कंबोडिया में थी, जिस दिन कोलकाता के अस्पताल में हुई उस बर्बर घटना की खबर मिली। अजीब-सा दिन था वह। सुबह से मैं अपनी भारतीयता और भारतीय संस्कृति पर गौरवान्वित हुई थी उन मंदिरों को देख कर, जो भारत से प्रेरणा लेकर खमेर राजाओं ने कोई हजार साल पहले बनाए थे। कई सारे मंदिर हैं सीएम रीप शहर के आसपास, लेकिन सबसे आलीशान है विष्णु भगवान का वह मंदिर, जिसको अंगकोरवाट कहते हैं और जो दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर माना जाता है। इस विशाल मंदिर की खासियत यह है कि उसकी पत्थर की दीवारों पर रामायण और महाभारत की पूरी कहानी तराशी गई है इतनी नफासत से कि यकीन करना मुश्किल है कि इस काम को इंसानों ने किया था।
प्राचीन भारतीय संस्कृति का इतना महान प्रभाव देखकर खुशी हुई
बहुत अच्छा लगा प्राचीन भारतीय संस्कृति का इतना महान प्रभाव देखकर, इसलिए बहुत खुश होकर अपने होटल वापस लौटी थी कि खबर मिली उस दरिंदगी की, जिसको सुनकर सिर शर्म से झुक गया। अगले दस दिन की मेरी दक्षिण-पूर्वी देशों की यात्रा में मुझे रोज इस घटना को याद करना पड़ा। हर अखबार में सुर्खियों में रहे भारत के डाक्टरों के प्रदर्शन, उनकी हड़ताल और आम लोगों द्वारा भारत के शहरों में विरोध प्रदर्शन। टीवी समाचारों में भी कोलकाता की दरिंदगी सुर्खियों में रही। विदेशी पत्रकारों ने हिसाब लगाया अपने लेखों में कि हर दिन भारत में सौ बलात्कार होते हैं। इस आंकड़े को तभी याद करते हैं हम, जब किसी एक बलात्कार को लेकर हल्ला मचता है।
मुंबई वापस लौटी तो खबर मिली कि दो चार साल की बच्चियों का बलात्कार ठाणे के किसी प्राथमिक स्कूल में होने के कारण लोग सड़कों पर उतर कर गुस्सा दिखा रहे थे, तोड़फोड़ करके और रेल पटरियों पर धरना देकर। इन सब घटनाओं के बीच हाथरस की उस घटना का याद किसी अखबार ने दिलाया यह कहकर कि उस लड़की के परिवार वाले आज भी डर-डर कर अपना जीवन बिता रहे हैं, इसलिए कि उनके पीछे आज भी ठाकुर समाज पड़ा हुआ है। पीड़िता ने मरने से पहले उन ठाकुर लड़कों के नाम लिखवाए थे जिन्होंने उसे गन्ने के खेत में बलात्कार के बाद उसके दुपट्टे से उसका गला घोटा, जिसकी वजह से उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। इस दलित लड़की को न्याय दिलवाने के बाद आधी रात को पुलिस ने बिना अंतिम संस्कार किए, बिना उसके परिवार से इजाजत लिए उसकी लाश जला डाली थी। ऐसा करने से सारे सबूत भी मिटा डाले, तो न्याय कैसे होगा।
हम औरतों के साथ इस तरह की दरिंदगी क्यों नहीं रोक पाते हैं
सवाल इन दिनों पूछे जा रहे हैं कि क्यों नहीं हम औरतों के साथ इस तरह की दरिंदगी रोक पाते हैं? जवाब है यही कि पुरुष प्रधान हमारे देश में समाज के बड़े नेता भी बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को गंभीरता से नहीं लेते। याद है मुझे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सरसंघचालक का वह बयान जो उन्होंने किसी अन्य घटना के बाद दिया था। कहा उन्होंने कि इस तरह की घटनाएं होती हैं सिर्फ बड़े शहरों में, जहां पश्चिमी सभ्यता का असर है।
शायद बिना सोचा-समझे यह बयान दिया था, वरना उनको मालूम जरूर होता कि ग्रामीण भारत में औरतों की इज्जत गायों से भी कम होती है। दो पुरुषों के बीच अगर दुश्मनी पैदा होती है तो पहला शिकार बन जाती हैं उनके परिवार की औरतें। उनको नंगा करके गांव में घुमाया जाता है और अगर कोई लड़की शादी करती है किसी विजातीय लड़के से तो उसको मारना लड़की के परिवार के पुरुष अपना दायित्व मानते हैं। परिवार की ‘इज्जत बचाने’ के लिए कई बार लड़की को भी मार डालते हैं।
मैंने कई बार इस तरह की घटनाओं को करीब से देखा है। कई बार इन घटनाओं पर लिखा भी है, लेकिन आज तक इन घटनाओं को बर्दाश्त करना नहीं सीख सकी हूं। याद है मुझे कि दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार में अपनी पहली नौकरी शुरू करने के बाद जब पता लगा था कि एक दो साल की बच्ची से उसकी मां के दो दोस्तों ने बलात्कार किया इतनी बेरहमी से कि बच्ची मर गई थी।
अगली सुबह जब उसकी मां अस्पताल में रात की नर्स की ड्यूटी करने के बाद घर आई तो उसने देखा कि उसकी मरी हुई बेटी के दोनों तरफ सो रहे थे उसके दोस्त बिना परवाह किए कि बच्ची शायद तड़प-तड़प कर मरी होगी। मैंने जब अपने संपादक से कहा कि यह इतनी दर्दनाक घटना है, इस पर लिखना चाहिए तफसील से, तो उसने मुस्कराकर कहा कि इस तरह की घटनाएं तो रोज होती हैं। इसके बावजूद मैं बच्ची की मां से मिलने गई जिस दिन वह अपनी छोटी-सी बच्ची के अंतिम संस्कार कर रही थी और आज तक नहीं भूल पाई हूं उसका चेहरा। उसके दोस्त गायब हो गए थे और जहां तक मुझे याद है, उनको पुलिस ने ढूंढ़ने की कोशिश तक नहीं की थी।
उस घटना के पचास साल बाद फर्क इतना तो आया है कि आसानी से बलात्कारी भाग नहीं पाते हैं, लेकिन आज भी ऐसी घटनाएं इतनी ज्यादा होती हैं कि अक्सर उनके बारे में कोई लिखता भी नहीं है। जब तक ऐसी कोई घटना सुर्खियों में नहीं आती है, तब तक पुलिस, प्रशासन कुछ नहीं करता है।
आखिर में याद दिलाना चाहती हूं कि बिलकिस बानो के साथ जिन दरिंदों ने बलात्कार किया था, जिन्होंने उसकी तीन साल की बच्ची को उसकी आंखों के सामने सिर फोड़ कर मारा था, उनकी जब रिहाई हुई तो लोगों ने उनका स्वागत किया था मिठाई-फूल मालाओं के साथ। और जब इसके बारे में गुजरात के एक राजनेता से पूछा गया था, तो उसका जवाब था कि ये लोग ‘संस्कारी ब्राह्मण हैं’। जब राजनेता ही नहीं कर पाते हैं पीड़ित औरतों के साथ हमदर्दी, तो समाज में परिवर्तन कैसे आएगा? क्यों आएगा?