मानस मनोहर
भंडारे वाले आलू
उत्तर भारत के प्राय: हर शहर में दुकानों पर सुबह नाश्ते में पूड़ी या कचौड़ी के साथ आलू की झोल वाली सब्जी परोसी जाती है और लोग चटखारे लेकर खाते हैं। मंदिरों के भंडारे में भी यह सब्जी परोसी जाती है। जिसने भी भंडारे की आलू सब्जी खाई होगी, वह यही कहेगा कि वैसी सब्जी किसी और चीज की बन ही नहीं सकती। आलू की भंडारे वाली सब्जी बनाना बहुत आसान है।
यह झटपट बन कर तैयार हो जाती है। इसे पांच बड़े आलू के अनुपात में बनाते हैं, अगर इससे अधिक बनाना हो, तो इसी मात्रा में बाकी चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू को पहले उबाल कर उनके छिलके उतार लें। फिर एक कड़ाही में दो चम्मच तेल गरम करें और उसमें आधा छोटा चम्मच मेथी दाना, इतना ही साबुत धनिया, जीरा, सौंफ और अजवाइन का तड़का लगाएं। तड़का तैयार हो जाए तो उसमें आलू को हाथ से दबा कर मसलें और डाल दें।
फिर ऊपर से एक छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, दो चम्मच धनिया पाउडर, एक चम्मच जीरा पाउडर या सब्जी मसाला, आधा चम्मच हल्दी पाउडर, दो चम्मच अमचूर, चौथाई चम्मच हींग पाउडर और जरूरत भर का नमक डाल कर दो गिलास पानी डालें और सारी चीजों को अच्छी तरह मिलाएं।
हींग, पाउडर की जगह दानादार हो तो चौथाई चम्मच से कम मात्रा भी ले सकते हैं। कड़ाही पर ढक्कन लगा दें और मध्यम आंच पर आठ से दस मिनट तक पकने दें। फिर ढक्कन खोलें और उसमें एक बड़े चम्मच के बराबर कसूरी मेथी लेकर हथेलियों पर रगड़ें और सब्जी में डाल दें। फिर ढक्कन लगा दें। भंडारे वाली आलू की सब्जी तैयार है।
बनारसी कचौड़ी
बनारसी कचौड़ी एक तरह से पूड़ी ही होती है। वह राजस्थानी या दिल्ली वाली कचौड़ी की तरह खूब भरवां डाल कर नहीं बनाई जाती और न उसमें मैदे का उपयोग किया जाता है। घर के गेहूं वाले आटे से ही बनती है। इसलिए वह खाने में पूड़ी की तरह ही होती है। पर उसमें थोड़ा-सा भरावन डाला जाता है, इसलिए उसे कचौड़ी बोलते हैं। हर जगह का अपना जायका होता है, उसका आनंद लेते रहना चाहिए।
इसे बनाने में किसी कौशल की जरूरत नहीं। जैसे पूड़ी के लिए आटा गूंथते हैं, वैसे ही गूंथ लें। फिर इसमें डालने के लिए भरावन तैयार करें। इसका भरावन दाल से बनता है। इसके लिए धुली मूंग दाल अच्छी रहती है। इसके लिए आधा कटोरी मूंग दाल को कम से कम आधे घंटे के लिए भिगो दें। फिर छान कर अच्छी तरह पानी निथार लें।
अब एक ग्राइंडर में इस दाल को डालें और ऊपर से चौथाई छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, चौथाई चम्मच अजवाइन और इतनी ही मात्रा में सौंफ लें। चुटकी भर नमक डालें और दो-तीन झटके देकर पीस लें। दाल बिल्कुल महीन नहीं पिसनी चाहिए। बस टूट जाए, दाल के कुछ दाने साबुत भी रहें, तो अच्छा है। भरावन तैयार है। अब कड़ाही में तेल गरम करें।
आटे में से पूड़ी के बराबर के पेड़े तोड़ें और उनके बीच में चौथाई छोटे चम्मच के बराबर भरावन बंद करके पूड़ी बेल लें। जैसे पूड़ी सेंकते हैं, वैसे ही सुनहरा रंग आने तक सेंक लें। बनारसी कचौड़ी तैयार है। इसे भंडारे वाले आलू के साथ परोसें, स्वाद बेजोड़ होगा।
केले की भजिया
कच्चे केले के कोफ्ते, चिप्स, सूखी सब्जी तो खूब खाई होगी, पर उसकी भजिया यानी पकौड़े कम ही लोगों ने खाए होंगे। दक्षिण भारत में यह खूब खाया जाता है। इसे नाश्ते के तौर पर भी खा सकते हैं और चाहें तो भोजन के साथ भी। केले की भजिया बनाने के लिए चार कच्चे केले लें। चाकू से उनका छिलका उतार कर लंबे आकार में ही दो या तीन टुकड़े करें। कुछ लोग इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में भी काटते हैं, पर लंबाई में काटें, तो देखने में बहुत अच्छा लगता है। फिर इन टुकड़ों को दस से पंद्रह मिनट के लिए पानी में डुबो कर रख दें। इस तरह इनकी चिकनाई दूर हो जाएगी। फिर इन्हें निकाल कर पानी को अच्छी तरह निथर जाने दें।
अब एक छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, इतना ही धनिया पाउडर, चौथाई चम्मच हल्दी और चौथाई छोटा चम्मच नमक डाल कर अच्छी तरह मिलाएं, ताकि सारे मसाले केले के टुकड़ों पर चिपक जाएं। अब इसके लिए घोल तैयार करें। इसके लिए आधा कप बेसन और चौथाई कप चावल का आटा लें। चावल का आटा न हो तो इतनी ही मात्रा में पोहा लेकर ग्राइंडर में पीस कर डालें।
इसमें चौथाई से थोड़ा कम छोटा चम्मच के बराबर हींग पाउडर, चौथाई चम्मच अजवाइन, इतना ही लाल मिर्च पाउडर, नमक और हल्दी पाउडर डालें और थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए गाढ़ा घोल तैयार करें। जैसा घोल आलू, बैगन वगैरह के पकौड़े बनाने के लिए तैयार करते हैं, वैसा ही। घोल ऐसा हो कि केले के टुकड़ों पर अच्छी तर चिपका रह सके।
अब तेल गरम करें और केले के टुकड़ों को बेसन के घोल में लपेट कर तलने के लिए डालें। आंच मध्यम कर दें। भजिया को पलट-पलट कर सुनहरा होने तक तलें। इसे लाल या हरी चटनी के साथ नाश्ते के तौर पर खा सकते हैं और चाहें तो चावल-दाल के साथ बजके के तौर पर भी। पकौड़े की तरह खाएं तो इसके ऊपर चाट मसाला छिड़क लें, स्वाद और निखर जाएगा।