ग्लोब या मानचित्र के बगैर किसी भी देश की अक्षांशीय या देशांतरीय स्थिति का ज्ञान नहीं हो सकता। सचाई यह है कि अलग-अलग स्थानों की भौगोलिक-प्राकृतिक और कई अन्य जानकारियों के लिए नक्शे पर निर्भर रहना होता है। नक्शा किसी बड़े क्षेत्र का ही नहीं, छोटे क्षेत्र का भी बनाया जाता है। नक्शा बनाने की कला को कार्टाेग्राफी कहा जाता है। प्राचीन काल में चीन की कार्टोग्राफी सबसे उन्नत थी। यूनान में भी इस कला का काफी प्रयोग होता था।
दुनिया का सबसे पहला नक्शा 2300 ईसा पूर्व में बेबीलोन में मिट्टी से बनाया गया था। मध्यकाल में यूरोप में इस कला का बोलबाला था। इस दौरान ज्यादातर नक्शा धार्मिक भावनाओं को केंद्र में रखकर बनाए जाते थे। उस दौरान टी-ओ नक्शे का सबसे अधिक प्रचलन था। इस नक्शे में येरूसलम को धरती का केंद्र दिखाया गया था।सिसली जो इटली में पड़ता है के राजा रोजर-द्वितीय के दरबार में अल इदरीसी नाम के एक विद्वान थे। उन्होंने विश्व का नक्शा बनाया। यह बारहवीं शताब्दी की बात है।पंद्रहवीं सदी में प्रिंटिंग की शुरुआत ने कार्टोग्राफी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया। सोलहवीं सदी में तांबा प्लेट से लकड़ी पर खोदाई कर नक्शा बनाने की शुरुआत हुई।सोलहवीं सदी के बाद इस क्षेत्र में काफी बदलाव आया। अब नक्शे में नदी, समुद्र तट, पहाड़, द्वीप आदि को प्रदर्शित किया जाने लगा। इससे सैन्य अभियानों में खास-तौर से काफी सहूलियतें आर्इं। वल्दसीमुलर्स ने नई खोजों के साथ 1507 में संसार का नक्शा बनाया। अगले ही साल रोसेली ने ऐसा विश्व मानचित्र बनाया जिसमें पूरा विश्व दिखाया गया था।कोलंबस ने इस क्षेत्र में काफी शोध किए। उनके प्रयासों से नक्शे को पढ़ना आसान हो सका।
उन्होंने 1569 में प्रोजेक्शन के जरिए बने नक्शे को प्रकाशित करवाया। 19वीं सदी के दौरान यूरोप में मैट्रिक सिस्टम का आविष्कार हुआ। इसमें ग्रीनविच प्राइम मैरीडियन भी बनाया गया।19 वीं सदी के दौरान पूर्ण नक्शा बनाया जाने लगा। इसमें वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल होता था। आज के नक्शे रिमोट सेंसिंग और आॅब्जर्वेशन तकनीक से बने होते हैं। 1970-80 के दौरान जियोग्राफिकल इन्फॉरर्मेशन सिस्टम सामने आया। इसके तहत सॉफ्टवेयर, डिजिटलन डाटा, कनेक्शन स्टोरिंग जैसी सुविधाएं मिलीं और नक्शा बनाने के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया।
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