भारत की महिलाओं ने लंबा और श्रमशील सफर तय किया है। योग्यता और क्षमता के बावजूद स्त्री होने भर से कई मोर्चों पर पीछे रह जाने की पीड़ा झेलने वाली आधी आबादी अब हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। हाल के बरसों में अंतरिक्ष, खेल, विज्ञान, राजनीति और तकनीक से लेकर सामाजिक मुद्दों की मुखर आवाज बनने तक कई उपलब्धियां महिलाओं ने अपने ही नहीं, देश के हिस्से भी की हैं। हालांकि कई मामलों में समाज की तयशुदा सोच का स्तर आज भी ज्यों का त्यों है, पर बेहतरी की ओर बढ़ते कदमों की यह यात्रा निरंतर जारी है।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘यूएन वुमन’ के अनुसार भारत ने लैंगिक समानता के मोर्चे पर तेजी से प्रगति की है। हाल के वर्षों में महिला नेतृत्व और सशक्तीकरण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अहम बदलाव आए हैं। खासकर पंचायतों की नीतियों और कार्यक्रमों में ज्यादा निवेश करने और बुनियादी महिला नेतृत्व पर ध्यान देने जैसे स्थानीय स्तर पर किए जा रहे प्रयास बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।

लैंगिक समानता से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर भारत की प्रगति की चर्चा करते हुए कुछ समय पहले ‘यूएन वुमन’ भारतीय प्रतिनिधि सूजन जेन फर्ग्यूसन ने कहा था कि बहुत कुछ पाया जा चुका है, शेष चुनौतियों को दूर करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की जरूरत होगी, जो सामाजिक मानदंडों, व्यवस्थागत स्थितियों और आर्थिक बाधाओं के मामले में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी पर बात कर सके। रेखांकित करने योग्य पक्ष है कि मौजूदा परिवेश में महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में तेजी से बढ़ भी रही है। हाल ही में ‘रिक्रूटमेंट एंड ह्यूमन रिसोर्सेज फर्म’ ‘टीमलीज’ की रपट के मुताबिक विनिर्माण क्षेत्र में महिला प्रशिक्षुओं की मांग में छह गुना वृद्धि देखी गई है। स्पष्ट है कि विनिर्माण क्षेत्र में महिला प्रशिक्षुओं की बढ़ती मांग आगामी समय में कार्यबल में स्त्रीशक्ति को पुख्ता करने वाली है। बढ़ोतरी का यह आंकड़ा औद्योगिक संसार में एक बड़े बदलाव की बानगी है।

महिला प्रशिक्षुओं की मांग विशेष रूप से आटोमेटिव और इलेक्ट्रानिक्स विनिर्माण क्षेत्रों में देखी जा रही है। साथ ही फार्मा, खाद्य प्रसंस्करण और चिकित्सीय उपकरणों जैसे क्षेत्रों की कंपनियों में भी महिलाओं को प्रशिक्षण देने का चलन बढ़ा है। विनिर्माण कार्यबल में आधी आबादी की भागीदारी बढ़ना समावेशिता और लैंगिक विविधता के मोर्चे पर वाकई एक सुखद बदलाव है। साथ ही, महिला श्रमबल के लिए नए मार्ग खुलने का सूचक भी है।

विचारणीय है कि देश के कार्यबल में महिलाओं को एक तयशुदा छवि से बाहर देखने का भाव कम ही रहा है। बदलती स्थितियां कार्यबल में महिला श्रमशक्ति के लिए मौजूद बंधी-बधाई सोच से परे, विशेष कौशल और नवीन दृष्टिकोण के साथ कार्य करने के मार्ग खुलने की बानगी है। इसका सीधा अर्थ है कि स्त्री-पुरुष के भेद से परे योग्यता के आधार पर कर्मचारियों को चुना जाने लगा है। पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान माने जाने वाले कार्यक्षेत्रों में महिला प्रशिक्षुओं की बढ़ती मांग हर स्तर पर स्त्री-पुरुष के भेद को पाटने वाला महत्त्वपूर्ण बदलाव कहा जा सकता है। इसी बदलाव ने स्त्रियों की बढ़ती भागीदारी को बल दिया है।

