मोनू के पापा दफ्तर से लौटे, तो उन्होंने आते ही मोनू को आवाज दी, पर मोनू की ओर से कोई जवाब नहीं आया। मोनू की मां ने बताया कि वह तो ऊपर छत पर पतंग उड़ा रहा है। मोनू के पापा ने कहा- ‘मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि उसे दिन भर पतंग उड़ाने से रोका करो। उसे जरा नीचे बुलाओ।’
मोनू की मां उसे नीचे ले आई। मोनू के पापा बोले- ‘देखो मोनू, अब तो तुम दिन भर पतंग उड़ाने लगे। थोड़ा पढ़ाई पर ध्यान दो। अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं में केवल सात दिन बाकी रह गए हैं।’
‘लेकिन पापा, मैं दिन भर पतंग कहां उड़ाता हूं। मैं तो बस अभी ऊपर गया था।’ मोनू ने कहा।
वे कहने लगे- ‘देखो, मैं तुम्हें फिर समझाता हूं कि तुम खेलो, पर इतना नहीं कि अपने पढ़ाई के लक्ष्य से ही भटक जाओ।’
इस बार मोनू की मम्मी बीच में बोल पड़ीं- ‘आप सारा दिन बस इसके पीछे पड़े रहते हो। आॅफिस से आए नहीं कि मोनू कहां है। सारे बच्चे खेलते-कूदते हैं। क्या यह थोड़ी देर भी न खेले?’
‘देखो, तुम इतना लाड़-प्यार मत दो कि यह बिगड़ने लगे। जरा सोचो, सात दिन बाद अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। इस परीक्षा में अंक कम आए, तो क्या पूरे परीक्षा-परिणाम पर असर नहीं पड़ेगा। उस दिन यह और खुद तुम दोनों पछताओगे।’ उन्होंने कहा।
‘आप चिंता मत करिए। यह पढ़ाई में इतना होशियार है कि नंबर कम आने का तो सवाल ही नहीं उठता।’ मोनू की मां बोली।
‘तो ठीक है, जो चाहे करो। मैं तो आज के बाद इससे कुछ कहने से रहा। मैं खेलना बुरा नहीं मानता, पर दिन भर जो बच्चा खेलता ही रहेगा, भला वह पढ़ाई को क्या समय दे पाएगा। अब तुम जानो और यह जाने। मैं तो चुप रहूंगा।’ वे बोले।
मोनू की मां ने मोनू से कहा- ‘जाओ बेटा खेलो।’
मोनू भाग कर छत पर चला गया और पतंग उड़ाने लगा।
अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं शुरू हो गर्इं। पर मोनू को पतंगबाजी का शौक, लत की माफिक लग गया था। मौका मिलते ही वह छत पर जा धमकता। पढ़ाई पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाता। परीक्षा के बाद अंक तालिका मिली, तो वह सन्न रह गया। उसके कक्षा में सबसे कम अंक आए थे। उत्तीर्ण तो वह सभी विषयों में था, लेकिन अंक सबसे कम थे। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह कक्षा के दूसरे छात्रों से आंख मिला सके। कुछ छात्र ऐसे भी थे, जो उसके कम नंबर आने पर मजाक कर रहे थे। अब उसे याद आया कि पापा उसे पतंग उड़ाने से क्यों रोक रहे थे। पतंग के खेल में इतना डूब गया वह कि पढ़ाई में पीछे रह गया।
मोनू स्कूल से घर की ओर चला, तो जैसे उसके पांव बेदम थे। घर आकर वह चुपचाप पलंग पर लेट गया। उसकी मां को मोनू के आने का पता चला, तो वह उसके पास आकर बोली- ‘बेटा, लेट क्यों गए, जाओ थोड़ी देर खेल आओ।’
मोनू को लगा कि मां भी जैसे उसका मजाक उड़ा रही है। वह कुछ नहीं बोला। मां ने फिर कहा- ‘क्यों उदास से पड़े हो। तबीयत तो ठीक है न? सच बताओ क्या बात है?’
मां की बात सुन कर मोनू रो पड़ा। उसने रोते हुए बस्ते में से अपनी अंक तालिका निकाल कर उन्हें थमा दी। मोनू की मां अंक तालिका देखते ही सकते में आ गर्इं। बोलीं- ‘यह क्या हुआ मोनू, इतने कम नंबर!’
‘हां मम्मी।’ यह कह कर वह मां से लिपट कर जोरों से सुबकने लगा। मां उसे दिलासा देने लगी। तभी मोनू के पापा भी आ गए। वे मोनू को इतने जोरों से रोता देख कर सहम गए। उन्होंने उसे कभी इतने जोरों से रोता नहीं देखा था। बोले- ‘क्यों, क्या हुआ मोनू की मम्मी?’डरते-डरते आंख झुकाए ही मोनू की मम्मी ने उन्हें अंक तालिका पकड़ा दी। मोनू के इतने कम नंबर देख कर उन्हें एक बार तो झटका लगा, लेकिन उन्होंने इस बात को प्रकट नहीं किया तथा बहुत ही सहज रूप में हंसते हुए बोले- ‘अरे बस इसी बात पर रोने लगे। क्या हुआ, अब पढ़ोगे तो यह कमी पूरी हो जाएगी।’
इस बार मोनू ने मम्मी को छोड़ दिया और वह पापा की टांगों से लिपट कर रोते हुए बोला- ‘नहीं पापा, मैंने आपका कहना नहीं माना।’
‘नहीं, रोओ मत मोनू। तुम तो समझदार हो, कितनी समझदारी की बातें करते हो। चलो चुप हो जाओ। तुम इस बात को महसूस कर रहे हो, बस यही तुम्हारा सबसे बड़ा प्रायश्चित है।’ उन्होंने कहा।
‘लेकिन पापा, आपका कहा मानता तो इतने कम नंबर नहीं आते।’
‘कोई बात नहीं बेटा, सुबह का भूला शाम को घर लौट आता है तो वह भूला नहीं माना जाता। तुम्हारी आंखें समय पर ही खुल गई हैं। अभी वार्षिक परीक्षाएं होंगी, तुम उसमें ज्यादा अंक ले आना। चलो उठो, हम साथ बैठ कर नाश्ता करेंगे।’ मोनू के पापा उसे खाने की मेज पर ले आए। मोनू की मम्मी ने चाय के साथ पकौड़ियां तल दीं। सब साथ-साथ खाने लगे। पर मोनू ने तो मन में संकल्प ले लिया था कि वह अब पतंग नहीं उड़ाएगा तथा जम कर पढ़ाई करेगा। खेलना चाहिए, पर जितना जरूरी हो उतना ही।
वार्षिक परीक्षाएं हुर्इं और परीक्षा परिणाम आया तो उसके मम्मी-पापा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मोनू पहले की तरह प्रथम श्रेणी से ही उत्तीर्ण हो गया था।
मोनू के पापा बाजार से पतंग-डोर ले आए और बोले- ‘जाओ मोनू, अब उड़ाओ जम कर पतंग। मैं खेलने से कब मना करता हूं।’ मोनू की मम्मी ने उसे गोद में उठा कर चूम लिया। घर खुशियों से भर गया।