दस-ग्यारह वर्ष का होने के बाद भी दीपक की बात-बात पर नाराज होने तथा मुंह फुलाने की आदत बन गई थी। कोई भी बात हो, दीपक ऐंठ कर चला जाता। मम्मी-पापा कोई भी खाने की चीज दें या कोई काम बताएं, दीपक ऐंठ कर एक ओर भाग जाता। सब घर वाले बड़े परेशान कि दीपक की यह गंदी आदत अगर छूटे तो कैसे? वे दीपक को तसल्ली से बार-बार समझाते भी, पर नाराज होना तो उसकी आदत का एक अंग बन चुका था। मम्मी-पापा बड़े दुखी थे कि यह आदत अगर दीपक के बड़े होने पर भी बनी रही, तो बड़ी मुश्किल होगी।

एक दिन दीपक कहीं खेलने गया हुआ था। तभी उसका दोस्त विक्रम उसके घर आया। विक्रम बहुत हंसमुख और मिलनसार था। दीपक के माता-पिता उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुए। विक्रम को देख कर उनके मन में यही आया कि काश, उनका बच्चा भी विक्रम जैसे स्वभाव का बन जाए। विक्रम ने आते ही दीपक के मम्मी-पापा को ‘नमस्ते’ की और पूछा- ‘दीपक कहां गया है अंकल-आंटी?’
दीपक की मम्मी ने कहा- ‘शायद खेलने गया है।’
‘उसने होमवर्क कर लिया है?’
‘हां, वह तो कर गया।’
‘एक बात है अंकल। दीपक थोड़ा तुनक मिजाज है। जरा-सी बात पर नाराज हो जाता है।’ विक्रम ने कहा।
विक्रम की बात सुन कर दीपक के माता-पिता एक पल को एक-दूसरे को देखने लगे। तभी विक्रम बोला- ‘कल क्लास में वह मुझसे इस बात पर नाराज हो गया कि मैं उसके साथ लाइब्रेरी तक नहीं गया था।’
‘हां विक्रम, पता नहीं क्यों दीपक इतना चिड़चिड़ा हो गया है। हम भी हमेशा इसी चिंता में घुलते रहते हैं। उसे समझाते भी हैं, पर वह तो वैसा ही बना रहता है। तुम समझाओ न उसे।’ दीपक की मम्मी ने विक्रम से कहा।
‘मुझे भी लगता है कि उसे अब समझाना ही पड़ेगा, नहीं तो उसकी आदत बिगड़ जाएगी। पर आपको सहयोग करना होगा। सहयोग इस अर्थ में कि वह मेरी शिकायत भी आकर करे तो आप उस पर ध्यान न देना।’ विक्रम ने कहा।
‘हां, ठीक है। उसकी आदत सुधर जाए, इससे बड़ी बात हमारे लिए क्या हो सकती है।’ दीपक के पापा ने कहा।
विक्रम चला गया। दूसरे दिन स्कूल में रेस्ट के समय मौका देख कर विक्रम ने ब्लैक बोर्ड पर एक मुंह फुलाए नाराज बालक का चेहरा बना कर नीचे लिख दिया- ‘दीपक’।

दीपक जब कक्षा में घुसा तो चित्र देख कर सकपका गया। पूरी कक्षा उसके सकपकाने पर हंस पड़ी। दीपक बहुत शर्मिंदा हुआ, उसे ऐसी हरकत करने वाले पर बड़ा क्रोध भी आ रहा था। उसे लगा कि उसे मुंह फुला कर नहीं रहना चाहिए, सो जबरदस्ती हंसने का प्रयास करने लगा।
दूसरे दिन फिर विक्रम ने ब्लैक बोर्ड पर लिख दिया- ‘बात-बात पर ऐंठने वाला कोई है, तो वह अकेला साथी है- ‘दीपक’। दीपक फिर कक्षा में घुसा तो यह हरकत देख कर पानी-पानी हो गया। कक्षा के सारे साथी फिर हंस पड़े। इस बार दीपक ने सफाई दी- ‘यह झूठ है’। तभी विक्रम खड़ा होकर बोला- ‘यह सच है। तुम बात-बात पर नाराज होते हो। अगर यह झूठ है तो पूरी क्लास को अपने घर ले जाकर अपने मम्मी-पापा से कहलवाओ कि तुम नाराज नहीं होते। करो हिम्मत।’ यह सुनते ही दीपक का हौसला पस्त हो गया। वह बगलें झांकने लगा। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह अपने साथियों को घर ले जाकर बात की पुष्टि कराए। सिर नीचा किए चुप होकर बैठ गया।

शाम को छुट्टी हुई तो दीपक विक्रम को एक ओर ले गया और बोला- ‘मुझे माफ कर दो विक्रम। अब मैं तुमसे कभी नाराज नहीं होऊंगा। ऐसा करोगे तो सारी क्लास मेरा मजाक बनाएगी और सब मुझे चिढ़ाने लगेंगे।’‘सच तो यह है दीपक, नाराज तुम मुझसे ही नहीं, घर में भी किसी से मत हो। हमेशा मेरी तरह प्रसन्नचित और हंसमुख रहो। इससे पढ़ाई में भी तेज बनोगे तथा सबके प्यारे भी बन जाओगे। मुंह फुलाने से आदमी मनहूस कहलाने लगता है। शपथ खाओ सदैव खुश रहोगे। मम्मी-पापा से कभी नाराज नहीं होगे।’ विक्रम ने कहा। दीपक ने विक्रम का हाथ दबा कर वादा किया। विक्रम बहुत प्रसन्न हुआ। अब तो दीपक खुशी-खुशी घर पहुंचा। पूरा घर उसकी चहचहाहट से भर गया। मम्मी-पापा ने दीपक के इस बदले हुए स्वभाव को देखा तो खुशी और आश्चर्य से भर उठे।वह हंसता हुआ मम्मी-पापा से लिपट गया और बोला- ‘मुझ माफ कर दीजिए मम्मी-पापा। विक्रम ने मुझे जीने का रास्ता बता दिया है। मैं अब कभी मुंह नहीं फुलाऊंगा। नाराज रहने से तो पढ़ाई भी ठीक तरह से नहीं हो पाती।’मम्मी बोली- ‘सही कहते हो दीपक। आदमी को खुश रहना चाहिए, ठीक विक्रम की तरह और दोस्त हो तो विक्रम जैसा, जिसने तुम्हें अच्छे मित्र की भांति रास्ता बताया है।’ विक्रम खुशी से पगलाया नाचने लगा और बोला- ‘पापा मैं खुशी का रहस्य जान गया हूं।’