एक चैनल इतिहास ‘बदलने’ में लगा है। दूसरा अतीक के बेटे ‘असद’ की मुठभेड़ में मौत ‘मुठभेड़’ है कि ‘हत्या’ है, इस बहस में उलझा है।
यह सोलह अप्रैल की रात है, कि साढ़े दस बजे के आसपास चैनल खबर देते हैं कि प्रयागराज के काल्विन अस्पताल में अतीक और अशरफ को ‘चिकित्सीय जांच’ के लिए ले जाया जा रहा है। एक पुलिसकर्मी अतीक-अशरफ के हाथों को बांधने वाली रस्सी ठीक करता नजर आता है। एक चैनल का रिपोर्टर अपना ‘गनमाइक’ अतीक के मुंह के पास लाकर पूछता है कि आप बेटे के जनाजे में क्यों नहीं गए?

बुझी आवाज में अतीक कहता है, ‘नहीं ले गए तो नहीं गए’। इसके तुरंत बाद अशरफ कहने लगता है: ‘मेन बात यह है कि गुड्डू मुसलिम… कि अचानक एक पिस्तौल अतीक की कनपटी से सटती है, सिर पर बंधा सफेद साफा उठ जाता है, कि एक ठांय होती है और अतीक गिर जाता है। साथ में अशरफ भी गिर जाता है। उसके बाद गिरे हुओं पर तीन युवक कूद-कूद कर गोलियां चलाते दिखते हैं। मानो गोली गोली खेल रहे हों…

तीनों हत्यारे उन दोनों पर चालीस सेकंड में अठारह गोलियां चला देते हैं। फिर वे पिस्तौल फेंक देते हैं। वे समर्पण की मुद्रा में आ जाते हैं। एक पुलिसकर्मी दो हत्यारों को दबोचता दिखता है। एक जमीन पर गिरा है, उसे पुलिस उठाती है। इनमें से कोई ‘जय श्रीराम’ भी बोलता बताया जाता है और चैनलों में बजती हत्यारी माफिया कहानी ‘बदल’ जाती है।

एक नेता एक दल का नाम तक ले लेते हैं

कैमरों के ‘कवरेज’ में बदहवासी है। एंकर बदहवास हैं। वे बहसें छोड़ इसे ‘कवर’ करने लगते हैं और हजार सवाल उठने लगते हैं: अतीक की हत्या के पीछे कौन? क्या वह पुलिस को अपने खैरख्वाहों के नाम बता चुका था? क्या उनमें से किसी ने उड़वा दिया? एक नेता एक दल का नाम तक ले देते हैं।

ऐसे ही सवाल अगले दिन भी जारी रहते हैं: जांच के लिए रात को ही क्यों लाया गया? उनकी सुरक्षा का क्या हुआ? पुलिस ने हत्यारों पर गोली क्यों नहीं चलाई? इसके बाद माफिया द्वय की ‘रहस्यमय हत्या’ नेताओं के हवाले हो जाती है। एक विपक्षी नेता: अतीक को जानबूझ कर मरवाया गया है। दूसरा: यह ‘स्टेट किलिंग’ है। तीसरा: उसे मीडिया ने मरवाया… चौथा: ‘ये एक समुदाय की ‘टारगेटिंग’ है’। पांचवां: ‘यूपी में ‘माफिया सरकार’ है’।
दोपहर होते-होते चकिया के ‘माफिया डान’ अतीक, ‘अतीक जी’ में बदल जाते हैं। एक नेता कहता है: ‘अतीक जी’… दूसरा कहता है: ‘अतीक जी’! तीसरा कहता है: ‘अतीक जी’! एक कहता है कि वे चुने गए विधायक थे, सांसद थे। दूसरा कहता है कि वे ‘रोबिनहुड’ थे। फिर एक पत्रकार याद करने लगता है कि वे इतने महान थे कि उन्होंने मुझे प्यार से बिरयानी खिलाई थी…

