सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को लेकर हाल में दो रपटें आई हैं- एक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की और दूसरी नीति आयोग की। दोनों आधिकारिक रपटें हैं। इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण (एएसयूएसई) भी आया है।
बुनियादी तथ्य
अब समझते हैं कि इन दोनों रपटों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के बारे में कौन-से बुनियादी तथ्य हैं? वर्तमान वर्गीकरण के अनुसार, सूक्ष्म उद्यमों में निवेश सीमा 2.5 करोड़ रुपए तक और कारोबार सीमा 10 करोड़ रुपए तक है; लघु उद्यमों में निवेश 25 करोड़ रुपए और कारोबार सीमा 100 करोड़ रुपए तक है; और मध्यम उद्यमों में 125 करोड़ रुपए और 500 करोड़ रुपए तक है। इस वर्गीकरण से यह स्पष्ट है कि भारत में कुछ हजार उद्यमों को छोड़ कर बाकी सभी उद्यम एमएसएमई हैं।
एमएसएमई की कुल संख्या का वर्गीकरण करें, तो सूक्ष्म उद्यमों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है: सूक्ष्म- 98.64 फीसद; लघु-1.24 फीसद; और मध्यम- केवल 0.12 फीसद है। इनके स्वामित्व में प्रोपराइटरशिप (59 फीसद), भागीदारी (16), एलएलपी (1), प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (23) और पब्लिक लिमिटेड कंपनी (1) शामिल हैं।
- भारत में करीब सात करोड़ चौंतीस लाख एमएसएमई हैं। इनमें से लगभग छह करोड़ बीस लाख मार्च 2025 तक उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत हैं।
- एमएसएमई क्षेत्र में 24 फीसद (करीब 30 लाख करोड़ रुपए) का ऋण अंतर है; सेवा उप-क्षेत्र में यह अंतर 27 फीसद है और महिला स्वामित्व वाले उद्यमों में यह 35 फीसद है।
एमएसएमई ने 2023-24 में भारत के व्यापारिक निर्यात में लगभग 45 फीसद का योगदान किया। कुल मिलाकर, 2024-25 में निर्यात करने वाले एमएसएमई की संख्या 1,73,350 थी (जो एमएसएमई की कुल संख्या का एक फीसद है)। निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में- सिले-सिलाए वस्त्र, रत्न और आभूषण, चमड़े के सामान, हस्तशिल्प, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और वाहन उपकरण शामिल हैं। एक को छोड़कर सभी कम तकनीक वाले सामान हैं।
एमएसएमई के लिए ऋण सहायता योजनाओं और विकास योजनाओं की भरमार है। रपट पढ़ते हुए मैंने कम से कम दो सबसिडी योजनाओं, चार क्रेडिट गारंटी योजनाओं और कम से कम तेरह विकास योजनाओं की गिनती की। 2025-26 के बजट में पहली बार उद्यमियों के लिए एक योजना और एक क्रेडिट कार्ड योजना की घोषणा की गई। इसमें एक नए ‘फंड आफ फंड्स’, एक ‘डीप टेक फंड आफ फंड्स’ और एक नए ‘फुटपाथ कारोबारी निधि’ (पीएम स्वनिधि) की भी घोषणा है। एमएसएमई रोजगार सृजन का प्राथमिक स्रोत होते हैं। दावा किया जाता है कि यह क्षेत्र लगभग 26 करोड़ रोजगार सृजित करता है।
रोजगार हैं, आदमी नहीं
अब, मुख्य प्रश्न पर आते हैं। रपट में एमएसएमई क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियां इस रूप में सूचीबद्ध की गई हैं- कुशल श्रमिकों की कमी, कौशल में अंतराल और प्रतिभा को आकर्षित करने में कठिनाई।
