दो चीजों ने मुझे याद दिलाया पिछले सप्ताह कि धर्म-मजहब को राजनीति से दूर रखना कितना जरूरी है। एक तो अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने आदेश जारी किया कि महिलाओं के लिए अब मेडिकल यानी चिकित्सा की पढ़ाई मना होगी। न वे नर्स बनने की तैयारी कर सकती हैं और न डाक्टर बनने का सपना देख सकती हैं। पहले से इन कट्टरपंथी मुसलमानों ने लड़कियों के लिए शिक्षा पर कई पाबंदियां लगा रखी हैं। आठ साल की होने के बाद अफगानी लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती हैं, इसलिए विश्वविद्यालयों में जाने का सवाल ही नहीं उठता है। मेडिकल पढ़ाई अभी तक मना नहीं थी, ताकि महिलाओं के इलाज के लिए महिला डाक्टरों की जरूरत पूरी हो, लेकिन अब किसी औरत का अगर बच्चा होने वाला है, उसको न दाई मिलेगी, न महिला डक्टर।
तालिबान सरकार इतना डरती है महिलाओं से कि उनके लिए कई सारी और चीजें भी मना हैं। बिना बुर्का के वे बाहर नहीं निकल सकती हैं और बुर्का पहने अगर निकलती हैं तब भी नहीं निकल सकती हैं बिना अपने किसी सगे मर्द को साथ लिए हुए। तालिबान सरकार दोबारा बनी थी काबुल में 2011 में और शुरू में कई जाने-माने विशेषज्ञों ने कहा था कि इस बार वे पाबंदियां नहीं लगेंगी औरतों पर जो तालिबान के पहले शासनकाल में लगी थीं। सब गलत साबित हुए हैं। तालिबान शासकों ने एक बार फिर इस्लाम को अपने नजरिए से समझकर वही जुल्म ढाए हैं महिलाओं पर, जो पहले ढाए थे। ये सब हुआ है अल्लाह के नाम पर बिल्कुल वैसे, जैसे ईरान में वहां के मजहबी नेताओं ने किया है। इन देशों से भारत में हम क्या सीख सकते हैं? यही कि जब भी राजनीतिक मामलों में धर्म-मजहब का दखल होता है, जुल्म का माहौल बन जाता है।
मेरी राय में हिंदुत्व विचारधारा में धर्म और राजनीति का मिश्रण पूरी तरह हो चुका है। नतीजा यह है कि सनातन धर्म को नीचे घसीट कर इस्लाम की हिंदू प्रतिलिपि बना दिया गया है। सनातन धर्म की महानता इसमें है कि जबर्दस्ती किसी ऊपर उसूल नहीं थोपे जा सकते हैं और न ही किसी पर जुल्म ढाने की इजाजत दी जाती है। हिंदुत्व की बात और है। हिंदुत्ववादी मानते हैं कि उनको पूरा अधिकार है अपने विचार जबर्दस्ती औरों के ऊपर थोपने का। नतीजा यह है कि जितनी भी ज्यादतियां हुई हैं भारत में मुसलमानों के साथ, सारी की गई हैं हिंदुत्व का सहारा लेकर। चाहे माब लिंचिंग या भीड़ हत्या हो, चाहे गोरक्षकों के हिंसक कारनामे, चाहे खुल कर नफरत फैलाने का काम, ये सब चीजें हुई हैं हिंदुओं की रक्षा के बहाने।
अब सुनिए अपने भारत देश की एक शर्मनाक कहानी। पिछले सप्ताह ‘इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार में अंदर के किसी पन्ने पर एक खबर छपी थी तस्लीम अली नाम के उस चूड़ीवाले के बारे में, जिसको अगस्त 2021 में हिंदुत्ववादियों ने गिरफ्तार करवाया था यह आरोप लगाकर कि उसने मुसलिम होने के बावजूद एक हिंदू बस्ती में घुसकर चूड़ियां बेचने का ‘अपराध’ किया था। उसको जेल भेजने के लिए इल्जाम लगवाया गया एक तेरह साल की हिंदू बच्ची द्वारा कि उसने उसके साथ छेड़खानी की थी।
ऊपर से दूसरा आरोप यह लगाया गया कि तस्लीम अली ने हिंदू नाम ‘गोलू’ से आधार कार्ड बनवाया था। इन बेबुनियाद आरोपों के आधार पर इस गरीब चूड़ी वाले को एक सौ सात दिन जेल में गुजारने पड़े। जिस समय उसको गिरफ्तार किया गया था, उसने कोशिश की पुलिसवालों को बताने की कि उसको हिंदू युवकों के एक झुंड ने खूब मारा था और पिटाई के बाद उससे दस हजार रुपए चुरा लिए थे और उसका सेलफोन भी, लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। बाद में अदालत में साबित हुआ कि उसने आधार कार्ड को गोलू के नाम से बनवाया था, क्योंकि सब उसको गोलू ही बुलाते हैं।
तस्लीम अली की कहानी पढ़ने के बाद मुझे दुख भी हुआ, शर्म भी आई। कैसा देश बन गया है भारत कि एक गरीब चूड़ी वाले पर इस तरह के जुल्म ढाए जा सकते हैं सिर्फ इसलिए कि उसका नाम मुसलिम था, हिंदू नहीं! मेरी जानकारी के हिसाब से चूड़ी वाले अक्सर मुसलिम ही होते हैं। याद है मुझे कि दिल्ली में हम जब कांच की चूड़ियां खरीदते थे तो हनुमान मंदिर के बगल में चूड़ी वालों के बाजार में जाते थे। जब कोई शादी होती थी घर में, तो वहां जाकर बाबू चूड़ी वाले को बुलाते थे और वह अपने साथ में मेंहदी लगाने वाली को भी लाते थे, जो उसके अपने घर की लड़कियां होती थीं। चूड़ी पहनाने की तहजीब होती थी, इसलिए जब चूड़ियां पहनाते थे चूड़ी वाले, तो साथ में दुआएं भी ढेर सारी दिया करते थे।
चूड़ीवालों की कौम इतनी शरीफ होती थी कि कोई सोच ही नहीं सकता था कि वे किसी बच्ची के साथ बदतमीजी करेंगे। लेकिन जब से हिंदुत्ववादी सोच फैली है अपने इस भारत महान में, तबसे मुसलिम नाम का होना भी जुर्म माना जाता है। नफरत ऐसी फैल गई है कि वे लोग भी मुसलमानों का शिकार करने निकलते हैं जिनका वास्ता न किसी हिंदुत्व संस्था से है और जो न ही हिंदुत्व सोच को मानते हैं। तो क्या हम भारत को अफगानिस्तान जैसा देश बनाना चाहते हैं? क्या हम अपनी महान धार्मिक परंपराओं को त्याग कर सनातन धर्म को नीचे घसीट कर इस्लाम की हिंदू छाया बनाना चाहते हैं? ऐसा अभी हुआ नहीं है, लेकिन मेरे जैसे लोगों के लिए खतरे की घंटी गूंजने लगी है।
जब भी मैं ऐसा कहती हूं, तो मुझे हिंदुत्ववादी ‘सेकुलर’ शब्द को तोड़-मरोड़ के ‘सिकुलर’ (बीमार) कहने लगते हैं। मेरा जवाब यह है कि सेकुलरिज्म को राजनीति में लाना अच्छी बात है। बहुत अच्छी बात है। लेकिन जिन देशों ने सेकुलरिज्म के बदले धर्म-मजहब को घोला है राजनीतिक मामलों में, वे बन जाते हैं अफगानिस्तान, ईरान जैसे देश।