सोनी पांडेय

नो न!…
हूं… सोने दो…
मत सुनो, कुंभकर्ण के वशंज… कहते, पैर पटकते सौम्या उठ कर बालकनी में आकर रेलिंग के सहारे खड़ी होकर स्माइली के आकार के चांद को देख मुस्करा उठी।… आंखों के कोर नमी सहेजे चांद को निहारते रहे और वह यादों की बस्ती में खोने लगी।… पिता मां के उभरे पेट पर कान लगाए अजन्मे बच्चे को पुचकार रहे थे। वह भी उनकी नकल करती मां के पेट पर चुंबन देकर बड़े प्यार से कहती- मेरा छोटा-सा भाई कब आएगा पापा? पिता उसे गोद में उठा घुमाते और कहते, जल्दी ही मां अस्पताल से लेकर आएगी।
स्नेह की रसभरी डोर जिसे सौम्या बार-बार थामने की कोशिश करती, अतीत के पन्ने टटोलती, उतनी ही बेचैनी बढ़ती जाती। पेट में शिशु करवटें बदलने लगा था… वह चाहती कि अमित को बताए कि उनका बच्चा अब महसूस कर सकता है उनका स्पर्श। वह चाहती कि पति पेट में चलते हुए बच्चे से बतियाए… पर अफसोस कि उसे अपनी भागती दुनिया से इतर सब कुछ बस निबटाऊ काम लगता। आॅफिस से लौट कर लैपटॉप लेकर बैठ जाता… टोकने पर ऑफिस का जरूरी काम कह कर नाराजगी जताता। वहां से निबट मोबाईल लेकर बैठ जाता। सौम्या के नाराज होने पर छत पर चला जाता। यह एक लाइलाज बीमारी बनती जा रही थी। सोते, बैठते, खाते यहां तक कि बाथरूम में भी मोबाइल साथ रहता। सौम्या की ऊब बढ़ती जा रही थी। स्कूल से लौट कर वह अकेली अपनी दुनिया में इस कदर ऊब महसूसने लगी थी कि घर में दम घुटने लगा। भाग कर कभी पार्क में जाकर बैठती, कभी बालकनी, तो कभी छत पर जाकर घंटों सामने के पार्क में खेलते बच्चों को निहारती। एक सुकून भरी मुस्कान चेहरे पर फैल जाती और पेट पर हाथ रख कर वह घंटों मन की सुकोमल बातें अजन्मे बच्चे से करती, छत पर टहलती रहती। एक दिन पड़ोसी सान्याल ने अमित से कहा भी… यार अमित! भाभीजी की तबियत तो ठीक है न?
क्यों, क्या हुआ उसे? भली चंगी तो है।… उल्टे उसने ही सौ सवाल दाग दिए।
बुरा न मानना… लेकिन उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं लगती… मानषी कह रही थी की अकेले घंटों छत पर बड़बड़ाती रहती हैं। टेक केयर यार!… किसी अच्छे…
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की अमित दनदनाता हुआ लिफ्ट की ओर भागा। दरवाजे पर लगातार दस्तक सुन सौम्या ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला। अमित का चेहरा गुस्से से लाल देख सहम गई।
‘क्या हुआ, किसी से लड़ाई हो गई?…’ वह डरी थी।
अमित अपना बैग सोफे पर पटक कर उबल पड़ा- ‘…बिल्डिंग वाले तुम्हें पागल कहने लगे हैं… समझी।… सुबह-सुबह सान्याल ने मूड खराब कर दिया।…’
सौम्या अवाक, उसका मुंह ताकती रही- ‘हुआ क्या?’ धीरे से पूछा।
वह सीधे उसके मुंह के पास आकर खड़ा हो गया- ‘अच्छा ये बताओ, अकेले में छत पर क्या बड़बड़ाती हो?’
उसकी आवाज बहुत ऊंची थी। इतनी कि मन की सुकोमल परतें चटक जाएं। वह रोते हुए पेट पर हाथ रख कर बस इतना कह सकी- ‘…बेबी से…।’ और फूट-फूट कर रोने लगी। अमित अब भी चिल्ला रहा था- ‘बेवकूफ… अपनी ये सेंटी हरकतें घर में किया करो। सोसाइटी में मेरा बैंड मत बजवाओ… प्लीज।’ वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहा था।
आगे वह कुछ और कहता कि तभी मोबाइल बज उठा- ‘…सॉरी सर… बस… बस पहुंच रहा हूं…।’ फोन पर कहते हुए वह बैग उठा कर फुर्ती से बाहर निकल गया।
घंटों रोने के बाद सौम्या संयत हुई। सिर भारी हो गया था। मन घबरा रहा था। वह किसी से कुछ कहना चाहती थी। दरवाजा खोल कर बाहर निकली। सामने की पड़ोसन अपना कुत्ता टहलाने ले जा रही थीं। ‘हाय सौम्या!’ कह कर मुस्कुराती निकल गर्इं। बगल के फ्लैट से बच्चों के रोने की आवाज आ रही थी। मां-बाप नौकरी पर निकल चुके थे। आया टीवी चला कर बैठी होगी अपने में मगन।… उसकी घबराहट बढ़ने लगी।… दरवाजा लॉक कर लिफ्ट की ओर तेज कदमों से बढ़ गई।… लिफ्ट की दीवार से सिर टिका आंखें मूंद लिया। जैसे तेज बवंडर उठा हो… लोग बेतहाशा भाग रहे थे… सरपट… वह कुछ चेहरे पहचानती थी… पकड़ना चाहा और हाथ फिसल जा रहा था। अचानक एक झटके से लिफ्ट रुकी। सिक्योरिटी गार्ड ने आवाज दी- ‘मैडम!’
