जिस तेजी से हमारी जीवन-शैली बदल रही है, उससे हमारा पाचन तंत्र प्रभावित होना लाजिमी है। बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की देखभाल पर खास ध्यान दें। छोटे बच्चों में पेट से जुड़ी समस्याएं आम होती हैं। इसकी वजह यह है कि उनकी पाचन शक्ति इतनी मजबूत नहीं होती कि हर तरह का खाना पचा सकें। इस कारण छोटे बच्चों में गैस, कब्ज, बदहजमी जैसी समस्याएं आम बात है। इसलिए बच्चों के खानपान का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। छोटे बच्चों का पेट शुरू में भोजन का आदी नहीं होता। हालांकि यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। बच्चे समय के साथ इसका तालमेल बिठा लेते हैं। लेकिन अगर पेट के कारण बच्चा परेशान हो रहा हो तो डॉक्टर को दिखाना जरूरी हो जाता है। कई बार ऐसा होता है कि बच्चों को किसी भी तरह का खाना हजम नहीं होता। पेट में जलन होती है। इस वजह से भूख कम हो जाती है और बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। बच्चों की कुछ समस्याएं ऐसी हैं जिनसे उनके पेट और पाचन संबंधी गड़बड़ियों का पता चल जाता है।
हिचकी
पाचन संबंधी समस्या से बच्चे के पेट में अम्लता बढ़ती है और इस कारण पेट में वायु की अधिकता होती है। पेट में गैस भर जाने से मरोड़ और दर्द होता है। मांसपेशियों में सिकुड़न के कारण बच्चों को हिचकी आती है, जो उनके शरीर पर बुरा प्रभाव डालती है।
सांस में दिक्कत
पेट में बढ़ा हुआ अम्ल सिर्फ पाचन को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि इसकी वजह से बच्चों को सांस लेने में भी परेशानी होती है। कई बार यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है और बच्चों में अस्थमा का कारण भी बन जाती है। कभी-कभी रात को सोते समय बच्चे की नाक से आवाज भी निकलती है जो हानिकारक है।
उल्टी होना
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि खाने के बाद बच्चे उलटी कर देते हैं। इसकी वजह होती है भोजन का सही से न पचना। बच्चों में यह समस्या कई बार घातक भी सिद्ध हो सकती है इसलिए इस पर पूरा ध्यान देना चाहिए, ताकि यह बीमारी भयानक रूप न ले।
अगर बच्चे के सीने में जलन हो रही है या वह गंदी डकारें ले रहा है तो समझ जाइए कि उसे एसिडिटी हुई है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि बच्चों को कम समय के अंतराल में थोड़ा-थोड़ा खाना खिलाएं। इसके बावजूद अगर अम्लता की समस्या बनी रहती है तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं।
सर्दी से बचाव
सर्दी में बच्चे अक्सर खांसी-जुखाम, तेज बुखार या निमोनिया जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। बदलते तापमान और वातावरण में फैले जीवाणुओं से बचाव में इनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि बच्चों की देखभाल में थोड़ी सावधानी बरतें। अत्यधिक ठंडे कमरे में शिशु को हाइपोथर्मिया हो सकता है, जबकि अत्यधिक गर्म कपड़े लपेटने से बुखार आ सकता है।
मालिश
धूप में छोटे बच्चों की मालिश करना अच्छा रहता है, लेकिन इस दौरान वह ठंडी हवा से बचाया जाना चाहिए। आमतौर पर हम नहलाने से पहले शिशु की मालिश करते हैं, पर नहलाने के बाद भी मालिश करना ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि तेल की यह परत बच्चों के लिए गर्मी बनाए रखने का काम करती है। बस यह ध्यान रखना है कि बच्चों की मालिश खुली हवा में नहीं, गर्म कमरे में करनी चाहिए।
बोतल का दूध
बच्चों के पाचन की एक बड़ी समस्या बोतल का दूध भी है। बोतल का दूध पीने वाले बच्चे मोटापे के शिकार हो सकते हैं। क्योंकि बोतल में बच्चे मां का दूध नहीं पीते, बल्कि बाहर का दूध पीते हैं। इसमें वसा की मात्रा काफी ज्यादा होती है जो बच्चों मोटा बनाती है। इसके अलावा बोतल से दूध पीने के और भी नुकसान होते हैं।
सांस लेने में समस्या
कई बार माताएं सोते हुए बच्चे के मुंह में दूध की बोतल लगा देती हैं। इससे कभी-कभी गले की नली में दूध की कुछ मात्रा रह जाती है और जिससे बच्चे को सांस लेने में कठिनाई होती है और उसके फेफड़ों से संबंधित बीमारी हो सकती है, इसमें निमोनिया सबसे आम बीमारी है।
बैक्टीरिया और वायरस
बच्चों में बैक्टीरिया और वायरस आसानी से फैल सकते हैं। ऐसा खासकर तब होता है जब बच्चों के हाथ गंदे हों। ऐसे में एक के हाथ में मौजूद बैक्टीरिया अन्य के हाथ में आसानी से चले जाते हैं। ये बैक्टीरिया हाथ के जरिए पेट तक पहुंच जाते हैं। नतीजतन डायरिया हो सकता है। जरूरी यह है कि बच्चों के हाथ साफ रखें। साथ ही आहार विशेष की सफाई का भी खास ख्याल रखें। ल्ल