकर अलग होना पड़ा और अपनी अम्मी सरदार बेगम के साथ आ गए। साहिर अपनी मां से बहुत प्रेम करते थे। सरदार बेगम साहिर को लेकर घर से निकल गर्इं। इन परिस्थितियों में उन्हें गरीबी में जीवन जीना पड़ा। उनकी शुरुआती शिक्षा लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में हुई। फिर लुधियाना के ही गवर्मेंट कॉलेज में आगे की पढ़ाई की।

शोहरत
साहिर ने कॉलेज के दिनों से ही गजलों और नज्मों के जरिए अपनी पहचान बना ली थी। उन्होंने मात्र चौबीस की उम्र में ‘तल्खियां’ किताब लिखी, जिसने बाजार में आते ही तहलका मचा दिया। वे उर्दू अखबार ‘अदबे-लतीफ’, ‘शाहकार’ और ‘सवेरा’ के संपादक बन चुके थे। ‘सवेरा’ में उन्होंने हुकूमते-पाकिस्तान के खिलाफ लिखा, तो उन्हें पाकिस्तान सरकार ने गिरफ्तारी का वारंट भेज दिया। 1949 में वे दिल्ली चले आए और प्रोग्रेसिव राइटर्स में शामिल हो गए। आठ सप्ताह के बाद वे मुंबई चले गए।

करिअर
उन्होंने 1949 में ‘आजादी की राह पर’ फिल्म में चार गीत गाए। यहीं उन्होंने पहली बार गीत लिखे। मगर प्रसिद्धि उन्हें फिल्म नौजवान से मिली। इस फिल्म के संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे। इस फिल्म का गाना ‘ठंडी हवाएं लहरा के आएं’ बहुत लोकप्रिय हुआ। बर्मन के साथ साहिर की अंतिम फिल्म ‘प्यासा’ थी, जिसके लिए उन्होंने गीत लिखे। साहिर लुधियानवी ने निर्देशक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ भी काम किया। उन्होंने ‘मन की आंखें’, ‘इज्जत’ और यश चोपड़ा की फिल्म ‘दाग’ के लिए भी गाने लिखे। इनके अलावा एन. दत्ता, शंकर जयकिशन, खय्याम आदि संगीतकारों ने उनके गीतों की धुनें बनार्इं। साहिर के बारे में कहा जाता है कि वे दूसरों पर ज्यादा ध्यान देते थे और खुद पर कम। वे संजीदा व्यक्ति थे, जो उनके फिल्मी गानों में भी दिखाई देता है। उन्होंने ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’, ‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम’, ‘आना है तो आ’ जैसे प्रसिद्ध गीत लिखे।

अमृता प्रीतम और लुधियानवी
साहिर लुधियानवी जब कॉलेज में पढ़ते थे, उन्हें अमृता प्रीतम से प्रेम हो गया था। यह प्रेम विफल रहा। कॉलेज के दिनों में जब साहिर शेर-ओ-शायरी किया करते थे तब अमृता उनकी प्रशंसा करती थीं। साहिर मुसलमान थे इस वजह से अमृता के माता-पिता को यह प्रेम रास नहीं आ रहा था और अमृता के पिता के कहने पर साहिर को कॉलेज से निकाल दिया गया था। साहिर ने लिखा है- ‘जज्बात भी हिंदू होते हैं चाहत भी मुसलमां होती है/ दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा दिल ही तो है…’। साहिर का प्रेम सुधा मल्होत्रा से भी रहा, लेकिन यह भी असफल रहा। वे आजीवन अविवाहित रहे।

दोस्तों के साथ व्यवहार
साहिर यारबास थे। उन्हें शराब और सिगरेट पीने का भी शौक था। उन्होंने खूब शोहरत और दौलत कमाई और दोस्तों पर लुटाई। उन्हें महफिलें जमाने का शौक था। दावतों में शेरो-शायरियां चलती रहती थीं।

निधन : उनसठ साल की उम्र में 25 अक्तूबर, 1980 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। ल्ल