अंग्रेजी चैनल सीएनएन न्यूज अठारह में ‘हिंदू युवा वाहिनी’ की एक दिन की एक हिंसक कथा कही जा रही थी, लेकिन स्क्रीन पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘हिंदू वाहिनी’ की जगह ‘हिंदी वाहिनी’ लिखा दिख रहा था! ‘हिंदू वाहिनी’ ‘हिंदी वाहिनी’ होता रहा और एंकर मजे से हिंदू युवा वाहिनी की खबर लेता रहा! जिस देसी अंग्रेज एंकर को हिंदू और हिंदी का फर्क नहीं मालूम उसका आप क्या कर सकते हैं? तीन दिन तक भैया जी अपने नए चैनल ‘रिपब्लिक’ में एक ही वीडियो बजाते रहे। इसमें सवाल भी वही थे और जवाब भी वही! पत्रकारिता के चारों पुरुषार्थ वे समझाते और अपने माथे पर बार-बार लटक आती जुल्फ को हटाते रहे! तीन दिन के बाद रिपब्लिक चैनल ने अर्णब का प्रोमो किया: धांय धांय धांय! नेशन फर्स्ट! एक्सपोज सूडो लिबरल्स! कोई समझौता नहीं! अर्णब इज बैक! यानी खबरदार बाअदब बामुलाहिजा होशियार एक्सपोज के शहंशाह अर्णब पधार रहे हैं… बतर्ज ‘गब्बर इज बैक’ ‘अर्णब इज बैक’!

और पहले ही दिन पूरे दस-बारह घंटे अपने भैया जी ने लालू-शहाबुद्दीन की फोनाफोनी को ऐसा बजाय कि बाकी चैनल चित्त! रिपोर्टरों को लालू के घर के चारों ओर तैनात कर दिया और अपनी वाली शैली में दहाड़ने लगे: लालू अब तुम बच के नहीं जा सकते। देखो लालू डर गया। छिप गया। देख रहा है रिपब्लिक। हम भी छोड़ने वाले नहीं हैं। साफ करके रहेंगे करप्शन से देश को। लालू को अंदर किया जाय! नीतीश कहां हैं? जवाब दें!  सब जानते हैं कि ऐसे अवसर पर हमारे भैया जी का चेहरा कैसा उत्तेजित होता है! इसी उत्तेजना में वह मुंहजोर लट बार-बार माथे पर आ ही जाती है, जिसे फिर-फिर हटाना पडता है! यही अदा तो कातिल है…फिर हर दिन एक भंडाफोड़। हर दिन एक सिर की मांग कि एक दिन सुबह से लेकर शाम तक भैया जी मांग करते रहे कि सुनंदा पुष्कर की ‘हत्या’ हुई थी, थरूर को तुरंत हिरासत में लिया जाय! शाम तक उनके पास थरूर को अंदर कराने के लिए दस में से आठ विचारक फ्रेमों में लटके थे।

