शिक्षा में घोटालों के इस मौसम के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय में एक शानदार भाषण दिया। घोटालों का जिक्र तो नहीं किया, लेकिन उन्होंने अपनी सरकार की नई शिक्षा नीति की तारीफ की। कहा मोदीजी ने कि इस नीति का लक्ष्य है कि देश की युवा पीढ़ी के सारे सपने साकार हों। साथ में यह भी कहा कि उनका ‘मिशन’ है कि भारत एक बार फिर ज्ञान का केंद्र बने जैसे उस प्राचीन काल में हुआ करता था जब नालंदा में ऐसा विश्वविद्यालय था जिसका मुकाबला शायद सिर्फ तक्षशिला कर सकता था। जिस साल नालंदा को एक बर्बर मुसलिम लुटेरे ने बर्बाद किया, उस साल आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू हुआ था।
सवाल यह है कि भारत ज्ञान का केंद्र कैसे बनेगा जब शिक्षा का इतना बुरा हाल है। लाखों विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद हो सकता है सिर्फ इसलिए कि शिक्षा मंत्रालय ‘नीट’ परीक्षा ढंग से नहीं करा पाया है। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पहले तो कहा कि कोई समस्या है ही नहीं। फिर पत्रकारों को बुलाकर स्वीकार किया कि खासी गड़बड़ी है। मगर उपाय उनका यही है कि एक जांच समिति गठित होगी जो पूरी तहकीकात करेगी। अच्छी बात है मंत्री जी, लेकिन उन विद्यार्थियों के लिए आप क्या करेंगे जिनका भविष्य खराब हुआ है आपकी राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी (एनटीए) की नालायकी के कारण?
कई विद्यार्थियों के डाक्टर बनने के सपने चूर-चूर हो गए हैं इसलिए कि प्रश्न-पत्र समय से पहले बाहर आ गए और परीक्षा दोबारा देने के लिए न उनकी क्षमता है न हिम्मत। कोई चौबीस लाख विद्यार्थी हैं, जिनको नई परीक्षा देनी होगी। एक बुजुर्ग ने टीवी पर कहा कि भविष्य सिर्फ विद्यार्थियों का बर्बाद नहीं हुआ है, उनके पूरे परिवारों का भी बर्बाद हुआ है। इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? विद्यार्थियों से जब पूछा जाता है कि उनको राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी (एनटीए) पर विश्वास है तो सब कहते हैं कि उनको कोई विश्वास नहीं रहा है इस एजंसी में।
ऊपर से घोटालों की खबरें कई जगहों से आ रही हैं। पटना में एक छात्र ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि उसको प्रश्न-पत्र जो परीक्षा से पहले दिलवाया गया था, वह बिल्कुल वही था जो परीक्षा में आने वाला था। इस खबर को मैंने हजम ही किया था कि मालूम पड़ा कि गुजरात के गोधरा शहर में एक कोचिंग केंद्र है जहां लाखों रुपए देकर परीक्षा में अच्छे नंबर मिल सकते हैं। घोटाले पर घोटाले सामने आए हैं पिछले दिनों जिनके बारे में लगता है कि प्रधानमंत्री को खबर नहीं मिली है, वरना वे कभी न कहते कि उनका ‘मिशन’ है भारत को ज्ञान का केंद्र बनाने का।
लक्ष्य बहुत अच्छा है प्रधानमंत्री जी, लेकिन क्या करने वाले हैं आप इन घोटालों का? क्या एनटीए में सुधार संभव हैं जब खराबी जड़ों तक पहुंच चुकी है? क्या नीट परीक्षा में किसी का भरोसा अब रहेगा, जब भ्रष्टाचार इतना दिखा है हर स्तर पर? खराबी इस हद तक है कि भारतीय विद्यार्थी यूक्रेन में डाक्टर बनने के लिए जा रहे हैं, बावजूद इसके कि युद्ध अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। अगर युद्धग्रस्त देशों में जाने को तैयार हैं भारतीय विद्यार्थी तो केवल इसलिए कि मेडिकल कालेज भारत में इतने महंगे हैं कि विदेशों में जाना सस्ता है। सरकारी मेडिकल कालेज में दाखिला मिलना इतना मुश्किल है कि घूस देने को मजबूर हैं वे लोग जो देने की क्षमता रखते हैं।
माना कि यह समस्या मोदी के राज में नहीं पैदा हुई है। माना कि मोदी को यह विरासत में मिली है, लेकिन पिछले दस सालों में क्या किया गया है उच्च शिक्षा संस्थाओं में सुधार लाने के लिए? समस्या मेडिकल कालेजों तक सीमित नहीं है। हाल यह है कई सरकारी विश्वविद्यालयों का कि पूरी पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी करने लायक नहीं होते हैं लाखों विद्यार्थी। यानी कालेज जाना बेकार होता है इतने विद्यार्थियों के लिए कि पढ़ाई समाप्त करने के बाद उनके लिए रोजगार ढूंढ़ना तकरीबन नामुमकिन होता है। नई शिक्षा नीति बेशक अच्छी होगी, लेकिन जब तक उच्च शिक्षा के पूरे ढांचे की मरम्मत नहीं होती है, नई नीतियों का कोई मतलब नहीं रहता है।
समस्या अब यह भी है कि शिक्षा में इन घोटालों को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। विपक्ष के कई नेताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि संसद में उठाया जाएगा ये सारा मामला और मोदी सरकार को इसको लेकर घेरा जाएगा तब तक, जब तक उनके सवालों के जवाब न मिलें। क्या मोदी सरकार के पास जवाब हैं न सिर्फ विपक्ष के सवालों के, बल्कि उन तमाम विद्यार्थियों के, जिनके जीवन बर्बाद होते दिख रहे हैं? पहले समस्या थी सिर्फ चिकित्सा की पढ़ाई को लेकर, लेकिन अब लगता है कि पूरे एनटीए में इतनी खराबी आ चुकी है कि लोग मांग कर रहे हैं कि इस संस्था को बंद करके ही कोई सुधार हो सकता है। समझना मुश्किल है कि ऐसा सब कैसे हुआ है उस प्रधानमंत्री के दौर में, जिसने निजी तौर पर कई बार परीक्षा पे चर्चा की है। समझना मुश्किल है कि उनके सलाहकारों ने उनको ये कार्यक्रम कैसे बार-बार करने दिया, जब इतने सारे घोटाले छिपे हुए थे परीक्षाओं के बोझ तले।
नालंदा विश्वविद्यालय बेशक दोबारा जीवित हुआ है और यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन प्राचीन दौर से जितनी जल्दी प्रधानमंत्री वर्तमान में आते हैं, उतना उनके लिए अच्छा होगा। इसलिए कि वर्तमान में शिक्षा की समस्याएं अति-गंभीर हैं। बात सिर्फ शिक्षा संस्थाओं की नहीं है, बात है लाखों भारतीय विद्यार्थियों के भविष्य की। उनके साथ जो खिलवाड़ हुआ है वो भ्रष्टाचार नहीं महा-पाप है। उन लोगों को दंडित करना जरूरी तो है, जिनकी वजह से ये सब हुआ है, लेकिन उन विद्यार्थियों के भविष्य को सुधारने के लिए भी कुछ करना उससे ज्यादा जरूरी है।