मल्लिकार्जुन खड़गे इस पद पर पहुंचे हैं कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी चुनाव में शानदार जीत हासिल करके, लेकिन पद संभालते हुए अपने पहले भाषण में स्पष्ट किया उन्होंने कि उनकी मार्गदर्शक सोनिया गांधी रहेंगी। सोनियाजी को उन्होंने ‘त्याग की मूर्ति’ कह कर इतनी तारीफ उनकी की कि हम जैसों को याद दिलाया कि एक बार फिर वही होने वाला है कांग्रेस पार्टी के साथ, जो कभी भारत सरकार के साथ हुआ था। बिलकुल वैसे जैसे प्रधानमंत्री की कुर्सी के पीछे सोनिया गांधी खड़ी थीं, वैसे अब कांग्रेस के नए अध्यक्ष के पीछे वे अपने बच्चों के साथ खड़ी रहेंगी।

जिस दिन खड़गे साहब ने शशि थरूर को हराया था, मैंने इस बात को एक टीवी चर्चा में कहने की कोशिश की, लेकिन इसलिए कि मैंने कहा कि गोपनीयता कानून को तोड़ कर प्रधानमंत्री के दफ्तर से सोनिया गांधी के पास सरकारी कागजात भेजे जाते थे, मुझे खूब जूते खाने पड़े सोशल मीडिया पर।

कांग्रेस के अधिकारी, पूर्व मंत्री और गांधी परिवार के खानदानी वफादार ऐसे पीछे पड़े मेरे कि दो दिन तक गालियों का पहाड़ टूट पड़ा मेरे सिर पर। कांग्रेस के प्रशंसक अनुभवी हैं, सो चतुराई से विषय बदल कर साबित करने का प्रयास हुआ कि मैंने अपने प्रिय डाक्टर मनमोहन सिंह को बदनाम किया है।

कांग्रेस के एक अधिकारी ने मुझे एक पत्र भेजा यह कहते हुए कि मेरे खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उस पत्र को उस अधिकारी ने ट्विटर पर डाला, सो मुझे ट्विटर पर उसका जवाब देना पड़ा, जिसके बाद गालियों का एक और पहाड़ टूटा मेरे ऊपर। विषय इतना बदल गया कि लोग भूल गए कि मैं कहना क्या चाहती थी।

सो, साफ करना चाहती हूं मैं कि माजरा क्या है। डाक्टर साहब दूसरी बार जब प्रधानमंत्री बने, तो दूसरे दौर के पहले दिनों में उन्होंने कहा कि राहुल गांधी जब भी उनकी नौकरी लेने के लिए अपने आप को तैयार समझेंगे, उसी दिन वे अपनी कुर्सी उनके हवाले कर देंगे। इस दूसरे दौर में शायद ही कोई अहम फैसला रहा होगा, जिस पर सोनियाजी का ठप्पा नहीं लगाया गया था।

सोनियाजी के प्रशंसक खुद मानते हैं कि मनरेगा योजना भारत सरकार ने मंजूर की थी सोनियाजी के कहने पर और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम भी उनकी देन थी भारत को। ऐसी योजनाओं को तैयार किया जाता था सोनियाजी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में, जो उन दिनों भारत सरकार के मंत्री भी मानते थे कि भारत सरकार की मंत्री परिषद से ज्यादा असरदार थी।

कहने का मतलब है कि सोनिया गांधी ने बेशक प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था अपनी अंतरात्मा की आवाज पर, लेकिन वास्तव में देश की सबसे ताकतवर राजनेता वही रहीं उस पूरे दशक में, जब उनकी मर्जी का प्रधानमंत्री बना था। इस बात को शायद देश का हर नागरिक जानता था, जिसको राजनीति में थोड़ी भी रुचि थी।

प्रधानमंत्री ने शायद गोपनीयता की शपथ न तोड़ी हो, लेकिन नटवर सिंह और जयंती नटराजन जैसे वरिष्ठ मंत्रियों ने स्वीकार किया है कि एक अधिकारी नियुक्त किया था सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के दफ्तर में, जो उन तक सरकारी दस्तखत पहुंचाया करता था। संजय बारू ने अपनी किताब ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में इस अधिकारी का नाम पुलक चटर्जी बताया है।

दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में सब जानते थे कि प्रधानमंत्री के ऊपर एक सुपर-प्रधानमंत्री थीं, जो भारत सरकार की नीतियां बना भी सकती थीं और उनको रद्द भी कर सकती थीं। प्रिय डाक्टर साहब को कहना मानना पड़ता था सिर्फ सोनियाजी का नहीं, बल्कि उनके बेटे राहुल का भी।

सो, जब राहुल ने एक पत्रकार वार्ता में भारत सरकार का एक अध्यादेश फाड़ कर कचरे में फेंका था, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। सो, प्यारे दोस्तो, अगर कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष के ऊपर एक, दो या तीन सुपर-अध्यक्ष होंगे, तो किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए। जो तथाकथित पार्टी के नेतृत्व में परिवर्तन आया है, वह सिर्फ दिखावा है।

इसमें कोई संदेह किसी को नहीं होना चाहिए। अंदरूनी चुनाव बेशक ईमानदारी से हुआ हो, लेकिन यह भी सच है कि जिन लोगों ने खड़गे साहब को वोट दिया, वे जानते थे कि गांधी परिवार के इस वफादार पर इस परिवार की छत्रछाया है।

समस्या यह है कि जब तक कांग्रेस पार्टी एक निजी कंपनी के बजाय दुबारा राजनीतिक दल में तब्दील नहीं होती, तब तक देश को एक शक्तिशाली विपक्ष नहीं मिलने वाला है। बिना कांग्रेस के विपक्ष में रह जाते हैं सिर्फ कुछ क्षेत्रीय दल, जो तकरीबन सारे परिवारवाद के बल पर चलते हैं, सो कांग्रेस का पुनर्जीवन बहुत जरूरी है।

मगर क्या खड़गे साहब यह पुनर्जीवन दे पाएंगे, जब उन्हें मालूम है अच्छी तरह कि कोई भी फैसला वे खुद नहीं ले पाएंगे बिना ऊपर से इजाजत लिए? क्या पुनर्जीवन संभव है, जब आज भी गांधी परिवार के तथाकथित करिश्मे से चलती रहेगी कांग्रेस पार्टी?
सवाल जरूरी इसलिए हैं, क्योंकि पिछले आठ वर्षों में सोनिया गांधी ने स्पष्ट किया है बहुत बार कि उनकी प्राथमिक इच्छा है कि उनके बेटे या बेटी के हवाले की जाए वह राजनीतिक पार्टी, जिसे इनकी जन्मसिद्ध विरासत मानते हैं कई लोग।

कांग्रेस पार्टी के किसी भी वरिष्ठ नेता से बात जब होती है, तो वे स्वीकार करते हैं बिना कोई संकोच कि कांग्रेस बिखर सकती है अगर गांधी परिवार का नेतृत्व नहीं रहेगा। तो जैसे चलता आया है पिछले दो दशकों से यह राजनीतिक दल वैसे चलता रहेगा और अगले आम चुनावों में मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी होंगे, मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं।