कोरोनाकाल के नए विस्तार को अवसाद की घनी छाया के तौर पर देखने-समझने वालों में आज हर क्षेत्र के लोग शामिल हैं। एक तरफ कई वैज्ञानिक शोधों में इस दौरान बढ़े अवसाद की बात सामने आई है, वहीं समाज अध्ययन से जुड़े अध्येताओं का भी मानना है कि मानसिक तौर पर इस दौर में मनुष्य जितना कमजोर हुआ है, वह ऐतिहासिक तौर पर आपवादिक है। कोरोना संक्रमण का खौफ इतना बड़ा है कि इसकी चपेट में आते ही लोग आत्महत्या जैसा कदम तक उठा रहे हैं। यह गंभीर स्थिति है।
विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा लोगों के तेजी से अवसाद में डूबने से हो रहा है। दरअसल, अवसाद भी एक बीमारी है और यह जानलेवा साबित हो सकती है, इस बात को हाल तक लोग गंभीरता से नहीं लेते थे। पर अब अवसाद की समस्या लोगों में जीवन के प्रति गहरी निराशा के तौर पर देखने में आ रही है।
अवसाद के लक्षण
अवसाद को बीमारी न मानने की भूल वे लोग ही करते हैं जो उदासी और अवसाद को एक मान लेते हैं जबकि ऐसा कतई नहीं है। अवसाद यानी ‘डिप्रेशन’ एक मानसिक बीमारी है, जिसका संबंध मनोविज्ञान में किसी व्यक्ति की भावनाओं से जुड़े दुख या निराशा से होता है। अवसाद को ‘मूड डिसआर्डर’ के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।
हर व्यक्ति समय-समय पर उदासी का अनुभव करता है। मगर जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक लगातार नकारात्मक सोच, हताश मनोदशा में घिर जाए और अपनी पसंदीदा गतिविधियों में भी दिलचस्पी न ले, तो ये अवसाद के लक्षण हो सकते हैं।
उदासी भावनात्मक स्थिति है, तो तनाव जिंदगी की बड़ी घटनाएं (अच्छी और बुरी दोनों) और यहां तक कि मौसम के असर से भी पैदा होती है।
उदासी और अवसाद में फर्क इसके लक्षणों की तीव्रता और इसके बार-बार लौट आने से किया जा सकता है। यदि ये लक्षण दो हफ्ते तक रहते हैं, तो डिप्रेशन हो सकता है। बार-बार नाकामयाबी, नुकसान या किसी प्रियजन की मृत्यु आदि से भी ऐसा हो सकता है। किसी बड़ी और लंबी बीमारी के कारण भी व्यक्ति अवसाद में जा सकता है। परिवार में माता-पिता या कोई अन्य सदस्य अवसाद से पीड़ित है तो बच्चों में ऐसा होने का खतरा रहता है।
इच्छाशक्ति जरूरी
आमतौर पर डाक्टर अवसादग्रस्त व्यक्ति की काउंसलिंग करके रोग की वजह समझने का प्रयास करते हैं। इसके बाद आवश्यकता के अनुरूप वे 6-8 माह तक एंटीडिप्रेसेंट दवाएं देते हैं। दवाओं के साथ-साथ मनोचिकित्सा व व्यावहारिक चिकित्सा द्वारा रोगी की निराशाजनक सोच को बदलने का प्रयास किया जाता है।
इस दौरान मरीज को पारिवारिक सहयोग जरूरी होता है। इसमें इन सबसे अहम है व्यक्ति की अपनी इच्छाशक्ति। आप बगैर इच्छाशक्ति से अवसाद से बाहर नहीं आ सकते हैं।
करेंगे बात तो बनेगी बात
अवसाद से गुजर रहे लोगों के लिए इससे उबरने के लिए नियमित तौर पर ऐसे व्यक्ति से बात करना जिन पर वे भरोसा करते हों या अपने प्रियजनों के संपर्क में रहना रामबाण साबित हो सकता है। इसमें शर्म या संकोच जैसी कोई बात नहीं है। अपनी परेशानी किसी के साथ साझा करना, उसे दूर करने का सामान्य तरीका है और इसे कोई भी बुरा नहीं मानता है।
अवसाद में लोगों से कटने की जरूरत नहीं है। आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जितना ज्यादा जुड़े रहेंगे, उतना अच्छा होगा। पर दोस्तों-प्रियजनों से जुड़ने के साथ आप उन लोगों से जरूर खुद को दूर कर लें, जो नकारात्मकता से भरे होते हैं।
अहम तथ्य
’ सेहतमंद और संतुलित खानपान से शरीर और मन दोनों ही संतुलित रहते हैं। व्यायाम अवसाद को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। जब हम व्यायाम करते हैं तब सेरोटोनिन और टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन्स रिलीज होते हैं, जो दिमाग को स्थिर करते हैं।
’ रोजाना सात से आठ घंटे सोने वाले लोगों में अवसाद के लक्षण कम देखे जाते हैं।
’ अवसाद में भी संगीत सुनना अच्छा लगता है। यह तथ्य कई वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हो चुका है।
’ पुरानी बातों के बारे में सोचने के बजाय वर्तमान और भविष्य के बारें में सोचें।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें। )