कुछ दिनों से मुझे 2004 का आम चुनाव बहुत याद आ रहा है, इसलिए कि दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में आजकल उसी किस्म की बातें हो रही हैं, जो उस चुनाव से पहले हुआ करती थीं। फर्क सिर्फ यह है कि उस साल सब कहते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी किसी हाल में नहीं चुनाव हार सकते और इस बार लोग कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी 2019 में नहीं हार सकते। भारतीय जनता पार्टी के लोग इस बात को खुल कर कहते हैं और मोदी विरोधी चुपके से कहते हैं कि मोदी को हराना तकरीबन असंभव है। इनकी बातें सुन कर याद आया मुझे कि किस तरह मैंने खुद सीएनएन के एक पत्रकार को पूरे यकीन के साथ कहा था 2004 के आम चुनावों से पहले कि सोनिया गांधी की जीत मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। मुंह की इतनी बुरी तरह खानी पड़ी बाद में कि मैंने उसके बाद कभी राजनीतिक भविष्यवाणी करने की गलती नहीं की।

सो, अब जो कहने वाली हूं उसे आप राजनीतिक विश्लेषण समझिए, भविष्यवाणी नहीं। बहुत बार जब राजनेताओं और राजनीतिक पंडितों से मैंने सुना कि 2019 में मोदी की जीत पक्की है, तो मैंने कांग्रेस पार्टी की हालत को ध्यान से देखना शुरू किया। फौरन दिखा कि राहुल गांधी आज भी इतने कच्चे राजनेता हैं कि सही मुद्दों को भी उठाते हैं गलत अंदाज से। सो, पिछले हफ्ते जब किसानों के कर्जे माफ कराने पर उन्होंने भाषण दिया, सारा मामला बिगाड़ा यह कह कर कि मैंने मोदीजी को बहुत बार कहा है कि किसानों के कर्जे माफ कर देने चाहिए। अरे भाई, आप होते कौन हैं भारत के प्रधानमंत्री को नसीहत देने वाले? राहुल गांधी की बातों को गंभीरता से लेना मुश्किल है, क्योंकि अक्सर ऐसे बोलते हैं जैसे प्रधानमंत्री उनके नौकर हों।
सो, कांग्रेस पार्टी की किस्मत अच्छी है कि राहुल की माताजी की तबीयत अब पहले से कहीं ज्यादा ठीक हो गई है और वे फिर से साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच झगड़ा विचारधारा का है। पिछले सप्ताह उन्होंने कहा कि कांग्रेस ऐसे भारत का सपना देखती है, जिसमें हर नागरिक का बराबर का अधिकार हो और भाजपा की सोच ऐसी है जिसमें धर्म-जाति के स्तर पर बांटे जाते हैं हक। माना कि ऐसी बातें वे पिछले तीन वर्षों से कहती आ रही हैं, लेकिन अब उनकी बातों में वजन है गोरक्षकों की हिंसा की वजह से, जो इतने बेलगाम हो गए हैं कि इंडिया टुडे पत्रिका के एक सर्वेक्षण के मुताबिक हर हफ्ते कोई नई हिंसक घटना हो रही है अब। गोरक्षकों के हाथों मारे गए लोगों में सिर्फ मुसलिम और दलित हैं और इसका फायदा कांग्रेस उठाने लगती है अगर, तो कहना मुश्किल होगा कि 2019 का आम चुनाव कौन जीतेगा।
इसमें कोई शक नहीं कि 2014 में अगर दलित और मुसलिम समाज के लोगों ने नरेंद्र मोदी को वोट न दिया होता, तो उनको पूरा बहुमत कभी न मिल पाता। कांग्रेस पार्टी की वोट बैंकों वाली राजनीति से ये तंग आ चुके थे और मोदी का परिवर्तन और विकास वाला नारा उनको अच्छा लगा। इससे भी अच्छा लगा जब प्रधानमंत्री बनते हुए उन्होंने वादा किया था कि वह सबका साथ, सबका विकास करना चाहते हैं। लेकिन जब गोरक्षकों के उत्पात का सिलसिला शुरू हुआ, तो मोदी बहुत देर तक चुप रहे। न उन्होंने मन की बात में इनका जिक्र किया है अभी तक और न ही उन्होंने उस संघ परिवार को दूर करने की कोशिश की है, जिससे प्रेरणा लेकर गोरक्षक दलितों और मुसलमानों को बर्बरता से मारते आए हैं पिछले दो वर्षों में। दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अगर स्पष्ट शब्दों में इस हत्या की निंदा की होती, तो शायद गोरक्षक इतने बेलगाम न होते।

अब समस्या इतनी गंभीर है कि भारत के माथे पर दाग लग गया है और प्रधानमंत्री मोदी की अपनी छवि इतनी बिगड़ गई है कि जो लोग कल तक उनके पक्के समर्थक थे, आज दूर होते दिख रहे हैं। कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी बेशक आज भी उनके साथ हैं, लेकिन जो नौजवान उनका समर्थन इस उम्मीद से कर रहे थे कि उनके दौर में भारत एक पिछड़ा हुआ गरीब देश न रह कर संपन्नता और समृद्धि की दिशा में तेजी से दौड़ने वाला है, उनमें अब मायूसी दिखने लगी है। इसलिए कि वे जानते हैं, पढ़े-लिखे होने के नाते, कि जहां अराजकता और अशांति होती है, वहां विकास और प्रगति की कोई जगह नहीं रहती। ऊपर से मोदी की समस्या यह भी बन सकती है कि रोजगार के नए अवसर पैदा करने में उनकी सरकार विफल रही है। आज उनके मंत्री कहते फिरते हैं कि बेरोजगारी के आंकड़े इतने गलत हैं कि कोई नहीं जानता कि भारत में बेरोजगारी का असली आंकड़ा क्या है।दिल को खुश रखने के लिए ऐसी बातें अच्छी हैं, लेकिन यथार्थ यह है कि भारत के किसी भी गांव में जाने पर साफ दिखते हैं बेकार नौजवानों के झुंड। उनसे बात करने की तकलीफ अगर कोई करता है, तो स्पष्ट शब्दों में यह बताते हैं कि भारत की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। ये नौजवान अक्सर शिक्षित होते हैं, सो एक तो खेती में काम करना नहीं चाहते और दूसरे, यह कि खेती में किसी परिवार के सिर्फ एक सदस्य के लिए नौकरी की गुंजाइश है। मोदी के दौर में इस स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा है।
सो, प्रधानमंत्री जी 2019 की दौड़ में बेशक आप आगे होंगे, लेकिन जीतेंगे दोबारा यह तय नहीं है।