रोहित कुमार

कबीर अनूठे हैं, अपने वचन में भी और अपने जीवन में भी। कमाल यह कि उनका यह अनूठापन उनके असाधारण होने के कारण नहीं बल्कि साधारण होने के कारण है। असाधारण चमकदार हो सकता है, कीमती हो सकता है पर साधारण तो सिर्फ इसलिए विलक्षण है कि वह सरल है, सादा है।

यही कारण है कि कबीर जहां महात्मा बुद्ध और महावीर से अलग हैं, वहीं वे संतों के बीच भी अलग ही दिखाई पड़ते हैं। अलग इसलिए कि सबके यहां साधारणपना छूटता दिखाई पड़ता है पर कबीर हमेशा निपट साधारण मालूम पड़ते हैं। अपने साधारण होने के कारण ही कबीर सबसे जुड़ते भी हैं। उनके पास सबके लिए उम्मीद है।

कबीर के लिए साधारण होना एक धुन की तरह है। कह सकते हैं कि उनके अंदर अगर कोई आसक्ति भी है तो यही कि उनकी सरलता बनी रहे, वे साधारण बने रहें बुद्धि से भी और आचरण से भी। ज्ञान की कोई बात वे आगे बढ़कर कभी करते भी नहीं जबकि वे भारतीय ज्ञान परंपरा के एक सोपान की तरह हैं।

वे तो अपने अज्ञान की बात करते हैं। आगे बढ़कर कहते हैं कि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं। कागज-कलम कभी छुआ नहीं। खुद को उन लोगों के बीच निपट मानते हैं जो शास्त्र और ज्ञान के भारी दावों से भारी-भरकम बने बैठे हैं।

कबीर जीवन भर गृहस्थ रहे। श्रमजीवी रहे। जुलाहे का काम करते रहे। कपड़ा बुनते और बेचते रहे। न घर छोड़ा और न ही सत्य की तलाश में यहां-वहां भटके। कबीर ने कुछ भी नहीं छोड़ा और सब कुछ पा लिया। इसलिए छोड़ना पाने की शर्त नहीं हो सकती। कबीर के जीवन में अलग से कोई विशिष्टता नहीं है।

बुद्ध को सामने रखकर ओशो ने कबीर की सादगी की चर्चा की है। बुद्ध अगर पाते हैं तो पक्का नहीं कि आप भी पा सकते हैं। बुद्ध को ठीक से समझेंगे तो निराशा हाथ आएगी क्योंकि बुद्ध की बड़ी उपलब्धियां हैं पाने के पहले। बुद्ध सम्राट हैं। जिसके पास सब है, उसे उस सब की व्यर्थता का बोध हो सकता है।

गरीब के लिए बड़ी कठिनाई है धन से छूटना। जिसके पास है ही नहीं, उसे व्यर्थता का पता कैसे चलेगा? बुद्ध को पता चल गया, बाकी को कैसे पता चलेगा? कोई चीज व्यर्थ है, इसे जानने के पहले, कम से कम उसका अनुभव तो होना ही चाहिए। धन पाया ही नहीं तो कोई कैसे कह देगा कि वह व्यर्थ है।

बिना अर्थ प्राप्ति के व्यर्थ का बोध असंभव है। यहां यह भी जोड़ लेना जरूरी है कि धन या अर्थ की आगे की व्याख्या माया और काम तक जाती है। मान्यता और दर्शन का महल इसके साथ खड़ा है। बुद्ध तो इस अर्थ में स्त्रियों को भी शामिल कर लेते हैं। कहते हैं, स्त्रियों में सिवाय हड्डी, मांस-मज्जा के और कुछ भी नहीं है।
स्मरण रहे कि अगर कोई कल्पना या तथ्य न भी जोड़ें तो भी इतना तो है ही कि वह पत्नी को छोड़कर घर से निकले थे। वैसे यहां यह समझ जरूरी है कि बुद्ध न तो जड़बुद्धि हैं और न महिला विरोधी। वे जो कुछ कह रहे हैं, वो काम और वासना के संदर्भ में कह रहे हैं। हां, यह जरूर है कि महिलाओं को सामने रखकर कहने का उनका तरीका एतराज भरा है।

बुद्ध की बात इस रूप में मानी जा सकती है कि राजपरिवार में हर तरह का ऐश्वर्य वो देख-भोग चुके थे। इसलिए इसे अंतिम सुख या सत्य के तौर पर न पाने की उनकी दृष्टि बनी हो। पर कबीर ऐसी समस्याओं और दुविधाओं से सर्वथा मुक्त हैं। और ऐसा इसलिए क्योंकि वे साधारण हैं। न कोई विभूषण, न कोई अलंकरण। कबीर गरीब हैं और वे यह सत्य जान गए कि माया व्यर्थ है। कबीर के पास एक साधारण सी पत्नी है और साथ में यह बोध भी कि राग-रंग, वैभव-विलास, सब मन का स्वभाव नहीं बल्कि असाधारण अतिरेक हैं। जीवन समभाव में है, अतिरेक में नहीं।

कबीर सड़क पर बड़े हुए। कबीर के मां-बाप का कोई पता नहीं। उनके साथ कुलीनता का कोई बोझ या दावा नहीं है। सड़क पर ही पैदा हुए, सड़क पर ही बड़े हुए। जैसे भिखारी होना पहले दिन से ही भाग्य में लिखा था। यह भिखारी भी अगर जान गया कि धन व्यर्थ है और माया महाठगनी है तो इस साध को क्या कहेंगे।

दरअसल, यह साध उम्मीद है उस सर्वहारा के लिए जो अभाव में जीते हैं। जिनकी दुनिया महलों की दुनिया नहीं है। इन सबके बाद भी जीवन में अर्थ और माया की निस्सारता अगर कोई समझ ले तो यह बड़ी सफलता है।

महावीर सम्राट के बेटे हैं। कृष्ण, राम और बुद्ध के साथ भी ऐसा ही है। सभी महलों से आए हैं। कबीर बिल्कुल सड़क से आए हैं। महलों से उनका कोई नाता नहीं है। उनके जीवन में त्याग का अलग से कोई बोझ नहीं है। वे चूंकि शास्त्र, शिक्षा और ज्ञान की पारंपरिक दुनिया से भी बाहर खड़े हैं, इसलिए उनकी बातों में सादगी है। एक अपढ़ आदमी, जिसे दस्तखत करने भी नहीं आता, उसने परमात्मा के परम ज्ञान को पा लिया तो भरोसा बढ़ता है।

बुद्ध ज्ञान के मामले में थोड़ा असंतुलन, थोड़ी दुविधा पैदा करते हैं। लोगों को लगता है कि वे बुद्ध की तरह ज्ञान को नहीं पा सकते। क्योंकि न तो उनका जीवन बुद्ध की तरह है और न ही त्याग के वे अवसर जो बुद्ध को हासिल थे। ऐसे में कबीर तराजू के असंतुलित पलड़े को जगह पर ले आते हैं।

वे सारी दुविधा का तोड़ प्रस्तुत करते हैं। बुद्ध को देखकर जो निराश होंगे या जो चाहकर भी उनसे कुछ ग्रहण नहीं कर सकेंगे, कबीर उन्हें ज्ञान का सर्वस्व हासिल करने का मार्ग दिखाते हैं। साधारण के लिए अत्यंत साधारण मार्ग। कमाल यह कि यह सब करते हुए कबीर ज्ञान के चरित्र को भी कठिन या विलक्षण नहीं रहने देते, उसे साधारण बना देते हैं।