मोदीजी ने टाइम्स नाउ को लिफ्ट क्या दी कि वह रेटिंग्स में टॉप पर पहुंच गया। इस स्पेशल लिफ्ट को देख बकिया चैनल खिसियाए होंगे कि हम क्या सौतेले हैं सरजी? मोदीजी की इस कृपा से टाइम्स नाउ का मान और मार्केट दोनों बढ़े, तो अर्णवजी की गुड्डी सातवें आसमान पर पहुंची! वे एंकरों के एंकर नजर आए। पीएम बनने से पहले दिए पहले इंटरव्यू में अर्णव से बात करते हुए मोदीजी अतिरिक्त सावधान दिखे थे। चेहरा उद्विग्न और व्यग्र दिखता था। कुछ देर बाद वे अपनी फार्म में आए तो प्रतिप्रश्नों के जवाब में उन्होंने अर्णव को टोक कर कहा कि ‘अपना होमवर्क ठीक से किया कीजिए’।
लेकिन इस दूसरे इंटरव्यू में मोदीजी का चेहरा आत्मविश्वास से दीप्त रहा, मानो कहते हों कि बचुआ तुम पूछो हम बताते हैं! बातों-बातों में वे दो हजार चालीस तक का एजंडा सेट कर गए, जिसे उन पर नजर रखने वालों ने अब तक न समझा। एक-एक वाक्य नपा-तुला रहा। अपनी रीति-नीति पर पूरी पकड़ दिखी। दो साल की उपलब्धियों और योजनाओं की लिस्ट उनकी जुबान पर थी।
अर्णव मोदीजी की इस कृपा से निहाल हो रहे। पचासी मिनट तक वे किसी आज्ञाकारी जिज्ञासु बालक की तरह सवाल पूछते रहे। एक बार भी प्रतिप्रश्न नहीं किया। मोदीजी ही ‘फ्रेंकली स्पीकिंग’ दिखे, अर्णव सिर्फ ‘थैंकफुली स्पीकिंग’ दिखे। टाइम्स नाउ मोदीमय रहा। बाकी सब किनारे रहा। वह दर्शकों का साइबर ज्ञान बढ़ाता रहा: यह बिगेस्ट इंटरव्यू है, जिसे सोशल मीडिया पर सवा अरब से ज्यादा ‘इंप्रेशन’ मिले हैं। छह घंटों में दो लाख पचास हजार ने ‘ट्वीटम् ट्वीटानि’ किया है। फेसबुक पर एक लाख चैवालीस हजार ने ‘एकनॉलेज’ किया है। सारे रिकार्ड टूट गए हैं। एक शाम दो ट्वीट महारथी बुलाए। वे बताते रहे कि ट्वीट गिनने-संभालने की तकनीक क्या है और कैसे मालूम किया कि एक अरब से ज्यादा इंप्रेशन्स का मतलब क्या है? मोदीजी के साथ चैनल का ऐसा सिंक रहा, दोनों दो दिन, ढाई रात सेलीब्रेट होते रहे। न्यूज आवर में उस शाम अर्णव का चेहरा दर्प से दमकता था। एक नई तीखी चमक नजर आती थी, जो शायद अन्य चैनलों और स्पर्धियों को फीका बनाती थी।
टाइम्स नाउ ने खुद को भी सेलीब्रेट किया कि इन दिनों बाकी चैनल शून्य अंक पर रहे, जबकि टाइम्स नाउ छियानबे प्रतिशत का दर्शक आंकड़ा पार कर गया! यह जादू था मोदीजी के स्पर्श का! इस सुपर हाइप में विपक्ष की आलोचना अरण्यरोदन-सी लगी! दूसरी बेहतरीन बातचीत एनडीटीवी पर दिखी। प्रणय राय ने न्यूयार्क टाइम्स में बेस्टसेलर की लिस्ट में आई पुस्तक ‘द राइज ऐंड फाल आॅफ नेशन्स’ के लेखक रुचिर शर्मा से बातचीत की। राष्ट्रों के उत्थान और पतन के लिए रुचिर ने दस मानक कहे और भारत को सात मानकों पर बेहतर और अच्छी श्रेणी में रखा, लेकिन तीन मानकों में खराब श्रेणी में रखा। इनमें एक मानक था मीडिया के हाइप का मारा होना! रुचिर का कहना था कि राष्ट्रों और उनके नायकों के पतन में मीडिया टू मीडिया हाइप अहम भूमिका निभाता है। ‘हाइपर रीयल’ की वजह से यथार्थ पकड़ नहीं बन पाती। हिंदुस्तान सावधान!
