कहा जाता है कि फिल्में साहित्य के मर्म को ठीक-ठीक उतार नहीं सकतीं। मगर निर्माता-निर्देशक मणि कौल ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया। उन्होंने मुख्य रूप से साहित्यिक कृतियों को आधार बना कर फिल्में बनाईं। इस तरह उन्होंने फीचर फिल्म और वृत्तचित्र यानी डाक्यूमेंट्री के बीच के अंतर को भी समाप्त करने का प्रयास किया। उनका जन्म राजस्थान के जोधपुर शहर में हुआ था।
उन्होंने पुणे के फिल्म संस्थान में ऋत्विक घटक से सिनेमा के गुर सीखे थे। उन्होंने पहले अभिनय और फिर निर्देशन की पढ़ाई की, पर बाद में निर्देशन को ही अपना रचनात्मक जुनून बनाया। ऋत्विक घटक के साथ-साथ रूसी फिल्मकार तारकोव्स्की की फिल्मों से भी मणि कौल प्रभावित रहे। उन्होंने सिनेमा का नया व्याकरण गढ़ा, जबकि उनके यहां तकनीक और आख्यान का इस्तेमाल भी नए तरीके से होता है। उनके सिनेमा में वृत्तचित्र और फीचर फिल्म के बीच बहुत महीन रेखा है, और यही उनकी फिल्म की ताकत है।
जिस तरह अच्छा साहित्य पाठक में नया सौंदर्यबोध उत्पन्न करता है, उसी तरह मणि कौल का सिनेमा भी सौंदर्य के नए अर्थ खोलता है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि उनकी फिल्में साहित्य के उस बोध को रूपांतरित भर करती हैं। सिनेमा का अपना स्वायत्त संसार है, इसलिए यहां आकर साहित्य का यथार्थबोध और सौंदर्यबोध एक बिल्कुल नई दीप्ति से जगमगा उठता है। मणि कौल कला फिल्मों के फिल्मकार हैं, उनका सिनेमा भारतीय सिनेमा की नई धारा का सिनेमा है, जिसे समांतर सिनेमा के रूप में भी जाना जाता है।
भूत दांपत्य जीवन के आधार पर बनाई उनकी फिल्म ‘दुविधा’ में भूत व्यापारी के पिता को रोजाना सोने की एक मोहर देता है। यह बहुत ही कलात्मक फिल्म है, मगर वह व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो पाई। हालांकि भारत में गंभीर सिनेमा प्रेमियों और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इस फिल्म को काफी सराहा गया। मणि कौल की लगभग सभी फिल्मों के साथ आमतौर पर ऐसा ही हुआ है, चाहे वह ‘उसकी रोटी’ हो, ‘आषाढ़ का एक दिन’ हो, ‘सतह से उठता आदमी’ हो, ‘इडियट’ हो या ‘नौकर की कमीज’। यह बात सिर्फ उन पर लागू नहीं होती। सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन जैसे महान भारतीय फिल्मकारों पर भी लागू होती है, जिनको अंतरराष्ट्रीय ख्याति तो खूब मिली, मगर उनकी फिल्में भारत में ज्यादा चल नहीं पाईं।
साहित्य के अलावा मणि कौल संगीत के भी प्रेमी भी थे। ध्रुपद पर उन्होंने एक वृत्तचित्र भी बनाया था। उनकी फिल्म ‘सिद्धेश्वरी’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ‘उसकी रोटी’ एकदम नई तरह की फिल्म थी, जिसके जरिए उन्होंने पहली बार फिल्म के प्रचलित शिल्प को तोड़ा था। इस फिल्म को फिल्मफेयर क्रिटिक अवार्ड मिला था। 1971 में मोहन राकेश के नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ पर आधारित इसी नाम से फिल्म बनाई थी, जिसे काफी प्रशंसा मिली और फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड भी। सत्तर के दशक में उन्होंने ‘घासीराम कोतवाल’ नाटक पर आधारित कुछ लोगों के साथ मिलकर फिल्म भी बनाई थी, जो ओम पुरी की पहली फिल्म थी। गैर-फीचर फिल्म ‘सिद्धेश्वरी’ में उन्होंने ठुमरी गायिका सिद्धेश्वरी देवी के जीवन को दर्शाया था। इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उन्होंने डाक्यूमेंट्री भी बनाई, जिसमें ‘ध्रुपद’ को काफी सराहना मिली।
मणि कौल की प्रमुख फिल्में हैं- उसकी रोटी, आषाढ़ का एक दिन, दुविधा, घासीराम कोतवाल, सतह से उठता आदमी, ध्रुपद, मति मानस, नौकर की कमीज आदि। उन्हें कई फिल्मों के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें कई फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और उनकी फिल्मों को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला।