ऐसे गैजेटों, औजारों और हथियारों के प्रस्ताव किए जा रहे हैं, जिन्हें महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल कर सकें। लेकिन, सवाल यह है कि अगर समाज की मानसिकता में बदलाव नहीं हुआ तो ये तरकीबें कितनी कारगर होंगी? केरल में दलित छात्रा से बलात्कार की घटना जहां हुई, वहां सीसीटीवी लगा था। लेकिन, बलात्कारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। सरकार की तरफ से मोबाइल कंपनियों को सभी फीचर और स्मार्ट फोनों में पैनिक बटन लगाने का निर्देश जल्द ही जारी हो सकता है।

असल में, सरकारें जब थोड़ी सहृदयता दिखाती हैं तो वे उन उपायों की घोषणा करती हैं जिनसे स्त्रियां खुद को थोड़ा सुरक्षित बना सकती हैं। हालांकि ये उपाय महिलाओं को खुद ही आजमाने हैं। यह एक किस्म का विरोधाभास है जो हर ऐसे उपाय में दिखता है जिसमें स्त्रियों को ही अपनी हिफाजत के जतन के लिए कुछ न कुछ करना है। पैनिक बटन ऐसा होगा, जिसे दबाने पर महिला के कुछ परिचितों और नजदीकी पुलिस स्टेशन को उसकी स्थिति का अलर्ट संदेश मिल सकेगा। ऐसा ही इंतजाम 2015 के आरंभ में दिल्ली में किया गया था।

दिल्ली में लागू किए गए मोबाइल एप्लिकेशन- हिम्मत में व्यवस्था की गई थी कि मुसीबत में पड़ने पर कोई महिला इस एप्लिकेशन के माध्यम से पैनिक बटन दबाकर या मोबाइल को जोर से हिलाकर पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना भेज सकती है। जिस तरह से मोबाइल फोन कई समस्याओं का इलाज साबित हुआ है, उसी तरह महिला सुरक्षा में भी इस तरह के पैनिक बटन के कारगर साबित होने की उम्मीद की जा रही है। बल्कि कई अन्य उपाय दो-एक साल में हमारे सामने आए हैं। जैसे 2014 में महिलाओं के लिए विशेष रूप से बनाए गए निर्भीक नाम के बेहद हल्के रिवॉल्वर की चर्चा थी। आत्मरक्षा के लिए ऐसे ठोस हथियार के अलावा काली मिर्च के स्प्रे (पेपर स्प्रे) तगड़ा करंट मारने वाले गैजेट, खास तरह की अलर्ट करने वाली सीटी और महिलाओं को अपराधियों से बचाने या किसी आपात स्थिति में उनकी मदद के लिए किसी को पुकारने के संबंध में तरह-तरह के औजारों के बारे में तब से कहा-सुना जा रहा है, जब से दिल्ली का कुख्यात गैंग-रेप कांड हुआ था।

महिलाओं को रिवॉल्वर थमाने और उनके मोबाइल फोन में पैनिक बटन लगाने और कई अन्य तरह के एप्लिकेशन डालने संबंधी इन विचारों और इससे संबंधित नेकनीयती पर संदेह नहीं किया जा सकता। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसे उपाय वास्तव में महिलाओं को कोई सुरक्षा-बोध दे पाएंगे और क्या ऐसी चीजों से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की दर में कोई कमी आएगी? इन उपायों को कुछ तथ्यों की रोशनी में देखने से इनकी हकीकत का पता चल सकता है। जैसे कि अक्सर यह कहा जाता रहा है कि अगर महिलाएं बड़ी संख्या में घर से बाहर निकलेंगी और समाज में हर जगह उनकी उपस्थिति रहेगी तो उनके साथ होने वाले हादसे कम होंगे। पर कामकाज में यानी सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के बावजूद उनके खिलाफ होने वाले हादसों की संख्या भी बढ़ रही है। दावों के बावजूद शहरों तक में महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ नाम की ही है। पुलिस-प्रशासन चाहे जितनी चौकसी बरतने की बात कह ले, पर हकीकत में तकरीबन हर रोज वहां छोटी बच्चियों, लड़कियों और महिलाओं के साथ हादसे हो रहे हैं।

साल दर साल चलाए जा रहे जागरुकता अभियानों के बावजूद देश के किसी भी शहर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आई है। कई कानूनी सुधारों के बाद भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की दर बढ़ी है। दिल्ली गैंगरेप कांड के बाद सरकारें और प्रशासन सजगता की दुहाई देते नहीं थके हैं, लेकिन महिलाओं से छेड़छाड़ और अपराध की घटनाएं कम होने की बजाय बढ़ गई हैं। साफ है कि कड़े कानूनी प्रावधानों के बावजूद कई दांवपेच ऐसे हैं जो अपराधियों को अभयदान देते हैं। गांव-कस्बों में भी महिलाएं कतई सुरक्षित नहीं हैं। वहां का जड़ समाज तो अभी भी महिलाओं को अपने पांव की जूती से ज्यादा अहमियत नहीं देता, पर शहरों के कथित सभ्य समाज को तो इस बीच बदलना चाहिए था। वहां जागरूकता आई है, वहां ज्यादा पढ़ेलिखे लोगों का जमावड़ा है, वहां कायदे-कानून का ज्यादा भय है, लेकिन वहां के हालत तो और भी बदतर हो रहे हैं। यही सबसे बड़ी चिंता की बात है।

