पिछले सप्ताह संसद में बजट पर हो रही बहस में राहुल गांधी ने बजट तैयार करने वाले अफसरों की तस्वीर उठाई और वित्तमंत्री से पूछा कि इसमें दलित और पिछड़ी जातियों के कितने लोग हैं? तस्वीर थी उस दिन की, जब बजट के तैयार होने के बाद हलवा बनाया जाता है वित्त मंत्रालय में। नए नवेले नेता प्रतिपक्ष ने सवाल पूछा ऐसे जैसे बजट को लेकर इससे महत्त्वपूर्ण सवाल था ही नहीं। मेरी नजर में इस सवाल में जातिवाद था, बेशक उल्टे किस्म का। इसलिए अनुराग ठाकुर ने जब सत्तापक्ष की तरफ से व्यंग्य कसते हुए कहा कि जाति जनगणना की मांग वे कर रहे हैं, जिनकी जाति कोई जानता नहीं है, तो विपक्ष ने क्यों इतना हल्ला मचाया? किसी एक व्यक्ति की जाति पूछना अगर गलत है, तो जनगणना करवा कर हर भारतीय नागरिक की जाति पूछना गलत क्यों नहीं है?

राहुल गांधी को गरीबी के बारे में अभी पता चला

सवाल यह भी है कि जातियों में इस तरह देश को बांट कर हासिल क्या होगा? शुरू में कहना चाहती हूं कि मेरी राय में राहुल जी इन दिनों कुछ ज्यादा ही हल्ला मचा रहे हैं जातिवाद को लेकर। बीस सालों से राजनीति में हैं राहुल गांधी तो क्या अभी मालूम पड़ा है उनको कि पिछड़ी जातियों में गरीबी ज्यादा है? पहले से जानकारी थी तो ये भी उनको बताना होगा कि जब उनकी माताजी की मर्जी के प्रधानमंत्री बने रहे एक पूरे दशक के लिए तो उस समय क्यों नहीं उन्होंने कभी पूछा वित्तमंत्री से कि हलवा समारोह में पिछड़ी जाति के कितने अफसर थे!

जाति जनगणना से किसको फायदा हो रहा है

कहना यह चाहती हूं मैं कि राहुल जी बार-बार जाति जनगणना की मांग उठा कर किसी का फायदा नहीं कर रहे हैं। जाति जनगणना की मांग ऐसे कर रहे हैं जैसे इसके होने के बाद देश में गरीबी मिट जाएगी। जब कांग्रेस के टीवी प्रवक्ताओं से इसके बारे में पूछा जाता है तो अक्सर गोलमोल जवाब देते हैं। कहते हैं कि एक बार अगर पता लग जाएगा कि किस जाति के कितने लोग हैं और देश का ज्यादा धन किसके हाथों में है तो इस पर बहस हो सकती है संसद में। जब स्पष्ट सवाल पूछा जाता है इनसे कि क्या जनगणना का मकसद है शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण बढ़ाने का तो इस सवाल को टाल देते हैं इधर-उधर की बातें करके, जैसे कि इसका जवाब उनके पास है ही नहीं।

एक पूरे दशक बाद संसद में नेता प्रतिपक्ष बना है, इसलिए उम्मीद थी कि बजट पर ऐसे सवाल पूछे जाएं, जिनसे देश का फायदा हो। अफसोस कि ऐसा होने के बदले राहुल जी ने अजीब से सवाल पूछे। चक्रव्यूह का नक्शा बनाकर लाए संसद में और इसको उठाकर सदन को दिखाया। चक्रव्यूह के बीच में उन्होंने प्रधानमंत्री के अलावा वही अंबानी-अडाणी के चेहरे दिखाए, जिनके पीछे वे पिछले तीन लोकसभा चुनावों से पड़े रहे हैं। चक्रव्यूह में गृहमंत्री का चेहरा भी दिखा और कुछ आला अधिकारी। चक्रव्यूह उठाते समय उन्होंने कहा कि इस चक्रव्यूह के बाहर हैं पिछड़ी जातियों के लोग और आदिवासी। मेरी समझ के बाहर है कि कहना क्या चाह रहे थे राहुल जी, लेकिन इस हरकत से याद आया कि जातिवाद का उन पर ऐसा जुनून सवार हो गया है कि भूल गए हैं कि देश में गरीबी के कारण और भी हैं।

सबसे बड़ा कारण मेरी राय में यह है कि कांग्रेस के दशकों लंबे दौर में शिक्षा पर वह ध्यान नहीं दिया गया था, जो जरूरी होता है असली शिक्षा देने के लिए। हमारे सरकारी स्कूल इतने रद्दी हैं कि न राजनेता अपने बच्चों को इनमें भेजते हैं, न आला अधिकारी। सच यह भी है कि पिछले एक दशक में मोदी इस समस्या का समाधान ढूंढ़ सकते थे अपने मुख्यमंत्रियों का साथ लेकर, लेकिन ऐसा उन्होंने किया नहीं तो बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी समस्या बनी रही है। अच्छी शिक्षा मिलती गरीबों के बच्चों को तो असली रोजगार के अवसर मिलते। गरीबी मिटाने का सबसे ताकतवर औजार है शिक्षा।

भारत की गरीबी के कारण और भी हैं। जिन देहाती इलाकों में दलितों और आदिवासियों की बस्तियां हैं, उन तक बुनियादी सुविधाएं ही नहीं पहुंचती हैं। न इन बस्तियों में भरोसेमंद बिजली आती है, न सड़कें पहुंचती हैं और न इक्कीसवीं सदी की बाकी जरूरी सुविधाएं। व्यवस्था के इस टूटे ढांचे को मजबूत बनाने के बदले मोदीराज में भी खैरात ही बांटी गई है गरीबों में। वित्तमंत्री ने संसद में गर्व से कहा कि अस्सी करोड़ भारतीयों को मुफ्त अनाज देने का काम किया है प्रधानमंत्री ने। इसमें गर्व की कोई बात नहीं है। शर्म की बात है कि देश में इतने सारे गरीब लोग हैं कि बिना मुफ्त अनाज के उनका गुजारा ही नहीं होता है। खैरात अन्य तरीकों से भी बांटी गई है मुफ्त बिजली-पानी जैसी चीजें देकर, लेकिन खैरात बांटने से न गरीबी कभी पहले कम हुई है और न भविष्य में होने वाली है।

देश के राजनेता जब यह जान जाएंगे तो वास्तव में गरीबी मिटाने का काम होगा इस देश में। यह सच है कि पिछड़ी जातियों में गरीब ज्यादा हैं, लेकिन इसका असली कारण उनकी जाति नहीं है। असली कारण है उनको शिक्षा से वंचित रखना। राहुल गांधी जब इन चीजों पर ध्यान देना शुरू करेंगे, तो शायद उनको जानकारी मिलेगी कि जाति जनगणना करवा कर कुछ नहीं मिलने वाला है अलावा इसके कि आरक्षण एक हद के ऊपर बढ़ने लगेगा।
जिन जातियों के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान था, उनको भविष्य में मिलता रहे तो कोई बात नहीं। लेकिन आज हाल यह है कि तकरीबन हर जाति से मांग उठ रही है आरक्षण की। इतना आरक्षण देकर क्या ऐसी स्थिति नहीं बनने वाली है कि सवर्ण जातियों के अलावा सबके लिए आरक्षण होगा?