रोहित कुमार
सभ्यता और आधुनिकता अगर अपने विकास के उत्तर चरण में हों तो अध्यात्म पुरानी सनातनी चादर ओढ़े नहीं रह सकता है। नया अध्यात्म भौतिकता के खिलाफ नहीं बल्कि उसके साथ सहअस्तित्ववादी व्याख्या के साथ सामने आ रहा है। इस व्याख्या की जमीन तैयार की भारत से विदेश जाकर प्रवचन करने वाले साधु-साध्वियों ने। उन्होंने बताया कि भौतिकता के त्याग के बिना आस्था और अध्यात्म की राह पर चला जा सकता है। कहा गया कि जीवन में भौतिकता और आध्यात्मिकता को अलग-अलग देखने की जरूरत नहीं है। अध्यात्म को ज्ञान से ज्यादा आनंद से जोड़ा गया। समझाने के लिए इस तरह के उदाहरण रखे गए कि जीवन का भौतिक पक्ष चावल है और आध्यात्मिक पक्ष शक्कर। आध्यात्मिकता की मिठास खीर को मीठा बनाती है। आध्यात्मिक समझ से जीवन में मधुरता आती है। साफ है कि भौतिकता और उसके आकर्षण को वह चादर ओढ़ाई गई जो भोग को आनंद बता सके और कहे कि आनंद ही जीवन का उत्सव है। ओशो के प्रवचनों को याद करें तो इस तरह की कई बातें वे काफी तार्किक ढंग से करते हैं।
ऐसे ही कई और दार्शनिक गुरु और लेखक भी सामने आए, जो अपनी बात कहने के लिए पौराणिक कथाओं का उदाहरण सामने नहीं रखते बल्कि आधुनिक भौतिकवादी परिवेश से ही काल्पनिक-वास्तविक प्रसंग उठाते हैं। मसलन, आप इस प्रसंग को देखें- एक बार टीवी पर कोई फिल्म दिखाई जा रही थी। कुछ लोग इसे एकटक देख रहे थे। उन्हें न भूख लग रही थी और न ही प्यास। अपने आसपास के वातावरण से भी वे अनभिज्ञ हो चुके थे। फिल्म के दृश्यों को देखकर कभी उनकी आंखों में आंसू आते, तो कभी खुश होकर वे तालियां बजाने लगते। खुश होने के लिए उन्हें किसी तरह का प्रयास नहीं करना पड़ रहा था। इस प्रसंग की व्याख्या में चालाकी से यह बात जोड़ी जाती है कि आनंद कोई ऐसी चीज नहीं, जो कहीं किसी दुकान पर मिलती हो। यह तो हमारे अंदर ही होता है, जिसे बिना प्रयास के भी पाया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जिस दिन आनंदित रहने के स्रोत को ढूंढ़ लेगा, उसी दिन उसे सच्ची आध्यात्मिकता भी प्राप्त हो जाएगी।
इसके बाद तर्क और व्याख्या के समर्थन में उन नामों और सूक्तियों को गिनाया जाता है जो पीढ़ियों से स्वीकृत हैं, हमारी आस्था के केंद्र में रहे हैं। भौतिकता की रजाई ओढ़कर आनंद की गरमी महसूस करने के लिए कबीर की इस पंक्ति को तो न जाने कितनी बार दोहराया गया- ‘कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढ़े वन माहि…।’ हिरण के अंदर ही कस्तूरी होती है, लेकिन उसकी सुगंध उसे बाहर से आती प्रतीत होती है और वह उसे वन में ढूंढ़ता फिरता है। वस्तुवादी जीवन के यथार्थ पर बगैर कोई लानत भरे अगर सिर्फ अलग से यह जोड़ दिया जाए कि वास्तव में आनंद किसी वस्तु में नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही होता है तो इससे इसके पूर्व की व्याख्या को नैतिक समर्थन नहीं मिल जाता है।
गौरतलब है कि भौतिकवादी सभ्यता और उसके विकास के खतरों के प्रति आगाह कराने वाले महात्मा गांधी बार-बार साधन और साध्य की शुद्धता की बात करते हैं। शुद्धता के इस आग्रह पर खरे उतरने के लिए वे संयमित और मितव्ययी होने की कसौटी सामने रखते हैं। आनंद के नाम पर आध्यात्मकिता की नई व्याख्याओं में साधन और शुद्धता का आग्रह सिरे से नदारद है। शुद्धता का यह आग्रह न तो व्याख्याकारों को खुद के लिए चारित्रिक तौर पर जरूरी जान पड़ता है और न ही वे इसके लिए अपने श्रद्धालुओं के सामने कोई आग्रह रखते हैं।
बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में अध्यात्म और भौतिकता के साझे को रचते हुए आनंद और सफलता की ऐसी ही तर्कपूर्ण व्याख्या के कारण स्वेट मार्डेन जैसे लेखकों की किताबों की रिकार्ड प्रतियां बिकीं। मार्डेन के ही साथी लेखक हैं नेपोलियन हिल। इन दोनों का रचना संसार अद्भुत है। अगर अध्यात्म की तात्विक समझ न हो तो फिर इनके शब्द और आशय के सम्मोहन से बाहर निकलना तकरीबन नामुमकिन है। मार्डेन को पता था कि भौतिकवादी लिप्सा से जीवन में चिंता बढ़ती है, तनाव बढ़ता है। पर वे चालाक तर्क देते हैं, ‘चिंता ने आज तक कभी किसी काम को पूरा नहीं किया।’ यह एक ऐसा विचार है जिससे असहमति मुश्किल है। पर अगर पलट कर सवाल पूछा जाए कि चिंता रोजमर्रा के जीवन से होने वाली परेशानियों को लेकर या जीवन की सार्थकता को लेकर। यहां मार्डेन या तो मौन हैं या उनके लिए यह सवाल गैरजरूरी है।
हिल ने तो सीधे-सीधे सफलता और धनाढ्यता को एक साथ देखा और इस साझे आकर्षण को विचार सूत्र के तौर पर परोस कर बड़ी ख्याति अर्जित की। आज उनके ही जैसे विचार सामने रखकर कहीं ‘हरे रामा, हरे कृष्णा’ के गीत पर लोग थिरक रहे हैं, तो कहीं ‘हील एंड हैप्पीनेस’ के पांच सितारा शिविर चल रहे हैं। जो बात यहां देखने-समझने की है, वह यह कि भौतिकता के साथ दुनिया में नए ख्वाब और कुबेरी कामयाबी के लिए होड़ ही नहीं मची बल्कि इसके साथ-साथ विचार और आदर्श का एक पूंजीवादी सांचा भी तैयार हो गया है। ऐसे में लिप्सा और सत्य का साक्षात्कार कोई साधु-संत आपको सुखद वातानुकूलित वातावरण में पलक झपकते करा दे तो आनंद तो आएगा ही।