असल में समस्या कानूनी पहरेदारी और महिलाओं में खुद की सुरक्षा के प्रति और सजग-सतर्क होने की नहीं, बल्कि सामाजिक बेचारगी की है। एक छोर पर सरकार और कानून है जहां महिलाओं को आगे लाने और उसे सुरक्षित माहौल देने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन दूसरे छोर पर वही मर्दवादी, अहंकारी और पितृसत्तात्मक समाज है जो स्त्री को पहले तो आधुनिकतम तकनीकों का सहारा लेकर गर्भ में कुचलने का प्रयास करता है, उसके बाद भी अगर वह स्त्री बची रहे और संघर्ष करके घर से बाहर की दुनिया में पुरुषों की बराबरी की कोशिश करे तो वहां छेड़छाड़, तेजाब और बलात्कार जैसे दंश देकर उसे अपनी औकात में रहने को कहा जाता है। यह हमारे समाज का विद्रूप ही है कि एक ओर वह नार्यस्तु पूज्यते कहकर उसकी पूजा करने का दंभ भरता है, दूसरी ओर अपने दुष्कृत्यों से सार्वजनिक उपस्थिति के उसके सारे दरवाजों को ऐसे कसकर बंद कर देना चाहता है ताकि वह दोबारा घर से बाहर आने और पुरुषों का मुकाबला करने का दुस्साहस न कर सके। ऐसा लगता है कि छेड़छाड़ और दुष्कर्म जैसी घटनाओं के बल पर हमारा पुरुष समाज महिलाओं को चुनौती देता है कि अब से बिजनेस या दफ्तर में उनकी बराबरी में आने का ख्वाब देखना छोड़ दें और बेहतर होगा कि घर की चारदीवारी में ही रहें। शायद इसके पीछे का सच यह है कि हमारा समाज महिलाओं को अपनी जागीर समझता है। एक विडंबना यह भी है कि समाज की बढ़ती संपन्नता और शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ-साथ कानूनों में तब्दीली के बावजूद इस मानसिकता में कोई खास सुधार नहीं आ रहा है।

ऐसी स्थितियों में साफ है कि अगर कोई महिला रिवॉल्वर रखने में सफल हो जाती है, पैनिक बटन वाला मोबाइल अपने पास रखती है या मोबाइल में तमाम एप्लिकेशन डाउनलोड कर लेती है तो भी उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। हो सकता है कि अपराधी अब सबसे पहले उसका मोबाइल ही छीन ले। और फिर मोबाइल फोन व रिवॉल्वर साथ रखने के बाद भी कोई महिला बुरी नीयत वाले उन लोगों से कैसे खुद को सुरक्षित रखेगी जो उसे किसी सुनसान सड़क पर अंधेरे में नहीं बल्कि दिनदहाड़े अपने ही घर में, कार्यस्थल पर और ट्रेन-बस में आते-जाते मिल सकते हैं। महिलाओं को ऐसे लोगों से महफूज बनाने के लिए पैनिक बटन वाला मोबाइल, रिवॉल्वर या पेप्पर स्प्रे थमाना ठीक वैसा ही जैसा भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लोगों को खुद ही स्टिंग ऑपरेशन करने के लिए कहना। सवाल यह है कि क्या यह जिम्मेदारी सिर्फ एक महिला की है कि वह खुद को बदनीयती से भरे लोगों से बचने का प्रबंध करे, क्या हमारे समाज को इससे कोई सरोकार नहीं है।

इस प्रसंग में एक पहलू बाजार का भी है। अभी से ही मोबाइल कंपनियां शिकायत करने लगी हैं कि पैनिक बटन की अनिवार्यता मोबाइल फोन की कीमत पर असर डालेगी। अनुमान है कि इससे हरेक मोबाइल फोन की कीमत न्यूनतम 400 रुपए बढ़ सकती है। ऐसे में कंपनियों को अपने मोबाइल फोन की बिक्री पर असर पड़ने की आशंका है, तो खरीदार स्त्री के लिए भी मोबाइल की महंगाई नए संकट खड़े कर सकती है। गांव-देहात की महिलाएं, जो पहले से ही मोबाइल फोन जैसे तकनीकों प्रबंधों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानतीं, मौका पड़ने पर पैनिक बटन भी दबा पाएंगी, इसमें पूरा संदेह है।