वह जेसे नींद से जागी हो। बाहर निकल वह पार्क में एक पेड़ की छाया में आ बैठी। सामने कुछ घरों की आया बच्चों को झूला झुला रही थीं। कुछ बच्चे गेंद खेल रहे थे। वह खेलते बच्चों को मुग्ध भाव से देख रही थी।… अचानक एक बच्चा गिर गया। उसका घुटना छिल गया। बच्चा मम्मा, मम्मा कह कर रोए जा रहा था। उसकी आंखें भर आर्इं।… आया ने उठा कर उसे चुप कराया और वापस खेलने भेज कर दूसरी से बतियाने लगी।
जाड़े की गुनगुनी धूप में खिले रंग-बिरंगे फूलों पर मंडराती तितलियों को देख कर सौम्या मंद मुस्कान सहेजती कभी बच्चों को देखती, कभी तितलियों को।… चारों तरफ रंग और हरितिमा के बीच बच्चों की मोहक मासूम हंसी का कलरव। वह जैसे परियों के देश में जा पहुंची।… एक नन्हा फरिश्ता उसकी अंगुली थाम कर चल पड़ा हो फूलों की वादियों में।
‘सौम्या… अरे यार! तुम यहां बैठी हो और मैं पूरी बिल्डिंग में पागलों की तरह खोजता फिर रहा हूं।’ अमित नाराज हो रहा था। उसकी आवाज में चिंता साफ झलक रही थी।
‘तुम इतनी जल्दी लौट आए?’
‘हां, मैंने आज अपनी बेगम के लिए छुट्टी ले ली है।’ हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा- ‘चलो जल्दी रेडी हो जाओ, पिक्चर चलते हैं।’ जेब से टिकट निकाल कर उसे दिखाया।
वह मुस्कुरा कर उठ गई। सौम्या का मन नहीं था, पर अमित के अनुनय पर बेमन से तैयार होकर चल पड़ी। जानती थी कि आज अमित उसे लेकर परेशान है, इसलिए यह सब करके अपना अपराधबोध दूर करना चाहता है।
दोनों दिल्ली की भागती सड़कों से गुजरते हुए मेट्रो स्टेशन पहुंचे। कार पार्किंग में लगा कर टिकट ली और मेट्रो की प्रतीक्षा करने लगे। आज अमित गलती से भी मोबाइल हाथ में नहीं ले रहा था। सौम्या को देख कर खुशी हुई कि शायद अमित कुछ-कुछ परेशानी समझ रहा है। सामने सर्र की आवाज के साथ मेट्रो रुकी। एक जत्था निकला, एक दाखिल हुआ। अंदर भीड़ थी। एक लड़की ने सौम्या के उभरे पेट को देख कर अपनी सीट छोड़ उसे हाथ पकड़ कर बिठा दिया। सौम्या ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। लड़के, लड़कियां, बूढ़े, जवान से लेकर हाथों में गट्ठर लिए फेरी खोमचे वाले तक हाथ में मोबाइल लिए व्यस्त थे। उसे घुटन होने लगी। उसने अमित की तरफ देखा। बहुत देर से धैर्य रखे अमित भी हाथ में मोबाइल लिए टिपटाप करने में व्यस्त था। उसके चेहरे पर तरह-तरह के भाव आ-जा रहे थे। उसने नजरें फेर ली। बगल में बैठी लड़की गूगल पर ब्यूटी टिप्स सर्च कर रही थी। दूसरी शायद अपने प्रेमी से चैटिंग कर रही थी। रह-रह कर चेहरे पर लाली फैल जा रही थी। सौम्या चारों तरफ बार-बार देखती और समझने की कोशिश करती। जब सारी कोशिशें बेकार हो गर्इं, तो अचानक उसने अपना हाथ पर्स में डाला और अपना फोन निकाल कर नेट आॅन कर गूगल पर टाइप किया बेबी केयर टिप्स। एक-एक कर ढेर सारी किताबें, विडियो के लिंक उभरने लगे। उसकी आंखें चमक उठीं।… एक-एक को खोल देखने लगी। प्यारे-प्यारे बच्चों की मनभावन तस्वीरें देख उसके चेहरे पर बार-बार मुस्कान फैल जाती। वह खोई हुई थी… हाथ में मोबाईल… स्क्रीन पर उभरती किलकारियों की अनुगूंज। अमित ने देखा- एक सुकून भरी लंबी सांस लेकर उसने सौम्या के सिर पर हाथ रख कर पूछा- ‘क्या देख रही हो?’
बहुत दिनों बाद सौम्या के चेहरे पर पहले वाली मुस्कान लौटी- ‘बेबी केयर टिप्स।…’ सौम्या चहकते हुए बता रही थी। राजीव चौक स्टेशन आने की उद्घोषणा सुन कर सौम्या का हाथ थाम कर अमित ने उठने का आग्रह किया- ‘चलो स्टेशन आ गया।’
सौम्या खड़ी हो गई। फोन अब भी हाथ में था… पीछे मुड़ कर देखा। सबकी गर्दन मोबाइल में झुकी हुई थी। मुस्कुराते हुए अमित को देखा और बाहर निकल आई।