कब आएंगे अच्छे दिन प्रधानमंत्री जी! बताइए, कब आएंगे अच्छे दिन! यह ताना कांग्रेस के प्रवक्ता इतनी बार मारते हैं आजकल टीवी पर कि याद दिला दिया है उन दिनों का, जो बहुत बुरे थे। मेरी आधी से ज्यादा उम्र गुजरी है उस लाइसेंस राज के दौर में, जब न भारत के लिए दिन अच्छे थे न भारतवासियों के लिए। बुनियादी चीजों का अभाव इतना था उस लाइसेंस राज के दौर में कि घंटों खड़ा रहना पड़ता था इस देश के आम आदमी को राशन की दुकानों के सामने। घंटों बाद जब बारी आती थी तो मालूम पड़ता था कि या तो दूध नहीं है या चीनी या कुछ न कुछ और जरूरी चीज का अभाव।
उस दौर में मैं रहा करती थी खान मार्केट के पास की एक गली में। उन दिनों खान मार्केट दिल्ली का सबसे चमकता, महंगा बाजार नहीं, था सिर्फ हमारा स्थानीय मार्केट, जहां हम रोजमर्रा की चीजें लेने जाया करते थे। याद है मुझे घंटों गैस सिलेंडर की लाइन में खड़ा रहना। और इसको भी मैं गनीमत मानती थी, क्योंकि गैस का लाइसेंस सबको नहीं मिलता था, सिर्फ उनको मिलता था जिनकी पहुंच थी। मुझे मिला था एक सांसद की खुशामद करने के बाद। लाइन में लगने के कारण और भी थे। मदर डेरी से दूध की थैली लेने के लिए लाइन लगती थी, किराने की दुकान से चीनी लेने के लिए लाइन में लगना पड़ता था और त्योहारों के मौसम में चीनी हमेशा गायब हो जाती थी। पत्रकार होने के बावजूद फोन के लिए भी मुझे कई सिफारिशें करानी पड़ी थीं। गाड़ी खरीदने के लिए लाइन इतनी लंबी थी कि जिस दिन मैं अपनी छोटी-सी हरे रंग की मारुति गाड़ी चला कर घर आई, दिल खुशी से पागल हो गया था।
उस समाजवादी दौर के बुरे दिनों से मैंने दो सबक सीखे। एक, कि सरकारी अधिकारी कभी बिजनेस में सफल नहीं हो सकते हैं। दूसरा, कि गरीबी की पूजा जब तक हम करते रहेंगे तब तक भारत में समृद्धि नहीं आने वाली है। उस दौर में हमारे सारे राजनेता समाजवादी सोच में विश्वास रखते थे और चूंकि उनकी आर्थिक नीतियों से गरीबी समाप्त नहीं हुई थी, वे दिन-रात गरीबों के गुण गाया करते थे। माहौल ही कुछ ऐसा था कि हिंदी फिल्मों में भी अमीरों को खलनायक के रूप में दर्शाते थे अक्सर फिल्म निर्देशक और गरीबों को हीरो के रूप में। यकीन था सबको उस दौर में कि गरीबी कभी हट नहीं सकती है भारत में।
नरेंद्र मोदी पहले राजनेता बने, जिन्होंने गरीबी समाप्त करने के अलावा भी कोई लक्ष्य रखा देशवासियों के सामने। प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने हर भाषण में मोदी याद दिलाते थे कि भारत गरीब देश न होता अगर हमारे शासकों ने गलत आर्थिक नीतियां न अपनाई होतीं। निजी तौर पर मुझे मोदी की ये बातें बहुत अच्छी लगीं और मैंने अपने लेखों में उनका समर्थन किया है इसीलिए आज तक। लेकिन बीच में वे भटक-से गए और कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों की तरह बातें करने लगे जब राहुल गांधी ने उन पर ‘सूट-बूट की सरकार’ का ताना पहली बार कसा। इसके बाद मोदी भी गरीबी और गरीबों के गुण गाने लग गए। सो, अच्छा लगा जब पिछले हफ्ते उन्होंने लखनऊ में अपने भाषण में कहा कि हर उद्योगपति को चोर कहना गलत है। याद दिलाया कि देश की तरक्की में उनकी अहम भूमिका है।
सो, क्या आशा कर सकते हैं अब कि उनके लिए कारोबार करना थोड़ा आसान हो जाएगा?
मोदी कई बार कह चुके हैं कि उनके दौर में कारोबार करने का माहौल इतना अच्छा हो गया है कि विदेशी निवेशकों की लाइन लग गई है। हो सकता है, लेकिन यह भी बात सही है कि देशी उद्योगपति हजारों की तादाद में देश छोड़ कर चले गए हैं पिछले चार वर्षों में, क्योंकि उनके लिए कारोबार करना इतना मुश्किल कर दिया गया है। उनकी कठिनाइयों का मुख्य कारण है मोदी की चलाई हुई काले धन को ढूंढ़ निकालने की मुहिम। इसको सफल बनाने के वास्ते मोदी ने आयकर विभाग के अधिकारियों को और भी ताकतवर बना दिया है। पहले भी भ्रष्टाचार इस विभाग में काफी था, लेकिन अब इस विभाग के अधिकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि खुल कर रिश्वत मांगते हैं छापा मारते समय और खुल कर डराने-धमकाने लगे हैं। उनके जाल में जब कोई ईमानदार कारोबारी भी फंस जाता है, उसको भ्रष्ट करने की कोशिश करते हैं रिश्वत देने के लिए मजबूर करके।
सो, प्रधानमंत्री जी अब जब आपने खुद याद दिलाया है कि हर उद्योगपति को चोर समझना गलत है, क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि आप अपने उन भ्रष्ट अधिकारियों को काबू में लाने का प्रयास करेंगे, जिन्होंने बिजनेस का माहौल इतना बिगाड़ रखा है कि उन बुरे दिनों की याद आ गई है, जो लाइसेंस राज में हमने देखे थे? इतने बुरे दिन थे वे कि अगर वापस लौट कर आ जाते हैं गलती से तो यकीन के साथ कहा जा सकता है कि भारत हमेशा-हमेशा के लिए गरीब, भ्रष्ट और बेहाल रहेगा। इतने बुरे दिन थे वे कि कांग्रेस ने खुद देश की आर्थिक दिशा बदलने का फैसला किया था लाइसेंस राज को समाप्त करके। जो थोड़ी-बहुत तरक्की इस देश ने देखी है वह आई है 1992 के बाद, जब लाइसेंस राज की समाप्ति हुई थी। सो, जब कांग्रेस के चतुर नेताओं ने देखा कि मोदी ऐसे आर्थिक सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके द्वारा निजी क्षेत्र में निवेश भी बढ़ जाए और रोजगार के अवसर भी, उन्होंने ऐसी चाल चली जिसने मोदी को भटका दिया। अच्छे दिन चाहे न भी आए हों, उन बुरे दिनों को वापस लाना बहुत बड़ी गलती होगी।