राजनीति अजीब चीज है। सो जितना प्रचार राहुल गांधी का भारतीय जनता पार्टी कर रही है इन दिनों, उतना कांग्रेस के लोग नहीं कर रहे हैं। केंद्र सरकार के मंत्री और प्रवक्ता जब भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के कवच के पीछे से दिखते हैं तो विषय कुछ भी हो, किसी न किसी तरह घूम कर आ जाते हैं राहुल गांधी पर। नेहरू के इस वारिस पर थोपना शुरू करते हैं कांग्रेस पार्टी की प्रशासनिक और नैतिक नाकामियां। पिछले हफ्ते राहुल गांधी ने पूछा एक ट्वीट के जरिए कि क्या रक्षा मंत्री स्पष्ट कर सकते हैं कि लद्दाख में चीनी सैनिक भारत की भूमि पर अभी तक उपस्थित हैं या नहीं तो हंगामा कर दिया टीवी और सोशल मीडिया पर कई मंत्रियों और प्रवक्ताओं ने।

राहुल गांधी को याद दिलाया इन्होंने कि जवाहरलाल नेहरू के दौर में चीन ने भारत की कितनी जमीन हड़प ली थी लद्दाख में। इतना गुस्सा दिखा आला राजनेताओं के बयानों में कि शक-सा होने लगा है मुझे। शायद इन लोगों को भी डर लगने लगा है कि प्रधानमंत्री में अब वह ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वाली बात नहीं रही है।

वैसे तो मोदी के दूसरे दौर के शुरू होने के कुछ ही महीनों बाद ऐसा लगने लग गया था कि उनकी तथाकथित राजनीतिक सूझबूझ और प्रशासनिक काबिलियत पर सवाल उठने लगे थे। बड़े-बड़े फैसले लिए गए, लेकिन उनके अमल में इतनी गलतियां दिखीं, इतनी जल्दी कि यकीन करना मुश्किल हो गया है कि ये फैसले सोच-समझ कर, सुनियोजित ढंग से लिए गए थे। दूसरे दौर का पहला अहम फैसला था अनुच्छेद-370 को हटा कर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करना।

तीन टुकड़े कर दिए गए इस राज्य के और वादे किए गए विकास और परिवर्तन की बहार लाने के। एक साल बाद अराजकता इतनी है कश्मीर घाटी में कि हर दूसरे दिन आतंकवादी हिंसा की कोई घटना सामने आती है। इतने असुरक्षित हैं कश्मीर के लोग कि हिंदू सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी आतंकवादियों ने पिछले हफ्ते, बावजूद इसके कि इन्होंने एक वायरल वीडियो में सुरक्षा की मांग की थी प्रशासन से। कहां से आएगा विकास अगर इंटरनेट बंद करने और महीनों कर्फ्यू लगने के बाद भी कश्मीर घाटी में यह हाल है?

मोदी के दूसरे दौर का दूसरा बड़ा फैसला था नागरिकता कानून में संशोधन लाना, जिसका आधार था पड़ोसी देशों से मुसलिम शरणार्थियों के लिए भारत के दरवाजे बंद कर देना। इस संशोधन को देश के गृहमंत्री ने ऐसे पेश किया कि भारतीय मुसलमानों को अपनी नागरिकता पर खतरा दिखने लगा। ऐसी अशांति फैली देश भर में कि दिल्ली में दशकों बाद हिंदू-मुसलिम दंगे हुए और वह भी उस समय, जब डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली में थे। यह किस तरह की प्रशासनिक काबिलियत थी?

फिर आई महामारी, जिसमें प्रशासनिक लापरवाही का आलम यह रहा है कि हर तरह से सवाल उठने लगे हैं अब सरकार की प्रशासनिक काबिलियत पर। सवाल बहुत सारे हैं। मसलन, जनता कर्फ्यू लगने से पहले अगर चार दिन की मोहलत दी गई थी तो पूर्णबंदी का आदेश जारी होने से पहले सिर्फ चार घंटे क्यों? इस पूर्णबंदी में व्यवस्था की तैयारी इतनी कमजोर क्यों रही है कि कोविड के मरीज दिल्ली और मुंबई में मर रहे हैं अस्पतालों में जगह मिलने से पहले? अगर पूर्णबंदी का मकसद था महामारी को रोकना तो अब क्यों हटाई जा रही है जब दिल्ली और मुंबई में मरीजों के आंकड़े बढ़ रहे हैं?

रही बात अर्थव्यवस्था से जुड़े सवालों की तो यह भी बहुत सारे हैं। महामारी के आने से पहले ही अर्थव्यवस्था का इतना बुरा हाल क्यों हो गया था कि निवेशक भारत को छोड़ कर भागने लग गए थे? अब जब कई विदेशी कंपनियां चीन का बहिष्कार करना चाहती हैं तो भारत क्यों नहीं आती दिख रही हैं? बेरोजगारी जो इतनी बढ़ गई है देश भर में, उसका क्या उपाय ढूंढ़ा जा रहा है? प्रवासी मजदूर जो लाखों कि तादाद में शहरों से घर लौट गए, उनके बिना कैसे चलेगा विकास का काम? इनकी बात आ ही गई है तो यह भी पूछना जरूरी है कि इनको अगर रोकना चाहती थी शहरों और महानगरों में सरकार तो पूरा प्रबंध करने में सफल क्यों नहीं हुई?

ऐसे सवाल सिर्फ विपक्ष के नेता नहीं पूछ रहे हैं, बल्कि पूरा देश पूछने लगा है। यह सरकार का सौभाग्य है कि विपक्ष में प्रधानमंत्री के मुख्य प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी हैं, जिन्होंने अभी तक साबित नहीं किया है देश के सामने कि वे राजकुमार से अब राजनेता बन गए हैं। असली राजनेता बन गए होते कांग्रेस पार्टी के युवराज तो वीडियो द्वारा अंग्रेजी में अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों से वार्तालाप करने के बदले उन ग्रामीण क्षेत्रों में घूम रहे होते, जहां प्रवासी मजदूर थक-हार कर, पूरी तरह मायूस होकर वापस लौट गए हैं। उनको तसली देने वाला आज कोई नहीं है। कई तो खुल कर स्वीकार करते हैं अब कि मोदी पर जो उनको विश्वास रहा था कभी, वह समाप्त हो गया है। मोदी ने उनकी सहायता करने के बदले अपने मंत्रियों से झूठ बुलवाने का काम शुरू करवाया है।

इसलिए पिछले सप्ताह जब गृहमंत्री एक लंबे अरसे बाद सामने आए तो उन्होंने प्रवासी मजदूरों के बारे में कहा कि उनके रहने, खाने-पीने का इतना अच्छा प्रबंध हुआ था कि उनको वापस गांव जाने की जरूरत ही नहीं थी। लेकिन जब उन्होंने घर वापस जाने की इच्छा दिखाई तो उनके लौटने के लिए पूरी तरह से प्रबंध केंद्र सरकार ने किया और राज्य सरकारों ने भी। ये दोनों बातें सही नहीं हैं। ऐसे समय ऐसी बातें करना ताजा जख्मों पर नमक छिड़कने का ही काम करेगा।