इस बीच राजस्थान महिला आयोग की एक सदस्या ने एक रेप विक्टिम की सेल्फी ली और वह ‘वाइरल’ हो गई। वाइरल होते ही सारे चैनल बावले हो गए। सदस्या की निंदा शुरू हो गई। उधर जवाब में सलमान के माफी न मांगने पर ‘माफी ब्रिगेड’ फिर लौटी। उधर सलमान को लगा कि क्यों मांगें माफी? एक बार मांगी तो माफी ही मांगते रह जाओगे। इस विकट ‘जिच’ को देख बीच का रास्ता निकाला इंडिया टुडे के करन थापर ने। हिम्मत के साथ नई लाइन दी कि सलमान का माफी मांगना क्या जरूरी है? और बहस बदल गई! घेरे में आर्इं महिला आयोग की ललिता कुमारमंगलमजी, जिन्होंने सलमान के जवाब में माफी न मांगने पर कहा कि अगली कार्रवाई से पहले कानूनी राय ली जाएगी, यानी केस किया जाएगा। चिंतकों की चिंता बढ़ी। दिलीप चेरियन ने फरमाया कि सेल्फीबाजी और सलमान दोनों ही निंदनीय, लेकिन मीडिया ऐसे मामलों को हाइप करता रहता है और रेप से जुड़ी भयानकता के प्रति ध्यान नहीं जा पाता। दिलीप पडगांकर ने कहा कि सलमान का कमेंट निंदनीय है, लेकिन उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात करना अतिवाद है।
इस बात पर सर्वानुमति रही कि मूर्खों के मूर्खतापूर्ण वक्तव्यों को इतना तूल नहीं दिया जाना चाहिए। जो भर्त्सना के योग्य है, उसे कानूनी सजा देने की बात क्यों? कविता कृष्णमूर्ति बोलीं कि आयोग सलेक्टिव है, कुछ को सजा देने की बात करता है, कुछ को सिर्फ चिठ्ठी लिख के रह जाता है। ललिताजी रक्षात्मक हो गर्इं। जाहिर है! इसे कहते हैं एजंडा बदलना!
तीसरी बड़ी कहानी हरियाणा के वाड्रा लैंड डील आदि की जांच करने वाले जस्टिस ढींगरा कमीशन की रिपोर्ट के आते-आते रुक जाने, बीच में कुछ नए सबूत आ जाने के कारण रिपोर्ट जमा करने की मियाद बढ़वाने और वाड्रा के ऐसे अकडू ट्वीटों ने बनाई। वाड्राजी ने लिख दिया- मेरे खिलाफ प्रमाण नहीं। मैं अपना सिर ऊंचा करके चलूंगा! वाड्रा भैया! सारी लड़ाई ईगो की है। जब तक आप जिम में अपनी बॉडी बिल्डिंग करते दिखोगे, तब तक आपकी खैर नहीं। लेकिन जस्टिंस ढींगरा के रिपोर्ट जमा करने के टाइम में विस्तार मांगने की सब-टेक्स्ट को जिस तरह से अर्णवे ने पढ़ा, उससे वे शरलक होम्स के बाप लगे। कह उठे कि रिपोर्ट अगर आज जमा कर दी जाती, तो संसद के वर्षा कालीन सत्र के लिए भाजपा को मसाला मिल जाता। मांगे हुए विस्तार के बाद चौदह अगस्त को रिपोर्ट जब दी जाएगी, तो संसद सत्र बीत चुका होगा। क्या बात है? वाड्रा अर्णव तुमको जीने न देंगे, कांग्रेस वाले तुमको मरने न देंगे!
इस हाहाहूहू में शास्त्री बरक्स सौरभ की भिड़ंत सब चैनलों पर न आ सकी। न कर्नाटक के सीएम के गाल पर एक महिला नेत्री के दिए तीन किस चैनलों को बहस के लिए उत्तेजित कर सके, न टीएसआर सुब्रह्मण्यन की ‘शिक्षानीति’ के सूत्रों पर चर्चा आ सकी। जितनी आई, उससे रिपोर्ट की एडवांस में हजामत हो गई। रिपोर्ट कैंपसों से राजनीति को एक्जिट करना चाहती है, जिसे सिरे से एक संघ विचारकजी ने ही रिजेक्ट कर दिया!

