विश्वविद्यालय अपनी स्वतंत्रता का त्याग नहीं करेगा, न अपने संवैधानिक अधिकारों को छोड़ेगा… इसके प्रशासन का विधान संघीय सरकार की शक्ति से परे है… और यह ज्ञान की खोज, उत्पादन और प्रसार के लिए समर्पित एक निजी संस्थान के तौर पर हमारे मूल्यों को खतरे में डालता है। कोई भी सरकार- चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो- यह तय नहीं कर सकती कि निजी विश्वविद्यालय क्या पढ़ा सकते हैं, वे किसे प्रवेश दे सकते हैं, किसे काम पर रख सकते हैं, और वे किस क्षेत्र में अध्ययन और जांच कर सकते हैं।’
विश्वविद्यालय प्रशासन में कथित हस्तक्षेप के जवाब में किस भारतीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने ऐसा कहा? इसका उत्तर है- ‘किसी ने नहीं’।
ये शब्द हावर्ड विश्वविद्यालय (संयुक्त राज्य अमेरिका से भी पुराना) के अध्यक्ष एलन गार्बर के हैं। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की अवहेलना की, जो मानते हैं कि वे पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को 2.2 अरब अमेरिकी डालर के अनुदान और छह करोड़ अमेरिकी डालर के अनुबंधों को रोक कर जवाबी कार्रवाई की, लेकिन विश्वविद्यालय ने झुकने से इनकार कर दिया। पिछले महीने कोलंबिया विश्वविद्यालय को 40 करोड़ अमेरिकी डालर की संघीय धनराशि देने से मना कर दिया गया, जिसके कारण उसे हार माननी पड़ी।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की वेबसाइट के अनुसार, 25 जनवरी, 2023 तक भारत में 1074 विश्वविद्यालय थे, जिसका ब्योरा इस प्रकार है: राज्य विश्वविद्यालय- 460; मान्य विश्वविद्यालय- 128; केंद्रीय विश्वविद्यालय- 56; निजी विश्वविद्यालय- 430; कुल- 1074; इस संख्या में, आजादी से बहुत पहले, 1857 में स्थापित सबसे पुराने तीन विश्वविद्यालय शामिल हैं- कलकत्ता, मद्रास और बांबे। वैसे, यूजीसी और राज्यपाल-कुलपति के बीच मतभेदों के कारण, मद्रास विश्वविद्यालय अगस्त 2023 से बिना कुलपति के चल रहा है।
संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और जिस तरह यूजीसी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 को लागू किया है, उसके चलते भारतीय विश्वविद्यालयों को कोई स्वायत्तता नहीं मिल पाई है। यह अधिनियम ‘विश्वविद्यालयों में मानकों के समन्वय और निर्धारण के लिए प्रावधान करने’ के लिए बनाया गया था। धारा 12 में यूजीसी को विश्वविद्यालयों में शिक्षण, परीक्षा और शोध के मानक निर्धारित करने और रखरखाव के लिए विश्वविद्यालयों को ‘अनुदान’ आबंटित करने और वितरित करने का अधिकार दिया गया है। 1984 में, इसमें धारा 12ए जोड़ी गई और धारा 14 में संशोधन किया गया, जिसने यूजीसी की शक्तियों का व्यापक विस्तार हुआ। धन की शक्ति के कारण यूजीसी को विश्वविद्यालयों के हर कार्य में दखल देने में सक्षम बनाया है। इन शक्तियों का उपयोग करते हुए, यूजीसी ने ऐसे ‘विनियम’ बनाए, जिसके कारण व्यावहारिक रूप से विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता खत्म हो गई है।
यूजीसी ‘सर्वोच्च’ है
यूजीसी (और यूजीसी के माध्यम से वैचारिक रूप से पक्षपाती केंद्र सरकार) का नियंत्रण शिक्षकों की नियुक्ति, पाठ्यक्रम के डिजाइन, शोध के क्षेत्रों, परीक्षाओं के डिजाइन और संचालन आदि तक फैला हुआ है। यूजीसी के कुछ हस्तक्षेपकारी नियमों पर नजर डालें:
- सभी शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारियों की योग्यता और नियुक्ति पर नियम;
- राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट);
- राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (नीट);
- संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई);
- सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी);
- सीखने के परिणाम-आधारित पाठ्यक्रम रूपरेखा (एलओसीएफ);
- चयन आधारित क्रेडिट प्रणाली (सीबीसीएस); और
- राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग रूपरेखा (एनआइआरएफ)।
