राहुल गांधी की हिंदी कमजोर है, सो कई बार उलटे-सीधे बयान निकल आते हैं उनके मुंह से। मगर क्या उनकी राजनीतिक सोच भी इतनी कमजोर है कि वे जानते नहीं हैं कि जब प्रधानमंत्री पर इल्जाम लगाते हैं ‘खून की दलाली’ का तो असली अपमान कर रहे हैं उन जवानों का, जो हमारी सीमाओं पर खून बहा कर अंतिम बलिदान देकर करते हैं इस देश की रक्षा? राहुलजी कई दिनों से ग्रामीण उत्तर प्रदेश में यात्रा कर रहे हैं, सो शायद उन्होंने देखे न होंगे वह दर्दनाक दृश्य, जो हमने रोज देखे हैं ऊड़ी वाले हमले के बाद। देखी नहीं होगी उन्होंने शायद वे चिंताएं उन उन्नीस सिपाहियों के परिजनों की, जिनको अग्नि देने वाले बेटे इतने छोटे थे कि उनको गोद में उठा कर अंतिम संस्कार करने पड़े अपने पिताओं के। देखे होते ये दृश्य तो किसी हाल में राहुल गांधी ‘खून की दलाली’ जैसा बयान न देते।
वैसे तो पहले दिन से सोनिया और राहुल गांधी ने स्पष्ट किया है कि उनको स्वीकार नहीं है किसी हाल में कि गुजरात का एक मामूली चाय वाला उस गद्दी पर आकर बैठे, जिस पर उनके परिवार का जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता है। सो, 2014 के आम चुनावों के बाद जिस दिन परिणाम आए और मालूम हुआ कि उस चाय वाले ने भारतीय जनता पार्टी को पूरी बहुमत दिलवाई है और कांग्रेस की सिर्फ चौवालीस सीटें आई हैं लोकसभा में, तो राहुल अपनी मम्मीजी के साथ कांग्रेस मुख्यालय के सामने आए पत्रकारों से मिलने। छोटी-सी भेंट थी, जिसमें सोनीयाजी ने ‘नई सरकार’ को बधाई दी, लेकिन मोदी का नाम लिए बिना। इसके बाद जब लोकसभा में विपक्ष में बैठ कर राहुलजी ने भाषण देने शुरू किए, तो हर बार ‘आपके प्रधानमंत्री’ कहा, एक बार भी देश के प्रधानमंत्री नहीं।
नरेंद्र मोदी की बातें जब भी की तो आलोचना करने के लिए। उनके एक भी काम की प्रशंसा नहीं की, लेकिन जब ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ हुए तो उनको कुछ तो कहना पड़ा, सो कहा कि ‘दो वर्षों में पहली बार प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जैसा काम करके दिखाया है।’ उनकी मम्मीजी ने भी पूरा समर्थन जताया सरकार के साथ। फिर जब ऐसा लगने लगा कि देशवासियों को कुछ ज्यादा ही गर्व हो रहा है इस बात पर कि भारत सरकार ने पहली बार पाकिस्तानी हमलों का जवाब हमला करके दिया है, तो शायद गांधी परिवार और उनके करीबी सलाहकारों को चिंता होने लगी। सो, पहले तो उन्होंने संजय निरुपम जैसे मामूली प्रवक्ताओं से संदेह जताना शुरू किया। फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहना शुरू किया कि नियंत्रण रेखा के उस पार उनके शासनकाल में भी इस तरह के सैनिक हमले हुए थे, लेकिन चुपके से। चुपके से क्यों? इसके बाद जब पूर्व सेनाध्यक्षों ने कहा कि इस तरह की सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार हुई है, तो कांग्रेस ने रणनीति बदली और फिर से आक्रामक भूमिका अपनाई।
राहुलजी की समस्या यह है कि उन्होंने शुरू से स्पष्ट किया है कि उनकी नजरों में भारत को असली खतरा हिंदुत्व से है, आरएसएस से है, जिहादी आतंकवाद से नहीं। पांच वर्ष पहले मालूम हुआ विकिलीकस द्वारा कि उन्होंने किसी अमेरिकी राजदूत के साथ मुलाकात करते हुए इस बात को स्पष्ट शब्दों में कहा था। आप उनके किसी भी भाषण का विश्लेषण करें तो पता लगेगा कि तकरीबन हर भाषण में कांग्रेस के युवराज साहब संघ के खिलाफ बोलते हैं। यहां तक कि आरएसएस को उन्होंने गांधीजी की हत्या के लिए भी जिम्मेदार ठहराया है इतनी बार कि मामला अदालत तक पहुंच गया है। गर्व से कहते फिरते हैं अब भी कि वे अपने बयान को वापस लेने के लिए तैयार नहीं हैं।साथ-साथ अगर वे जिहादी आतंकवाद के खिलाफ भी आवाज उठाए होते तो कम से कम ऐसा तो न लगता कि वे सिर्फ हिंदुत्व के खिलाफ बोलने को तैयार हैं, जिहादियों के खिलाफ नहीं। दुनिया मानती है आज कि जिहादी सोच से विश्व को इतना खतरा है कि तीसरा विश्व युद्ध तक हो सकता है इस सोच की वजह से। दुनिया यह भी मानती है कि जिहादी आतंकवाद का केंद्र पाकिस्तान है। पाकिस्तान के सैनिक शासक अपने आप को आतंकवाद से पीड़ित साबित करने की बहुत कोशिश करते आए हैं और इनकार करते हैं कि पाकिस्तानी सरकार का कोई समर्थन मिलता है उन जिहादी तंजीमों को, जो पाकिस्तान से पैदा हुई हैं। लेकिन जबसे ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एक सुरक्षित सैनिक शहर में छिपा मिला, तबसे पाकिस्तान के पुराने दोस्त भी मान चुके हैं कि पाकिस्तान के शासकों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
हमारे ही कुछ अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी जैसे राजनेता हैं, जिनको पाकिस्तानी सरकार की बातों पर इतना विश्वास है कि अपने देश के प्रधानमंत्री की बातों पर विश्वास कर नहीं सकते हैं। सो, बार-बार इनकी तरफ से सुनने को मिला है पिछले कुछ हफ्तों में कि जब तक सबूत नहीं पेश करती है भारत सरकार कि वास्तव में हमारे सैनिक सीमा पार जाकर गुलाम कश्मीर में कुछ जिहादी अड्डों को खत्म करके आए हैं, तब तक उनको विश्वास नहीं होगा कि ऐसा हुआ था। सबूत उनको मांगना चाहिए था पाकिस्तान से कि जिन आतंकवादियों ने ऊड़ी में हमारे उन्नीस जवान मारे थे वे पाकिस्तान से नहीं आए थे, लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया।
केजरीवाल की बातों को हम एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल सकते हैं आराम से, लेकिन कांग्रेस के सबसे बड़े राजनेता की बातों को ऐसा नहीं कर सकते हैं। इसलिए राहुलजी के सलाहकारों को चाहिए उनको नसीहत देना कि आइंदा जरा सोच-समझ कर अपनी बातें रखें। भारत के प्रधानमंत्री पर ‘खून की दलाली’ का इल्जाम लगाना न सिर्फ उनका अपमान है, उन जवानों का भी है, जो हमारी सीमाओं पर अपनी जान से खेल कर देश की रक्षा करते हैं।