रिपब्लिक चैनल का रंग लाल पीला है, मिजाज भी लाल पीला है। एंकर ही नहीं बकिया एंकर-रिपोर्टर सब न्यूज रूम तक उस दिन के खलनायक को लेकर दांत पीसते नजर आते हैं, जिसका ‘वध’ उस दिन तय किया गया होता है। ‘रिपब्लिक’ की जगह चैनल का नाम अगर ‘चिपब्लिक’ होता तो यथानाम तथा गुण कहलाता। यह चैनल जिसके पीछे चिपक जाता है उसे जान छुड़ानी मुश्किल होती है। कंपटीशन का बाजार गरम है। अंग्रेजी चैनल, नए चैनल ‘रिपब्लिक’ को ओवर रेट करके अपने-अपने क्रोध की सेल का कंपटीशन कर रहे हैं। टाइम्स नाउ अपने ब्रांड ‘क्रोध’ की सेल वैल्यू बनाए रखने के लिए काले सफेद में एक खास प्रोमो दिखाता है, जिसमें एंकरों के इतने क्रुद्ध और क्षुब्ध चेहरे दिखाता है कि देख कर डर लगता है!टाइम्स नाउ और रिपब्लिक एक-दूसरे पर नजर रखते दिखते हैं।
एक अन्य अंग्रेजी चैनल की एक एंकर तो सफेद कोट पहन कर ऐन जलती आग के बीच से चल कर आती है। जब एकाध लपट उसके आजू-बाजू लग जाती है तो अपने हाथ मार कर उसे ऐसे बुझाती है जैसे आग न हो, धूल हो। उसकी मुखमुद्रा एकदम क्षुब्ध क्रुद्ध और कटखनी-सी होती है। ये एंकर इतने क्रुद्ध क्षुब्ध क्यों नजर आते हैं? लाखों की नौकरी क्रोध को कोट की तरह ओढ़ कर आती है, शायद इसीलिए प्रोमोज तक में इस कदर कटखनापन झलकता है।  लगता है कि हमारे खबर चैनल ‘विपक्षमुक्त भारत’ बनाने पर तुले हैं। हिंदी के हों या अंग्रेजी के, सब हर दिन विपक्ष की सरकारों या नेताओं को निशाना बनाते रहते हैं। किसी के पास भाजपा शासित राज्यों के एक्सपोज की कहानी नहीं होती।चैनलों की नजरों में सबसे उत्तम हैं सीएम योगी जी! हर चैनल उनको कुछ इस तरह पेश करता है जैसे उनके पास यूपी की हर समस्या का ‘क्विकफिक्स’ हो। सीएनएन न्यूज अठारह शायद इसीलिए उस दोपहर अपने गाल बजाता दिखा, जब उसने बताया कि यूपी में सड़क पर छिड़काव करने वाले टैंकरों द्वारा पानी के दुरुपयोग पर चैनल की रपट के बाद तुरंत बैन लग गया। कट टू योगी जी!
ऐसी रपटें देख कर लगता है कि आजकल यूपी में ‘जेट स्पीड’ से काम हो रहा है, जैसे एक एमएलए ने एक आइपीएस अधिकारी को जनता के सामने फटकार कर तुरता एक्शन किया। ऐसे ही संत कबीर नगर में एक अस्पताल के डॉक्टर को मरीजों के सामने डांट कर दिखाया गया। चैनलों का सीधा न्याय है कि सहारनपुर या ऐसी किसी समस्या पर विपक्ष को पीटिए लेकिन विकास के लिए योगी जी को श्रेय दीजिए! खबरों का वितरण किस कदर आसान हो चला है।

जिस दिन बड़ी अदालत ने निर्भया केस में चारों अभियुक्तों को सजा-ए-मौत सुनाई, उस दिन भी चैनल क्रोध में उसी तरह बौराए रहे, जिस तरह पांच साल पहले बौराए दिखे थे। फांसी! फांसी! फांसी! एक चैनल ने भी इन अभियुक्तों के घरवालों की ओर रुख नहीं किया कि वे क्या सोचते हैं? कपिल मिश्र की कहानी केजरीवाल को कभी हिलाती रही, कभी खुद हिल जाती रही। पहले दिन लगा कि केजरी गए। दूसरे दिन लगा, कपिल की टांय टाय फिस्स! कुछ पर्सनल पंगा,कुछ राजनीति का पंगा। कपिल ने छिपाया कुछ नहीं। कह दिया- जो गुरु केजरीवाल से सीखा है, वही वापस कर रहा हूं, जैसे रोज केजरी के खिलाफ खबर बना रहा हूं, अनशन पर बैठा हूं, मंत्रियों के विदेश दौरों का ब्योरा जब तक न दोगे तब तक न हटूंगा…! हाय! अपने अण्णा जी! वे ‘आप’ राजनीति के फिल्मी ‘नाजिर हुसैन’ बने दिखते हैं कि जब-जब दिल्ली में केजरी टारगेट बनते हैं, तब-तब उनका का दिल टूट जाता है और अब तकदर्जनों बार टूट चुका है! कुछ भी कहिए, केजरी कपिल की कहानी में कुछ तो ‘कामिक रिलीफ’ नजर आता है, वरना खबरें इस कदर कटखनी बना दी गई हैं कि लगता है खबरों के सींग और दांत निकल आए हैं!