यहां तक कि कई कंपनियां ग्रामीण महिलाओं को भी प्रशिक्षण देकर आगे लाने की योजना बना रही हैं। यों भी खेती-किसानी से लेकर गृह उद्योगों तक, गांव की आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं का योगदान सदा से अहम रहा है। आज दस करोड़ महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं। कृषि, बागवानी, पशुधन, डेयरी, मछली पालन, खाद्य प्रसंस्करण और वस्त्र उत्पादन जैसी गतिविधियों में बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। भारत के सहकारी क्षेत्र में आज साठ फीसद से अधिक भागीदारी महिलाओं की है। निस्संदेह, यह परिवर्तन समग्र विकास को बल देने वाला है। स्त्रियों की हिस्सेदारी के जुड़ा यह पक्ष देश के सतत विकास को मजबूती देने के साथ ही व्यक्तिगत रूप से भी आर्थिक और पारिवारिक स्तर पर सार्थक बदलाव का द्योतक है।

भारतीय परिवारों में स्त्रियां धुरी के समान बहुत कुछ थामे रहती हैं। अब राष्ट्र की उन्नति में भी उनकी प्रभावी भागीदारी देखने को मिल रही है। मौजूदा दौर में प्रगतिशील सोच रखने वाली महिलाएं जीवन से जुड़े हर पहलू पर बहुत सधा दृष्टिकोण और दायित्व-बोध का भाव रखती हैं। यही कारण है कि शिक्षित और स्वावलंबी स्त्रियों के बढ़ते आंकड़े समाज में भी बुनियादी बदलाव ला रहे हैं। विशेषकर पारिवारिक माहौल में बड़ा बदलाव आया है। वर्ष 2024 की केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय की रपट के अनुसार पिछले छह वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिला कार्यबल में बढ़ोतरी हुई है। इस रपट के मुताबिक देश में महिला शिक्षा का परिदृश्य भी बदल रहा है।

वर्ष 2017-18 में देश में 34.5 फीसद महिलाएं स्नातकोत्तर थीं। जबकि 2023-24 में यह आंकड़ा 39.6 फीसद हो गया। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त महिलाओं की संख्या में भी 25.3 फीसद का इजाफा हुआ है। समझना कठिन नहीं कि शिक्षा के आंकड़े आम जीवन में सजगता और कामकाजी दुनिया में महिलाओं की मौजूदगी को पुख्ता करने वाले होते हैं। पिछले वर्ष आई ‘टीमलीज डिजिटल’ की रपट के मुताबिक 2027 तक गैर-प्रौद्योगिकी व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी एक-चौथाई तक बढ़ने की आशा है। इस रपट के अनुसार गैर-प्रौद्योगिकी कारोबारी क्षेत्रों में 2023 में स्त्रियों की भागीदारी दर 19.4 लाख कार्यबल थी। 2027 तक इसके 24.1 लाख कर्मचारियों तक पहुंचने की उम्मीद है। फिलहाल नए कर्मचारियों से लेकर शीर्ष पदों तक प्रौद्योगिकीय भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी मात्र 0.5 फीसद है। तकनीक से बढ़ता जुड़ाव दूरदराज के क्षेत्रों में भी स्त्रियों की बेहतरी को बल दे रही है।

विचारणीय है कि हमारे परंपरागत ढांचे में सामाजिक-सांस्कृतिक हालात से लेकर आर्थिक सुविधाओं और पारिवारिक सहयोग तक, बहुत कुछ महिलाओं के जीवन की दिशा तय करता है। ऐसे पक्षों पर सरकारी नियम-कानून ही नहीं, समाज का भी साथ मिले, तो स्त्रियों से जुड़े बदलावों को और गति मिलेगी।