भाजपा नेता व वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल का कहना है कि विपक्ष इसका उसी तरह विरोध कर रहा, जैसे तीन तलाक पर बने कानून और अनुच्छेद-370 के खात्मे पर किया था। उनका आरोप है कि विपक्ष ने अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के तहत वक्फ विधेयक पर विवाद खड़ा किया। पाल का दावा है कि जेपीसी ने वक्फ से जुड़े सभी भागीदारों से बातचीत के बाद 428 पन्नों की रपट बनाई है जिसमें 288 पन्ने असहमतियों के बिंदुओं पर हैं। उन्होंने कहा कि वक्फ की मूल भावना परमार्थ की थी जो इसकी संपत्तियों पर कहीं नहीं दिख रही है। नई दिल्ली में जगदंबिका पाल से कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 इन दिनों बीच बहस में है। राजग सरकार के लिए यह अहम मुद्दा बन चुका है। आप इसकी संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं। समिति की रपट संसद में पेश हो चुकी है। आज की स्थिति में आप इस विधेयक को कैसे देखते हैं?
जगदंबिका पाल: वक्फ संशोधन विधेयक सरकार लेकर आई थी। सरकार ने 1995 के वक्फ संपत्तियों के मुख्य कानूनों में 44 संशोधन किए थे। राजग सरकार के संसदीय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने पिछले साल आठ अगस्त को यह बिल प्रस्तुत किया था। रिजीजू ने बताया था कि इस विधेयक को लेकर आने के पीछे सरकार की मंशा यह है कि एक पारदर्शी कानून बने। वक्फ की संपत्ति का तात्पर्य है, जब कोई व्यक्ति धार्मिक या परमार्थ कार्यों के उद्देश्य से अपनी संपत्ति ईश्वर के नाम पर समर्पित कर देता है। देखने की बात यह है कि इसके पीछे का उद्देश्य कितना पवित्र है। वक्फ का भाव यही था कि इसकी आय से कमजोर महिलाओं, विधवाओं, गरीबों, अनाथ बच्चों की मदद की जाए। इसकी आय का उनके इलाज और शिक्षा में इस्तेमाल हो।

वक्फ संपत्ति का मूल मिजाज पवित्र, आपके दावे के अनुसार सरकार की मंशा पूरी तरह पारदर्शी व पवित्र है। फिर इस पर इतना विवाद क्यों?
जगदंबिका पाल:
मुझे लगता है कि एक एजंडे के तहत पूरे देश में इसे एक बड़े विवाद का रूप दे दिया गया। सरकार की मंशा इसके पवित्र उद्देश्य को बरकरार रखने की ही थी। रेलवे और सेना के बाद तीसरे नंबर पर वक्फ की ही संपत्ति आती है। अब पूरे देश में इतनी बड़ी संपत्ति हो और कहीं कोई मेडिकल कालेज, शिक्षा संस्थान व परमार्थ संबंधी अन्य संस्थान न हों। हकीकत में देखिए तो वक्फ की संपत्तियों के जरिए परमार्थ यानी जनकल्याण का कौन सा काम हो रहा है? हां आए दिन यही शिकायत मिलती है कि किसी मुतवल्ली, ‘केयरटेकर’ ने वक्फ की संपत्ति को बेच दी या खुर्दबुर्द कर दिया। रिजीजू ने इस संशोधन विधेयक के अपने शुरूआती उद्बोधन में कहा था कि हमारा उद्देश्य यही है कि वक्फ संपत्ति का उसके मूल उद्देश्य के तहत इस्तेमाल हो। गरीब, विधवा, अनाथ बच्चों को इसका फायदा मिले। देखिए, वर्तमान केंद्र सरकार बहुमत में है। वक्फ संशोधन विधेयक पर आम राय बनाने की पहल सरकार ने ही की। सरकार ने सदन के अध्यक्ष से अनुरोध किया कि कृपया इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया जाए। जेपीसी को भेजने के बाद इस पक्ष के सभी भागीदारों जैसे शिया वक्फ बोर्ड, सुन्नी वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, विपक्ष के सदस्य, इस्लाम के विद्वान, सेवानिवृत्त जज, कुलपति, जकात फाउंडेशन…कहने का मतलब है कि अल्पसंख्यकों की अगुआई करने वाली हर संस्था को बातचीत में शामिल किया गया। सरकार चाहती थी कि सभी भागीदारों से बातचीत होने के बाद एक मुकम्मल रपट बन कर आए।

संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में क्या आप मानते हैं कि सकार वक्फ की संपत्तियों से जुड़े सभी भागीदारों तक पहुंचने में कामयाब हुई?
जगदंबिका पाल:
सरकार ने उन सभी को भागीदार बनाया जिन्हें अभी मैंने उद्धृत किया। इसके बाद 38 बैठकें हुई हैं। इस मसले पर कम से कम 119 घंटे की बैठकें हुई हैं। हमने इसके अध्ययन के लिए देश के कई इलाकों का दौरा किया। हम सबसे पहले महाराष्ट्र गए। वहां माहिम दरगाह वालों से लेकर लगभग सभी मुसलिम पक्षों से मिले। वहां से गुजरात, अहमदाबाद, हैदराबाद, चेन्नई, बंगलुरु गए। फिर हमने इस समिति के लिए और समय देने का अनुरोध किया। सदन के माननीय अध्यक्ष ने जेपीसी को कहा था कि आपको शीत सत्र के अंतिम दिन अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी। तब तक जेपीसी उत्तर भारत के कई इलाकों का दौरा नहीं कर पाई थी। उत्तर प्रदेश, बिहार में वक्फ की बहुतायत में संपत्तियां हैं। बिहार, बंगाल और ओड़ीशा भी हमें जाना था। इसलिए हमने स्पीकर महोदय से अनुरोध किया कि इसका समय बढ़ा दीजिए। हमें बजट सत्र तक के लिए समय का विस्तार मिल गया। फिर हम भुवनेश्वर, गुवाहाटी, कोलकाता, पटना, लखनऊ गए। वहां हमने लगातार बैठकें कर सभी भागीदारों से बात की। हमने हर किसी को मौका दिया, सबको पूरी जानकारी दी कि सरकार इस वक्फ बिल में क्या चाहती है। संयुक्त संसदीय समिति की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हमने इसमें संशोधन मांंगा। दिल्ली में बैठक हुई। बैठक में हमने बिंदुवार सभी मुद्दों को उठाया। सभी संशोधन चाहे सत्ता पक्ष के हों या किसी अन्य के उसे मतदान के बाद बहुमत के जरिए शामिल किया। उन 44 संशोधनों में से हमने 14 संशोधन शामिल किए। यह पूरी प्रक्रिया रिकार्ड में है। बहुमत से हुए संशोधनों को हमने स्वीकार किया। रपट को ग्रहण कर सदन में जाने से पहले हमने फिर बैठक बुलाई और उसमें मतदान हुआ। 15-11 के बहुमत से रिपोर्ट को शामिल किया गया।

विपक्ष बुलंद आवाज में आरोप लगा रहा है कि वक्फ संशोधन विधेयक पर उसकी असहमित के स्वरों को अस्वीकार किया गया।
जगदंबिका पाल: अभी तक आपको बताई पूरी प्रक्रिया के बाद जेपीसी ने असहमतियों को मांगा। यह जेपीसी जैसी लोकतांत्रिक समितियों की बुनियादी प्रक्रिया होती है। आप सोचिए, जेपीसी की 428 पन्नों की रिपोर्ट है। इसमें 288 पन्ने असहमतियों वाले बिंदुओं के हैं। कभी सुना है आपने कि इतनी व्यापक प्रक्रिया में जिसमें इतने भागीदारों के सुझाव हों उसमें 288 पन्ने असहमित को समर्पित हों? यह रपट की विषय-सूची में लगा हुआ है। फिर भी देश को गुमराह करने के लिए विपक्ष ऐसा आरोप लगा रहा है।

विपक्ष अपने आरोपों के साथ अभी इसे मुख्य राजनीतिक एजंडा बना चुका है कि वक्फ के संशोधनों पर उसकी नहीं सुनी गई है। केंद्र सरकार पर आरोप है कि वह संसदीय परंपराओं का पालन नहीं करती है।
जगदंबिका पाल:
इस मुद्दे पर सदन में देश के गृह मंत्री अमित शाह जी खड़े हुए। उन्होंने कहा कि अगर ये माननीय सदस्य लोकसभा में कह रहे हैं कि हमारी असहमतियां नहीं मानी गई हैं, हटा दी गई हैं तो हमारी पार्टी को कोई एतराज नहीं है कि आप उन सभी असहमतियों के बिंदुओं को इक्ट्ठा कर दर्ज कर लें जिसे शामिल किया जाएगा। अगर सरकार की या मेरी ऐसी मंशा होती असहमतियों को हटाने की तो मैं इस बात का विरोध करता। जब तक जेपीसी का अध्यक्ष सहमत नहीं होगा तो रपट ग्रहण करने के बाद उसमें संशोधन नहीं हो सकता है। हमारी यही कोशिश रही कि संसदीय प्रक्रिया में लोगों का विश्वास रहे। लोगों के बीच यह संदेश नहीं जाए कि असहमति के बिंदुओं को शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए गृह मंत्री ने कह दिया कि हमें कोई आपत्ति नहीं है। बुनियादी तौर पर इसे राजनीतिक एजंडा बना दिया गया है। जेपीसी के गठन के बाद मेरा यही मकसद था कि इस मसले से जुड़ा हर व्यक्ति समिति तक पहुंच कर अपनी समझ को दर्ज करा सके। हमने ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश की। हमने इसे सार्वजनिक मंच पर रखा। कोई भी इस रपट को देख कर इस पर अपने विचार रख सकता है। जेपीसी को ईमेल भेज सकता है।

