जब भी हमारे राजनेता किसी बेमतलब विषय को लेकर हल्ला मचाने लगते हैं, तो शक होता है कि किसी गंभीर मुद्दे को छिपाने की कोशिश हो रही है। पिछले कुछ दिनों से आपने शायद देखा होगा किस तरह महाराष्ट्र के आला नेताओं ने औरंगजेब को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया कि नागपुर में दंगे हो गए थे, जिनको शुरू किया था मुसलमानों ने और जिसमें चोटें पुलिसवालों को आर्इं। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में आश्वासन दिया है कि दंगों के पीछे जो भी लोग थे, उनको दंडित किया जाएगा चाहे हमें उनको कब्रों में से क्यों न निकालना पड़े। लेकिन शायद भूल गए थे कि औरंगजेब ‘फैन क्लब’ का जिक्र तो उन्होंने खुद किया था और भड़काऊ भाषण भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने दिए थे। कहने का मतलब है कि इस मृत बादशाह को मुद्दा बनाया किसने?

औरंगजेब को लेकर जो हंगामा हो रहा है महाराष्ट्र में, उस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी आश्चर्य जताते हुए कहा है कि औरंगजेब तीन सौ साल पहले मर चुका है, तो उसका वर्तमान राजनीति से कोई वास्ता नहीं है। ऐसी बयानबाजी चल रही थी कि मैंने किसी अखबार में पढ़ा कि महाराष्ट्र सरकार के पास उनके ठेकदारों को देने के लिए पैसा नहीं है। ठेकेदारों के एक गुट ने खुल कर कहा है कि सरकार ने उनके इतने दिनों से पैसे नहीं दिए हैं कि अब यह रकम नब्बे हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। इन ठेकेदारों ने जल जीवन मिशन और ग्राम सड़क योजना पर काम किया है।

सरकारों के लिए जो ठेकेदार काम करते हैं, वे अक्सर चुपचाप अपने पैसे का इंतजार करते हैं। बोलते तब हैं, जब उनको लगने लगता है कि उनके पैसे कभी नहीं मिलने वाले हैं। वैसे भी सरकारें कई सालों तक ठेकेदारों को लटकाए रखती हैं कोई न कोई बहाना बना कर और जो शिकायत करते हैं या अदालत तक बात पहुंचाते हैं उनको भविष्य में सरकारी ठेके मिलने के अवसर कम मिलते हैं। तो हो क्या रहा है? मैंने जब अपने आप से यह सवाल पूछा, तो याद आया कि महाराष्ट्र सरकार ने लाड़ली बहना योजना पर छत्तीस हजार करोड़ रुपए से लेकर चालीस हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं।

याद कीजिए, किस तरह इस योजना ने महाराष्ट्र चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी की किस्मत बदल कर रख दी थी। मैं महाराष्ट्र में रहती हूं, सो जानती हूं कि किस हद तक इस योजना ने चुनाव की हवा बदल डाली थी। जो लोग गालियां दे रहे थे सरकार को, वही लोग बदल गए जब उनकी बीवियों के बैंक खातों में चुनाव से पहले ही सात हजार रुपए जमा हो गए थे। इसको देख कर भारतीय जनता पार्टी के नेता वादे करने लगे कि जीत जाते हैं फिर से, तो पंद्रह सौ रुपए से बढ़ा कर ‘लाडली बहनों’ को इक्कीस सौ रुपए दिए जाएंगे हर महीने।

महिलाएं इतनी खुश थीं कि जिन्होंने कभी वोट डालने की जरूरत नहीं समझी थी, इस बार खूब जोश के साथ वोट करने निकलीं। मैंने पहले भी लिखा है यहां कि इस तरह की योजनाओं से बेशक चुनाव जीते जा सकते हैं, लेकिन सत्ता में जो भी आते हैं, ऐसी छिपी आमद मतदाताओं को देकर उनकी मुश्किलें सत्ता में आने के फौरन बाद शुरू हो जाती हैं। ऐसा महाराष्ट्र में होने लगा है, लेकिन इससे पहले इस ही किस्म का हाल होते देखा है हमने हिमाचल और कर्नाटक में, जहां सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकारों को मतदाताओं से किए गए वादों को निभाने के लिए पैसे ही नहीं थे। सो, हिमाचल में चुनाव के बाद कुछ महीनों के लिए बिजली मुफ्त में मिली और फिर आने लगे इतने मोटे बिल कि लोग परेशान हो गए।

इस तरह की योजनाओं से मुझे निजी तौर पर शिकायत यह भी है कि ये सिर्फ वोट खरीदने के काम आते हैं, बिल्कुल वैसे जैसे कुछ दशक पहले मतदान के एक-दो दिन पहले लोगों में पैसे, शराब और साड़ियां बांटी जाती थीं। अब उनकी जगह ले ली है ऐसी योजनाओं ने। ऐसी योजनाओं से शिकायत मुझे यह भी है कि इनको शुरू करने के बाद बंद करना तकरीबन असंभव है, सो अक्सर जनता का पैसा बेकार जाता है। जो पैसा लगना चाहिए अच्छे स्कूलों, अस्पतालों और सड़कों में, वह अटक के रह जाता है हमेशा ऐसी योजनाओं में, जो गरीबों को राहत पहुंचाने का काम कर सकती हैं, लेकिन गरीबी दूर नहीं करती हैं। जब तक भारत के करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे रहेंगे, तब तक विकसित भारत का सपना साकार नहीं हो पाएगा।

इस कड़वे यथार्थ को छिपाए रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी के आला नेता ढूंढ़ते हैं कोई न कोई ऐसा मुद्दा जिससे जनता का ध्यान भटक जाए। सो, अब औरंगजेब बन गया है महाराष्ट्र में इतना बड़ा मुद्दा कि कुछ दिनों के लिए जनता भूल जाएगी कि उनकी असली समस्या ऐसी है कि औरंगजेब को कब्र से उखाड़ने के बाद भी समाधान नहीं मिलेगा इनका। जब औरंगजेब का मुद्दा फीका पड़ जाएगा, तो महाराष्ट्र के राजनेता अवश्य कोई और मुद्दा ऐसा उठाने लगेंगे जो जनता को भुला देगी कुछ समय के लिए कि उनके असली मुद्दे हैं बेरोजगारी, गरीबी, लाचारी और भ्रष्टाचार। महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक दिखता है उनको, जो देखना चाहते हैं। जिनको लगता है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा कर उनको लाभ नहीं होने वाला है, वे आंखें बंद करके वही मुद्दे उठाते हैं जो राजनेता उठाना चाहते हैं।

तो इन दिनों महाराष्ट्र में एक तरफ हैं वे लोग जो मुख्यमंत्री कहते हैं ‘औरंगजेब क्लब’ के सदस्य हैं और दूसरी तरफ हैं, वे लोग जो कहते हैं कि औरंगजेब को तीन सौ सालों बाद गालियां देना बेवकूफी है। ‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था। हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा’।