इस बार प्रधानमंत्री की घोषणा से पहले ही सबको मालूम था कि बंदी लंबी चलने वाली है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री की घोषणा से पहले ही ऐलान कर दिया था कि मई महीने के पहले हफ्ते तक चलेगी इस राज्य में पूर्णबंदी। इसलिए मुश्किल है समझना कि कैसे इस बार फिर प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयों को अनदेखा इतनी बेरहमी और लापरवाही से कर दिया गया। क्यों एक और बार हमारे इन सबसे लाचार और बेहाल नागरिकों को बेसहारा छोड़ दिया गया?
पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री की पूर्णबंदी वाली घोषणा के घंटों बाद मुंबई में हजारों की तादाद में प्रवासी मजदूर बांद्रा के एक रेलवे स्टेशन के बाहर इकट्ठा हो गए। चलिए मान लेते हैं, कि इस घटना के पीछे किसी की साजिश थी। लेकिन प्रवासी मजदूरों का इस तरह सड़क पर निकल कर आना अपने घरों तक वापस जाने के प्रयास में, इस महानगर की अन्य जगहों पर भी देखा गया, बावजूद इसके कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने उनको आश्वस्त करने की कोशिश की कि उनको न रहने की तकलीफ होने वाली है न खाने की चिंता। समस्या इन मजदूरों की यह है कि रोजगार न रहने के बाद उनके पास न पैसे बचे हैं और न ही इस शहर में टिके रहने की कोई आवश्यकता। समस्या सिर्फ मुंबई की नहीं है, सूरत, बंगलूरू और दिल्ली से भी प्रवासी मजदूर सड़कों पर निकल कर अपने ग्रामीण घरों तक लौटने का प्रयास कर रहे हैं। कई सौ मील पैदल चलने के लिए तैयार हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भावुक स्वर में कहा था कि भारत के गरीब लोगों को वे अपना ‘बृहद’ परिवार मानते हैं, लेकिन यह नहीं बताया कि अपने इस परिवार की आर्थिक समस्याओं का समाधान कब करने वाले हैं। जिस गांव में मैं पिछले तीन हफ्तों से बंदी में हूं, यहां सरकारी मदद यही पहुंची है कि गेहूं, चावल राशन में दोगुने मिल रहे हैं और जनधन खातों में पांच सौ रुपए आ गए हैं। यह रकम इतनी थोड़ी है कि चार दिन की सब्जियां भी खरीदना मुश्किल। गांव के मंदिर से दो वक्त का खाना न मिल रहा होता तो कई परिवार भूखे रहते।
इस जिले में अभी तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं पाया गया है, लेकिन जिले का कारोबार पूरी तरह बंद है। मुंबई से पर्यटक जबसे आना बंद हुए हैं तबसे किसी के पास कमाई का कोई साधन नहीं रहा है। आसपास मछुआरों के गांवों में मछली पकड़ने पर पाबंदी है। सुना है कि 20 तारीख के बाद पाबंदी हटाई जाएगी, सो थोड़ी राहत मिल जाएगी, लेकिन खरीदनेवाले कौन हैं, जब तक मुंबई के सारे रास्ते बंद रहेंगे?
दूर बैठे इस समंदर किनारे गांव में खबर मुरादाबाद से मिली मुझे कि मुसलमानों ने फिर से हमला किया है डॉक्टरों पर। टीवी पर उस घायल डॉक्टर की तस्वीरें देख कर बहुत बुरा लगा, जब उसने बताया कि किस तरह उसको घेर कर भीड़ ने लाठियों से मारा। जिन्होंने ऐसा किया, अपराधी हैं और उनकी जगह जेल में होनी चाहिए। डॉक्टर और नर्स इस युद्ध में हमारे सबसे बड़े योद्धा हैं। इस तरह के हमले शर्मनाक हैं। लेकिन साथ में यह भी कहना जरूरी है कि जो हिंदुत्ववादी सोशल मीडिया पर इस महामारी का सारा दोष मुसलमानों पर डाल रहे हैं, वे भी अपराधी हैं।
ट्विटर पर रोज नफरत उगलते हैं इतनी कि इस नफरत को कोरोना वायरस पर निकालते तो शायद डर के मारे वह दूर भाग जाता। नफरत उगलने वाली इस फौज का एक मकसद है और वह यह कि किसी न किसी तरह साबित किया जाए कि कोरोना जान बूझ कर फैला रहे हैं इस देश के मुसलमान। माना कि तबलीगी जमात के मौलाना साद के बयान गलत थे, इतने कि पूरी मुसलिम कौम बदनाम हुई है उससे।
दिल्ली पुलिस जब भी इस मौलाना को पकड़ेगी, उनको कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन ऐसा कहना कि इस महामारी के पीछे जिहादी आतंकवादियों का हाथ है, सिर्फ बेवकूफी नहीं, पागलपन है। लेकिन ऐसी बातें सोशल मीडिया पर हिंदुत्व के योद्धा रोज कह रहे हैं। इनमें से कई हैं, जिनके नाम मैं पहचानती हूं, क्योंकि ये मेरे पीछे भी पड़े रहते हैं हाथ धोकर जब मैं नरेंद्र मोदी की आलोचना करती हूं। तो क्या ये भारतीय जनता पार्टी की ट्रोल सेना के लोग हैं? अगर हैं, तो अच्छा होगा कि भारतीय जनता पार्टी के आला नेता इनको अभी से रोकने की कोशिश में लग जाएं।
कोरोना ने भारत की अर्थव्यवस्था का इतना बुरा हाल कर दिया है कि जाने-माने अर्थशास्त्री अनुमान लगा रहे हैं कि लाखों लोग बेरोजगार होने वाले हैं। लाखों छोटे कारोबार तो अभी से बंद होने लगे हैं और बड़े उद्योगों ने भी इतनी मार खाई है कि नए रोजगार देने की उनकी क्षमता नहीं रही है। मंदी और मायूसी के इस दौर में अगर हम हिंदू-मुसलिम तनाव फैलाना शुरू कर देंगे, तो ईश्वर और अल्लाह मिल कर भी शायद नहीं बचा सकेंगे इस देश को। यहां प्रधानमंत्री को वह नेतृत्व दिखाना होगा, जो उनसे नहीं दिखा जब सीएए के खिलाफ लाखों मुसलमान निकल कर आए थे हमारे शहरों की सड़कों पर।
इस महामारी से कुछ अच्छा हुआ है तो सिर्फ यह कि नागरिकता को लेकर सारे झगड़े फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिए गए हैं। उस बस्ते को दुबारा खोलने की कोशिश अगर कोई राजनेता करते हैं, तो इस देश के असली गद्दार उन्हीं को माना जाएगा। इस संक्रमण को रोकने में हम सफल भी होते हैं, तो फौरन आर्थिक समस्याएं सामने आ जाएंगी, जिनका समाधान ढूंढ़ना उतना ही मुश्किल होगा, जितना इस महामारी को रोकने का है। बुरा समय है और यह समय लंबा चलने वाला है।