क्या राजग सरकार को भरोसा था कि वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक को नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू जैसे सहयोगियों का साथ मिल जाएगा।
जगदंबिका पाल: बिलकुल भरोसा था। राजग सरकार को सभी सहयोगी दलों का पूरा साथ मिला भी।

इस विधेयक पर विरोध के और भी स्वर हैं। राजग सरकार पर आरोप रहा है कि वह हिंदू-मुसलिम विभाजन वाली मानसिकता पर काम करती है। अब तक वक्फ संपत्ति के संदर्भ में संशोधन की जरूरत नहीं पड़ी थी। आरोप है कि इस विधेयक के जरिए सरकार अपने ध्रुवीकरण के एजंडे पर ही काम कर रही है।
जगदंबिका पाल:
ऐसे ही बेबुनियाद आरोप और बेतुके सवाल तीन तलाक पर थे। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आरोप लगाया गया कि तीन तलाक पर कानून बना कर सरकार शरिया कानून में दखल दे रही है। इसे इस्लाम में हस्तक्षेप बताया गया। जबकि ज्यादातर मुसलिम देशों में तीन तलाक पर पहले से प्रतिबंध लगा हुआ था। रोटी जल गई, पति को गुस्सा आया और पत्नी को तीन तलाक दे दिया। इतने बड़े अत्याचार को खत्म करने को इस्लाम में दखल देना कहा गया। तीन तलाक पर कानून बनने के बाद पूरे देश की मुसलिम महिलाओं से सरकार को समर्थन मिला। तीन तलाक से भयावह तो हलाला था जिसे सोच कर भी हम सब कांप जाते हैं। ऐसी भयावह कुप्रथा को जब मोदी सरकार ने खत्म किया तो इसे इस्लाम पर हमला कह कर कुप्रचारित किया गया। इसे आम लोगों के बीच में मुसलिम धर्म में दखल के रूप में पेश किया गया। अब कानून बन गया है तो अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं आत्मविश्वास से लबरेज हैं। वे ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 खत्म होने के वक्त कहा गया कि खून की नदियां बह जाएंगी। आज जम्मू-कश्मीर पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र बन चुका है। अंग्रेजों ने दिल्ली में 1911 में 123 संपत्तियां लीं। किसानों को पैसा देकर उसका अधिग्रहण कर लिया। 1954 में वक्फ बोर्ड बनने के बाद 1970 में लुटियन जोन के आसपास उन तमाम 123 संपत्तियों के बारे में दावा कर दिया गया कि ये वक्फ की हैं। ये 123 संपत्तियां लाखों करोड़ की हैं। यह हिंदू-मुसलिम का नहीं, विशुद्ध तुष्टीकरण का मामला है। 2014 में जब संसदीय चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी तो मनमोहन सिंह ने एक कैबिनेट बैठक ली। बैठक में कहा गया कि शहरी विकास मंत्रालय की जो 123 संपत्तियां हैं जिन्हें अंग्रेजों ने लिया था, उन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा कर रहा है। मनमोहन सिंह की अगुआई में फैसला लिया गया कि ये संपत्तियां दावेदारी के अनुसार वक्फ बोर्ड को दी जाएं। प्रधानमंत्री के नाते आप सरकारी संपत्तियों के अभिभावक थे। लेकिन आपने तो एक राजा की तरह व्यवहार किया। मैं मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री हो जाऊं तो देश की संपत्ति किसी को भी दे दूं? आप सुशासन के लिए हैं न कि तुष्टीकरण के लिए हैं। वह तो भला हुआ कि आलोक कुमार (विश्व हिंदू परिषद से जुड़े वकील) सुप्रीम कोर्ट में गए और अदालत ने इस मामले में ‘स्टे’ दे दिया। यह हिंदू-मुसलिम का सवाल उन लोगों के द्वारा ही उठाया जा रहा है जो तुष्टीकरण करना चाहते हैं। सरकार की संपत्ति को वक्फ बोर्ड के नाम कर अपना वोट बढ़ाना चाहते थे। यह लड़ाई इसकी है। सरकार संशोधन लेकर आई थी कि वक्फ की दावेदारी का निपटारा कलक्टर करेगा। विपक्ष ने आपत्ति उठाई, अगर कलक्टर ही जिले में सरकारी संपत्ति का अभिभावक है तो फिर वह कैसे निष्पक्ष फैसला देगा। इस आपत्ति को वाजिब मानते हुए यह जिम्मेदारी सचिव स्तर के अधिकारी पर सौंपी गई। जांच के बाद संपत्ति का हक जिसकी तरफ जाएगा उसे सौंप दिया जाएगा। सुझावों के बाद पंचाट में इस्लाम के विद्वान को भी शामिल किया गया। अब इन संशोधनों में हिंदू-मुसलिम कहां है?