चूंकि कुलपति कुछ ‘अवशिष्ट’ शक्तियों का प्रयोग करते थे, इसलिए यूजीसी ने कुलपतियों के चयन और नियुक्ति को नियंत्रित करने का फैसला किया (देखें ‘नए वायसराय’, जनसत्ता, 12 जनवरी, 2025)। मेरे विचार में, राज्य और निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों के चयन और नियुक्ति में यूजीसी की कोई भूमिका नहीं है, खासकर कुलपति की नियुक्ति में। अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो यह विश्वविद्यालयों के राष्ट्रीयकरण की दिशा में अंतिम कदम होगा। - क्या विश्वविद्यालयों पर व्यापक नियंत्रण से उच्च शिक्षा को कोई लाभ हुआ है? कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों (क्यूएस द्वारा तैयार) में स्थान नहीं बना पाया है। सर्वोच्च ‘रैंक’ वाला भारतीय विश्वविद्यालय आइआइटी, बांबे है, जिसने 118वां स्थान प्राप्त किया है। संसद में एक जवाब में, सरकार ने खुलासा किया कि 21 अक्तूबर, 2024 तक, केवल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्त शैक्षिक पदों की संख्या 5,182 थी। शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने पाया कि आइआइटी स्नातकों के ‘प्लेसमेंट’ में गिरावट आई है। 2021-22 और 2023-24 के बीच ‘प्लेसमेंट’ में दस फीसद से अधिक की गिरावट आई है। एनआइटी स्नातकों के ‘प्लेसमेंट’ में भी 10.77 फीसद की गिरावट आई है। डा सीवी रमन, विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार (1930) पाने वाले एकमात्र भारतीय विश्वविद्यालय के उत्पाद थे।
चूंकि कुलपति कुछ ‘अवशिष्ट’ शक्तियों का प्रयोग करते थे, इसलिए यूजीसी ने कुलपतियों के चयन और नियुक्ति को नियंत्रित करने का फैसला किया (देखें ‘नए वायसराय’, जनसत्ता, 12 जनवरी, 2025)। मेरे विचार में, राज्य और निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों के चयन और नियुक्ति में यूजीसी की कोई भूमिका नहीं है, खासकर कुलपति की नियुक्ति में। अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो यह विश्वविद्यालयों के राष्ट्रीयकरण की दिशा में अंतिम कदम होगा।
क्या विश्वविद्यालयों पर व्यापक नियंत्रण से उच्च शिक्षा को कोई लाभ हुआ है? कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों (क्यूएस द्वारा तैयार) में स्थान नहीं बना पाया है। सर्वोच्च ‘रैंक’ वाला भारतीय विश्वविद्यालय आइआइटी, बांबे है, जिसने 118वां स्थान प्राप्त किया है। संसद में एक जवाब में, सरकार ने खुलासा किया कि 21 अक्तूबर, 2024 तक, केवल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्त शैक्षिक पदों की संख्या 5,182 थी। शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने पाया कि आइआइटी स्नातकों के ‘प्लेसमेंट’ में गिरावट आई है। 2021-22 और 2023-24 के बीच ‘प्लेसमेंट’ में दस फीसद से अधिक की गिरावट आई है। एनआइटी स्नातकों के ‘प्लेसमेंट’ में भी 10.77 फीसद की गिरावट आई है। डा सीवी रमन, विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार (1930) पाने वाले एकमात्र भारतीय विश्वविद्यालय के उत्पाद थे।
भारतीय विश्वविद्यालय कई बीमारियों से ग्रस्त हैं: कोई धर्मादा निधि नहीं, पूर्व छात्रों को कम सहायता, अपर्याप्त अनुदान और शोध अनुबंध, शैक्षणिक स्वतंत्रता की कमी, विशेष रूप से यूजीसी द्वारा अत्यधिक विनियमन, कुलाधिपति (राज्यपाल) और प्रो चांसलर (आमतौर पर शिक्षामंत्री) द्वारा हस्तक्षेप, और राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा हस्तक्षेप। शैक्षणिक स्वतंत्रता की कमी को एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है: अब तक दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम चलाने वाले विश्वविद्यालय विदेशी छात्रों सहित कहीं से भी छात्रों को दाखिला दे सकते थे। हाल ही में यूजीसी के एक विनियमन ने ‘कैचमेंट एरिया’ को राज्य के एक या दो जिलों तक सीमित कर दिया है, जहां विश्वविद्यालय स्थित है। विश्वविद्यालय में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है और छात्र के पास दूरस्थ शिक्षा प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालयों का कोई विकल्प नहीं है।
सबसे अधिक बुरी खबर यह है कि शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए जगह कम होती जा रही है। असहिष्णु समूहों ने जेएनयू, डीयू, जामिया मिल्लिया, एएमयू, जादवपुर, केंद्रीय विश्वविद्यालय, जम्मू सहित कई अन्य विश्वविद्यालयों (और उनके शिक्षकों और छात्रों) पर मौखिक और शारीरिक हमले किए गए हैं।
जब तक यूजीसी अधिनियम को निरस्त नहीं किया जाता, पुन: परिकल्पित नहीं किया जाता और पुन: लागू नहीं किया जाता, तब तक विश्वविद्यालय की स्वायत्तता एक दूर की कौड़ी ही साबित होगी। जब तक पूर्व छात्रों के समर्थन से धर्मादा निधि नहीं बनाई जाती, तब तक शैक्षणिक स्वतंत्रता भ्रामक बनी रहेगी। आत्मनिर्भर सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के बजाय, धनी परिवारों और कारपोरेट्स (अपवादों के साथ) द्वारा प्रचारित और वित्तपोषित निजी विश्वविद्यालयों का प्रसार होगा। इरादा परोपकार का हो सकता है, लेकिन इसका नतीजा वाणिज्यिक होगा।