कहावतों की दुनिया दिलचस्प है। वैसे कोई भी कहावत न तो रातोंरात बनती है और न ही एक दिन में प्रचलन में आती है। इसके पीछे लोक परंपरा और ज्ञान की गाढ़ी पृष्ठभूमि होती है। यह भी कि पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों को लेकर बड़ी समानता है। लिहाजा इन मूल्यों से जुड़ी कहावतें अलग-अलग भाषा और संस्कृति में मिलती है। पुरुषार्थ ऐसा ही एक नैतिक मूल्य है, जिसके बारे में भाषा और संस्कृति की तमाम धाराओं में कई बातें कही गई हैं, जिनमें कहावतें भी शामिल हैं। अपने देश में इस मूल्य को लेकर एक लोककथा काफी प्रसिद्ध है।

एक किसान था। उसके चार पुत्र थे। सबके सब आलसी थे। किसान को बहुत चिंता रहती थी कि उनका कोई भी बेटा अपने जीवन में कामयाब नहीं है। वे अक्सर सोचते रहते कि बच्चों को कैसे शिक्षा दी जाए कि वे पुरुषार्थी बनें, अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकें।

धीरे-धीरे किसान वृद्ध हो चला। एक दिन वह काफी बीमार पड़ गया। उसे अहसास होने लगा कि उसके अब ज्यादा बचने की उम्मीद नहीं है। उसने अपने चारों बेटों को बुलवाया और कहा कि पास के खेत में उसने एक बड़े कलश में लाखों रुपए मूल्य की स्वर्ण मुद्राएं गाड़ रखी हैं। किसान ने इतना कहते ही अपनी अंतिम सांस ली।

चारों भाइयों ने तय किया कि पहले विधिपूर्वक पिताजी का दाह संस्कार संपन्न करना चाहिए। खेत की जमीन को बाद में खोदेंगे। ऐसा ही सोचकर सबने मिलकर पहले पिता का दाह संस्कार संपन्न किया। इसके बाद वे खेत पहुंचे और देखते-देखते पूरे खेत को खोद डाला। स्वर्ण मुद्राएं तो खैर एक न मिली पर इस बहाने पूरे खेत की जुताई हो गई। इस तरह खेत में बुआई की गई तो बाद में फसल भी अच्छी हुई। पिता की पुरुषार्थ और परिश्रम की सीख को वे फिर आजीवन नहीं भूले।