अगर केंद्र सरकार की मंशा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नहीं रहती है तो चुनाव के समय कभी रामजादों बनाम …जादों और अस्सी-बीस की लड़ाई क्यों खड़ी कर दी जाती है?
जगदंबिका पाल:
यह सवाल जिस पक्ष की तरफ से किया जाता है उनके लिए जवाब यह है कि हर जगह जनता उनके खिलाफ जा रही है। अस्सी-बीस होने के बाद भी दिल्ली में कांग्रेस का खाता ही न खुले? कांग्रेस को इस बात का अहसास हो जाना चाहिए कि अब तो तुष्टीकरण की राजनीति बंद कर दे नहीं तो हर जगह शून्य हो जाएंगे। देश तुष्टीकरण से नहीं चलता। देश किसी एक वर्ग को खुश कर नहीं चलता कि आप फलां जाति के हैं तो फलां जाति के लोगों का ही समर्थन कीजिए। ऐसे करने वाले लोगों को जनता ही नकार देती है। मोदी जी कहते हैं-सबका साथ, सबका विकास। सुशासन का सूत्र यही है। यह सूत्र दीनदयाल उपाध्याय का है, जिन्होंने ‘अंत्योदय’ की अवधारणा दी थी। ‘अंत्योदय’ का मतलब है, समाज के अंतिम छोर पर बैठे गरीब आदमी के चेहरे पर मुस्कान आ जाए। यही ‘अंत्योदय’ सुशासन है।

आपकी सलाह में आम मुसलिम नागरिकों को इन संशोधनों को कैसे देखना चाहिए।
जगदंबिका पाल:
यह कानून जब पास होगा तो सबसे ज्यादा फायदा हाशिये पर के मुसलिम नागरिकों को मिलेगा। अपने हक से वंचित महिलाएं, परित्यक्ता, विधवाएं, अनाथ इससे लाभान्वित होंगे। इस मुद्दे पर तुष्टीकरण कौन कर रहा है? इतने अहम मसले पर जाकिर नाइक कूद गए कि अगर संसद के ‘पोर्टल’ पर एक करोड़ लोग जाकर असहमति दे दें तो यह बिल खारिज हो जाएगा। भारत की लोकतांत्रिक संसदीय राजनीति को जाकिर नाइक जैसा एक भगोड़ा प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है तो आम लोगों को सोच लेना चाहिए कि उनके हितों के साथ कैसी तुष्टीकरण की राजनीति हो रही है। इसके खिलाफ बाहरी शक्तियों के लगने के आरोप लगे। ऐसी कोशिशों को लेकर मुझे चिट्ठी मिली। केंद्रीय गृह-मंत्रालय जांच कर रहा है कि इसके खिलाफ माहौल बनाने में किस तरह की शक्तियां काम कर रही हैं। क्या इसके लिए बाहर से भी फंडिग हुई है? पहले दिन से उनकी कोशिश यही थी कि अल्पसंख्य तबके में डर पैदा कर दिया जाए कि इस कानून के बनते ही मस्जिद चली जाएगी, इमामबाड़ा चला जाएगा। मैं चुनौती देता हूं कि कोई यह सिद्ध करके बताए कि इन संशोधनों के पास होने के बाद कोई मस्जिद चली जाएगी। जब सारी संपत्तियों का पंजीकरण हो रहा है तो क्या वक्फ संपत्ति आज भी पुराने ढर्रे पर ही चले? अभी जब हमने सभी राज्यों से सूचना मांगी तो उत्तर प्रदेश में लगभग डेढ़ सौ संपत्तियां ऐसी हैं जिस पर वक्फ दावेदारी कर रहा है। इस कानून के आने से इस तरह के किसी भी विवाद का पटाक्षेप हो जाएगा। अगर पहले की मस्जिद, इमामबाड़ा, ईदगाह, कब्रिस्तान हैं तो रहेंगे ही।

प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी
विशेष सहयोग : पंकज रोहिला