फिर एक दिन भारत सरकार द्वारा ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’ को ‘दस फीसद आरक्षण’ देने की नीति पर, सुप्रीम कोर्ट के ‘पांच जजों’ में से ‘तीन जजों’ ने अपनी ‘सहमति’ की मुहर लगाई, जबकि ‘दो जजों’ ने ‘असहमति’ जताई! यह खबर आते ही एक जाति आधारित आरक्षणवादी आत्मा बहुत अकुलाई और उसने तुरंत बोल दिया कि न्यायपालिका जातिवादी है… लेकिन एक दूसरे दलित नेता ने साफ कहा कि हम इसका स्वागत करते हैं… इसी तरह एक अल्पसंख्यकवादी नेता जी कहिन कि यह सब हिंदुत्व को फैलाने की कोशिश है, जबकि फैसले के पक्षधर कहिन कि यह तो सबके विकास के लिए है! हाय! एक निहायत पंथनिरपेक्ष आरक्षण नीति भी आरक्षणवादियों द्वारा कोसी जाती रही!

फिर एक दिन ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को ‘केजीएफ टू’ ने झिड़का कि बिना इजाजत उसके गाने ‘मिले कदम जुड़े वतन’ को यात्रा के ‘प्रोमो’ की तरह बजाना कापीराइट का हनन है, इसे बंद करें, नहीं तो मुकदमे के लिए तैयार रहें… और भैये, ‘यात्रा’ तुरंत ‘बे-गाना’ हो गई!

फिर एक दिन कर्नाटक कांग्रेस के एक नेता को दूर की सूझी, सो एक बैठक में कह दिए कि ‘हिंदू का जो मतलब है, बड़ा गंदा है…’ ‘शर्मनाक है’…‘हिंदू शब्द यहां का नहीं है’… इसके बाद वही हुआ जो होना था: हर चैनल पर बहसें उठ खड़ी हुईं। हर बहस में भाजपा प्रवक्ता आक्रामक और कांग्रेस प्रवक्ता रक्षात्मक दिखे!

भाजपा प्रवक्ता बोलिन कि कांग्रेस शुरू से ‘हिंदू विरोधी’ है। फिर किस कांग्रेसी नेता ने कब-कब हिंदुओं का अपमान किया, उसकी फेहरिस्त दी जाने लगी। एक एंकर तो गुस्से में उछल-उछल कर कहने लगा कि मैं इसे अब और नहीं सह सकता… अब हम और नहीं सहने वाले… अब हिंदू नहीं सहने वाला… दी जाती गालियों को अब हिंदू नहीं सहेंगे… बहस में एक वैदिक विद्वान ने स्पष्ट किया कि ‘हिंदू’ को ‘सिंधु’ का ‘अरबी संस्करण’ कहना मूर्खता है।

‘हिंदू’ शब्द सीधे संस्कृत से आया है। चीनी यात्री फाहयान ने इसे ‘इंतु’ कहा… ‘अमरकोश’ में इस क्षेत्र को ‘इंदु’ कहा गया है, जिसका अर्थ ‘चंद्रमा’ है…‘चंद्रमा मनसो जात: …’ नेहरू ने भी अपनी ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ में इसे ‘इंदु’ से निकला बताया है… एक एंकर बोला कि ऐसे लोग हिंदुओं को ‘पंचिग बैग’ मान कर ठोंकते रहते हैं।

ऐसा वातावरण विदेशियों को यहां आकर धर्मांतरण कराने की हिम्मत देता है… इन परमज्ञानी नेता जी का माफीनामा जब तक आया, तब तक कांग्रेस ‘हिंदू विरोधी’ सिद्ध की जा चुकी थी!

फिर एक दिन एक छोटे नेता ने फिल्म ‘हर हर महादेव’ को आपत्तिजनक मान कर सिनेमाघर में मारपीट कर उसे बंद कराया, तो ‘मनसे’ ने उसे फिर खुलवाया और फिल्म दिखवाई! इसे देख एक एंकर ने बहस में उस नेता की गिरफ्तारी की मांग की!

इन दिनों ‘ओपिनियन पोल’ की ‘पोलें’ भी दिखने लगी हैं। कहीं कोई जीतता दिखता है, तो कहीं कोई! अपने साप्ताहिक ‘पोल’ में एक चैनल गुजरात और हिमाचल में भाजपा को जीतता दिखाता रहा, तो एक अन्य चैनल भी भाजपा को जिताता दिखाता रहा, लेकिन एक चैनल गुजरात में भाजपा और आप के बीच की ‘फाइट’ को ‘टाइट’ बताता रहा!

इस ‘टाइट फाइट’ का राज एक बहस में भाजपा के प्रवक्ता ने खोला कि गुजरात में कांग्रेस ने चुनाव का मैदान आप के लिए छोड़ दिया है… फिर एक शाम कुछ चैनलों पर 1984 के सिख विरोधी दंगों के आरोपी एक कांग्रेसी नेता को दिल्ली नगर निगम चुनावों के ‘पार्टी पैनल’ में रखने के औचित्य अनौचित्य पर बहसें कराते रहे। बहसों में कई आहत सिख कांग्रेस के इस कदम के प्रति अपनी घोर नाराजगी जताते रहे, जबकि कांग्रेस के प्रवक्ता इस कदम को एकदम सही बताते रहे!

ऐसी ही शाम एक अंग्रेजी चैनल बंगलुरु में एक ‘स्टैंडअप कमेडियन’ के एक कार्यक्रम को रोक दिए जाने को लेकर बहस कराता रहा। बहस में बैठा एक कमेडियन इसे ‘व्यंग्य करने की आजादी का खात्मा’ बताता रहा, लेकिन ‘शो’ को ‘रोकने’ का एक पक्षधर हर बात पर टोकता रहा! यह कौन-सी आजादी और सहनशीलता थी सर जी!

बहरहाल, इस बार हिंदी चैनलों पर चंद्रग्रहण कम दिखा, ज्योतिषी पंडितजन और साधुजन अधिक दिखे! हर ज्योतिषी पंद्रह दिन पहले के सूर्यग्रहण और इस चंद्रग्रहण के प्रभाव और संकट गिनाता रहा और फिर उपाय बताता रहा, लेकिन इस बार वैज्ञानिक कम ही दिखे! क्यों?