इस निष्कर्ष से देश में बेरोजगारी की पूरी कहानी पता चलती है। बड़े उद्योग (जिनमें 125 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश और 500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार है) उच्च शैक्षणिक योग्यता और उच्च कौशल वाले व्यक्तियों को रोजगार देते हैं, जो कि अधिकतर बेरोजगारों के पास नहीं है। दूसरी ओर, एमएसएमई को श्रमिकों की आवश्यकता है; फिर भी, अगर उनके पास श्रमिकों की कमी है और प्रतिभा को आकर्षित करने में उन्हें कठिनाई आती है, तो क्यों? अफसोसनाक, लेकिन अपरिहार्य निष्कर्ष यह है कि सबसे पहले, नौकरियों के लिए आवेदकों के पास अपेक्षित शिक्षा या कौशल नहीं है। दूसरी बात, कि उद्यम की संरचना या पारिश्रमिक के कारण प्रस्तावित नौकरियां आकर्षक नहीं हैं।
संरचनात्मक तथ्यों और रोजगार नतीजों का मिलान करने से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि भारत के युवाओं में उच्च बेरोजगारी क्यों है।
अप्रैल 2025 में भारत की जनसंख्या 146 करोड़ थी। श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) जनसंख्या का वह फीसद होती है, जो या तो काम कर रही है या सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश में है। यह 55.6 फीसद या लगभग 81 करोड़ है। श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) कुल जनसंख्या में कार्यरत लोगों के अनुपात को परिभाषित करता है। यह 52.8 फीसद या लगभग 77 करोड़ है।
बेरोजगार लोगों की वास्तविक संख्या में अंतर है, यानी 4 करोड़। यह एक बड़ी संख्या है, लेकिन याद रखा जाना चाहिए कि यह संख्या ‘सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश’ करने वालों की संख्या से बाहर है। लाखों लोग ऐसे हैं, जिन्होंने विभिन्न कारणों से रोजगार की तलाश छोड़ दी है। आधिकारिक बेरोजगारी दर 4 करोड़/ 81 करोड़ है, जो 5.0 फीसद के बराबर है।
समाधान का रास्ता
एमएसएमई में रोजगार पाने वालों की सबसे बड़ी संख्या ‘सूक्ष्म’ उद्यमों में है- 98.64 फीसद। यह उजागर तथ्य है कि सभी एमएसएमई में स्वामित्व और भागीदारी का हिस्सा 75 फीसद है। यानी, 26 करोड़ ‘रोजगार’ में से अधिकतर परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के हिस्से हैं, जो परिवार द्वारा संचालित उद्यमों में काम करते हैं। ‘लघु’ और ‘मध्यम’ (एमएसएमई का 1.36 फीसद या लगभग दस लाख) उद्यम ही वास्तव में लोगों को रोजगार देते हैं, जहां मालिक और कर्मचारी का रिश्ता होता है।
- नौकरियों का ‘आपूर्ति’ पक्ष दस लाख एमएसएमई से आना चाहिए। नौकरियों के लिए ‘मांग’ पक्ष उन युवा पुरुषों और महिलाओं से आना चाहिए, जो स्कूल छोड़ चुके हैं या जिनके पास स्कूली शिक्षा है या जिनके पास बुनियादी कला या विज्ञान की डिग्री है।
संभावित नियोक्ता कर्ज की कमी, दमनकारी विनियमन और कई योजनाओं और अनुपालनों से प्रभावित होते हैं। संभावित कर्मचारियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, कौशल की कमी और प्रशिक्षण न मिले होने के कारण अड़चन पेश आती है। संक्षेप में, ‘प्रतिभा’ की बहुत कमी है। शासन को इन कमियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पहला पड़ाव कौशल प्रशिक्षण के साथ स्कूली शिक्षा है। अगला पड़ाव एसएमई (ध्यान दें कि इसमें से ‘एम’ को हटा दिया गया है) को केवल एक उदार ऋण-सह-ब्याज सबसिडी योजना के साथ मदद करना है। इसे सरल रखा जाना चाहिए।