फिर एक चैनल सोशल मीडिया की एक तस्वीर दिखाता है, जिसमें एक कांग्रेसी नेता अपनी कविता में अतीक को नायक बनाकर उसके कसीदे गाता दिखता है कि: ‘…सदियों तलक कोई अतीक अहमद नहीं होगा…’। एक अन्य कांग्रेसी नेता की श्रद्धा अतीक पर इस कदर उमड़ती है कि वह उसकी कब्र पर तिरंगा चढ़ा कर उसे ‘शहीद’ बताता और ‘भारत रत्न’ देने की मांग करता है… बाद में पार्टी को उसे निकालना पड़ता है!
ऐसी ही एक बहस में एक एंकर पूछता है कि हत्यारा ‘जी’ कैसे हुआ, तो जवाब आता है कि मीडिया ने माफिया बनाया… वरना मुकदमे किस पर नहीं होते…

सच! बेशर्म बहसें और अधिक बेशर्म हुई जाती हैं: अतीक की लूट, ब्लैकमेल, दबंगई, बर्बरता और नृशंस हिंसा के शिकार एक-एक कर अपनी बर्बादी की कहानियां चैनलों पर सुनाते हैं, जिनमें एक उसका रिश्तेदार भी है… कई एंकर, रिपोर्टर और कुछ पैनलिस्ट बताते रहते हैं कि अतीक पर सौ से अधिक मुकदमे रहे, लेकिन एक मुकदमा आगे नहीं बढ़ा।

उसका आतंक इतना रहा कि जज तक उसका मुकदमा सुनने से पहले ही अपने को हटा लेते थे और गवाह और प्रमाण सब गायब हो जाते थे। जब एक मुकदमा चला तो वह अंदर हुआ, वरना उसको कोई अंदर नहीं कर सका, क्योंकि उसके बचाने वाले थे। उसके खौफ की कहानियां सारे यूपी और प्रयागराज में लोगों की जुबान पर हैं, फिर भी वह किसी के लिए ‘जी’ है, किसी के लिए ‘रोबिनहुड’ है।

एंकर पूछते कि उसे किसने बनाया? जवाब में जिन्होंने बनाया वे कहते कि हमने कहां, उसे तो जनता ने बनाया… लोग बताते रहे कि एक की हत्या कर उसने उसकी लाश तक पर साठ गोलियां चलाईं… एक को तेजाब में नहला कर चौराहे पर फेंक दिया… जिस ‘प्रापर्टी’ पर उसका दिल आ जाता, वह उसकी हो जाती। जो ना करता, उसकी जिंदगी तबाह हो जाती… उसका पूरा परिवार ही माफिया था। पत्नी शाइस्ता तक को मीडिया ‘माफिया क्वीन’ बताता है। उस पर इनाम है, लेकिन वह फरार है।…

बहसें अब तक पूछती फिरती हैं कि इन तीन युवकों के पीछे कौन है? उनके पास तुर्किए की बनी सात-आठ लाख रुपए वाली प्रतिबंधित ‘जिगाना’ पिस्तौल कैसे आई? गोली चलाने का प्रशिक्षण किसने दिया? कासगंज, बांदा और हमीरपुर जैसे छोटे शहरों के ये तीनों युवक किशोरावस्था से ही आवारा और जेली… पूछताछ में एक ने कहा ‘नाम कमाने के लिए मारा’! दूसरा बोला कि ‘टाप का माफिया बनने के लिए मारा’! तीसरे ने कहा कि ‘आयम डान आयम डान…’

ऐसी ‘माफियाजीवी’ कहानियों के बावजूद, देश में एक ओर ‘एप्पल शोरूम’ खोलने की खबरें हैं। दूसरी ओर ‘इतिहास कतरने’ पर बहसें हैं। तीसरी ओर ‘यूके’ में ‘हिंदू फोबिया’ पर बहसें हैं। चौथी ओर कर्नाटक में ‘आयाराम गयाराम’ का जलवा है। पांचवी ओर एक अदालत ने भैया जी को फिर से झटक दिया है, जिसके जवाब में कहा जाने लगता है कि अदालत दबाव में है… एक बहस में एक कांग्रेसी नेता कहता है कि कांग्रेस के पास एक से बड़े एक वकील हैं, उनमें से कोई पैरवी करने क्यों नहीं जाता? एंकर पूछती है कि क्या यह ‘भितरघात’ है, तो नेता मंद-मंद मुस्कराता दिखता है…