जब तक हुर्रियत निशाने पर रही तब तक कई चैनलों पर हर शाम दो हुर्रियत नेता, दो देशभक्त रिटायर्ड जनरल, दो सुपर देशभक्त नेता बिठा लिए जाते। इधर से उनकी ठुकाई की जाती, उधर से इनकी होती! ये पाक को शाप देते, वे आजादी की मांग करते और सभी ‘मार मार मार मार’ का ऐसा शोर उठाते, मानो फ्रेम से निकल कर ये अभी तमाम तरह के गद्दारों को ठिकाने लगा देंगे! लेकिन एमपी के पांच किसानों के मारे जाने की खबर ने ‘हुर्रियत’ की कहानी पर बे्रक लगा दिए! न जाने कितने दिन बाद ऐसे क्षुब्ध सीन दिखे, जिनमें ‘किसान चैनल’ के किसानों की जगह सचमुच के हजारों किसान सड़कों पर आंदोलित थे, जो मांग रहे थे कि उपज का सही मूल्य तय करो और लोन माफ करो!
इसे देखते ही ‘हैपी प्रदेश’ के हाथ-पांव फूल गए! हैपीनेस में गोली चला दी गई। पांच-छह किसान ठौर हो गए! हैपी गुरु की हाय हाय होने लगी!
किसानों के आंदोलन के पहले अपने परम देशभक्त चैनल बहुत बिजी थे: एक वाड्रा को अंदर कराने पर तुला था, दूसरा भारतीय क्रिकेट टीम को पाकिस्तानी टीम से मैच न खेलने देने पर अड़ा था! अचानक किसानों की कहानी ब्रेक हुई और हैपी प्रदेश में पांच किसानों के ठौर मारे जाने के बाद कैमरों की नजर बदली और वे किसान आंदोलन को कवर करने लगे। रिपब्लिक ने एक रिपोर्टर ग्रांउड जीरो पर ही उतार दिया, जो पूरे दिन जिस तिस से पूछती रही- किसकी गोली से मरे किसान? कहां हैं सीएम? सामने पुलिस चौकी है और एक भी पुलिस नहीं दिख रही! रिपोर्टर भीड़ से खुद घबराई दिखी!
एक डरा हुआ मंत्री बोला: पुलिस की गोली से नहीं मरे। कांग्रेस प्रेरित समाज-विरोधी तत्त्वों ने चलाई।
लेकिन अगले ही रोज उसी मंत्री को मानना पड़ा कि किसान पुलिस की गोली से मरे हैं!
यहां मंत्री प्योर झूठ पेल देते हैं। एक दिन बोल कर गए कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई। अगले दिन मंत्रीजी बिना सॉरी कहे बोले: चलाई! इतनी हैपीनेस में किसे पड़ी है कि सॉरी कहे!
लेकिन अपने हैपी प्रदेश की चार-पांच दिन तक मीडिया में जो जम के धुनाई हुई, वह याद रहेगी!
न जाने कबका संचित जनाक्रोश सड़कों पर उतर आया था! किसान ही किसान। हर दृश्य हलचल भरा। कैमरों में अस्थिरता और शोर और दूर तक आगजनी! एक किशोर की लाश। रोते-बिलखते किसान। न्याय की गुहार करते किसान!
चैनलों ने संकेत भी दिया कि न जाने कब-कब का क्रोध निकल पड़ा है। एक चर्चा ने बताया कि नोटबंदी से लेकर गोबंदी तक का क्रोध भी इसमें शामिल रहा!
दो अंग्रेजी चैनल उस फुटेज को दिखाते रहे, जिसमें एक पुलिस अधिकारी पुलिस वालों से कह रहा था कि अगर कोई उपद्रव करता है और आदेश मिलता है, तो जितना मार सको उतना मारो!
यह थी हैपी प्रदेश की डंडा-हैपी पुलिस!
दिल्ली जगी, मगर देर से। चैनलों ने खबर दी कि पीएम ने एमपी को लेकर कैबिनेट मंत्रियों की मीटिंग ली है! गृह मंत्रालय अधिक सुरक्षा बल भेजेगा की खबर आई।
यहां भी बातचीत की जगह ‘बल’ की बात?
हैपी प्रदेश के इस ‘फटे’ में राहुल ने पैर रोप दिया कि किसानों से मिलूंगा। रोका तो अगले रोज वे नीमच पहुंच गए। नजरबंद कर लिया गया, लेकिन इस सबमें उनको अभूतपूर्व लाइव कवरेज मिला। वे मोदी सरकार की ‘किसान-विरोधी नीतियों’ की बखिया उधेड़ते रहे। भाजपा प्रवक्ता और एंकर-रिपोर्टर अटैक करते रहे कि यह उनका ‘फोटो अॅप’ (फोटो खिंचवाने का अवसर) है।
लेकिन एंकरजी! आप ही तो राहुल को ‘फोटोे अॅप’ का अवसर दे रहे थे। आपके कैमरे कवर न करते तो क्या वे ‘फोटो अॅप’ का फायदा उठाते? तब काहे तोहमत लगाते हैं कि फोटो अॅप है!
भाजपा के प्रवक्ता अब भी नहीं समझ पाते कि उपहास उड़ाने से राहुल नहीं उड़ने वाले, बल्कि निंदनीयता ही उनकी यूएसपी है!
और इन दिनों तो राहुल भाजपा को मानो ‘टीज’ (तंग) करने के लिए निकल पड़े हैं। अब यह ‘टीजर’ नहीं तो और क्या था कि राहुल ने कहा कि संघ को जवाब देने के लिए वे गीता उपनिषद पढ़ने वाले हैं, तो एक भाजपा प्रवक्ता बोले: कौन-सी किताब पढ़ी है इन्होंने अब तक? एक ही पढ़ी है: ‘हाउ टू मेक मनी बाई रियल एस्टेट’ और गीता का ज्ञान ‘वर्चुअस’ (गुणी) को ही मिलता है!
इतना अहंकार ठीक नहीं मेरे दोस्त!
राहुल ने ‘टीजर’ डाल-डाल कर भाजपा को खिझाने की नीति सीख ली है और भाजपा उनको कुछ ज्यादा ही सीरियसली लेने लगी है! इसका लाभ राहुल को मिलता है। उनके विजुअल्स की वैल्यू बढ़ जाती है।
सावधान! राहुल का उपहास कहीं राहुल की वापसी का कारण न बन जाय!
हमें तो डर था कि हमारे परम राष्ट्रवादी एंकर कहीं इन किसानों को भी राष्ट्रविरोधी घोषित न कर दें, लेकिन उनकी व्यथा ने इनको सकरुण कर दिया!
उधर केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह जब रामदेव के साथ योग साधना करते दिखे, तो टाइम्स नाउ ने लाख रुपए की लाइन लगाई: किसान खाएं बुलेट, मंत्री करें योग!
सप्ताह एनडीटीवी की आजादी की लड़ाई के नाम रहा। छापों के विरोध में उसने लिख कर प्रतिवाद किया कि एनडीटीवी के ठिकानों पर सीबीआई द्वारा मारे जा रहे छापे बदले की भावना से प्रेरित हैं। हमने जिस बैंक से लोन लिया था उसे लौटा चुके हैं। अदालत तक ने हमारे खिलाफ केस एडमिट नहीं किया। यह मीडिया की आजादी और जनतंत्र पर हमला है!

