सन 1984 के सिख विरोधी दंगे के एक ‘खलनायक’ के बारे में चालीस बार अदालत ने कहा कि चार्जशीट तैयार करें। फिर छिड़ा वही अस्मितावादी राग कि अपने बंदे को बचा, दूसरे को लटका! फिर असम से खबर टूटी कि दफ्तरों में शुक्रवारी नमाज के लिए दो-तीन घंटे वाली विशेष छूट खत्म और फिर इस पर प्रतिक्रिया कि ये धार्मिक आजादी पर हमला है… नहीं, ये कानूनी मसला है। फिर आई कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ के सेंसर बोर्ड में फंसने की खबर, क्योंकि एक समुदाय का एतराज। फिर कई चैनलों पर बहसें। बहसों में कंगना।
पीएम ने शिवाजी महाराज से मांगी माफी, विपक्ष अब भी नाराज
महाराष्ट्र में एक जगह गिरी कुछ महीने पहले लगी छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति और उसके साथ गिरी छवि सरकार की कि विपक्ष का ‘हल्ला बोल’। फिर प्रधानमंत्री का शिवाजी महाराज के चरणों में गिरकर क्षमा मांगना, फिर भी विपक्ष नाराज कि शिवाजी हमारे भगवान हैं, माफी मांगने से काम नहीं चलने वाला। यानी माफी मांगो तो गए, न मांगो तो भी गए।
देश में डेढ़ लाख से ज्यादा जातियां, सिर्फ गिनते रह जाओगे
फिर आई हरियाणा के चरखी दादरी से कुछ स्वनियुक्त गोरक्षकों की कुछ बंगाली मजदूरों को गोमांस पकाने के संदेह में ‘लिंच’ करने की खबर। इस कांड में एक की मृत्यु तक हो गई। पुलिस की त्वरित कार्रवाई ने स्थिति संभाली, लेकिन चैनलों में वही हुआ, जो होता है। एक विपक्षी कहे कि इनके लोग हार की हताशा निकाल रहे हैं। प्रशासन कहे कि जांच शुरू, दोषियों को सजा दी जाएगी। इसी बीच, एक चैनल ने बिहार के जाति सर्वे की एक झलकी दे दी कि बिहार में पिछड़े सत्ताईस फीसद, अति पिछड़े छत्तीस फीसद, अनुसूचित जाति उन्नीस फीसद के आसपास हैं। लेकिन हम तो समझे थे कि पिछड़े आगे होंगे। तभी एक चर्चक बहसा कि अपने यहां ‘एक लाख पैंसठ हजार जातियां-उपजातियां’ हैं। सिर्फ गिनते रह जाओगे।
फिर एक ज्ञानी नेताजी ने कटाक्ष किया कि असम के मुख्यमंत्री ‘चीनी वर्जन’ हैं। जवाब आया कि ये शुद्ध नस्लवाद है। ऐसा ही एक देसी-अमेरिकी ने भी कहा था कि इंडिया में पूरब के बंदे चीनी नस्ल के हैं। इस बीच बड़ी अदालत ने चेताया कि बुलडोजर सिर्फ आरोप पर नहीं चलेगा, कानून के अनुसार चलेगा। इसके बाद एक नया बुलडोजर विमर्श चैनलों में आकर बैठ गया। एक बड़े नेता कटाक्ष किए कि सत्ताईस के बाद उत्तर प्रदेश के सारे बुलडोजर गोरखपुर की ओर। तो जवाबी कटाक्ष आया कि बुलडोजर सबके वश की बात नहीं… उसे चलाने के लिए दिल-दिमाग चाहिए।
फिर आई उड़ान आइसी 814 ‘कंधार हाइजैकिंग’ पर बनी वेब शृंखला और सर जी, शृंखला का नाम भी गजब ढाया कि ‘हाइजैकिए’ सारे मुसलिम, लेकिन किसी का नाम भोला, किसी का शंकर। इसे ही कहते हैं कि कलात्मक की जगह गजब की ‘छलात्मक’ आजादी। ये कैसा बढ़िया छल कि पहले जानबूझ कर गड़बड़ करो, फिर आजादी का रोना रोओ। जब विवाद से मुफ्त का प्रचार हो जाए तो उलट जाओ। इसके बाद एक राज्य में ‘खटाखट रेवड़ी’ बांटने के लिए अनुसूचित जातियों के हिस्से के 25,000 हजार करोड़ रुपए को दूसरे खाते में ‘खटाखट’ कर दिया गया। ऐसे ही दूसरे ‘खटाखट’ राज्य में कर्मचारियों को तनख्वाहें नहीं मिल रहीं। मिलें भी कैसे?
राज्य का अधिकांश पैसा ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने में लगा दिया। एक एंकर ने टीप लगाई कि पूर्व प्रधानमंत्री तक ने ऐसी ‘खटाखट बाजी’ का विरोध करते हुए कहा कि ऐसे ही करते रहे तो एक दिन देश दिवालिया हो जाएगा। लेकिन अपने ‘वोक’ बंधु सिर्फ इतना सोचते हैं कि ‘खटाखट’ से वोट लेते रहो। बाद में देश-राज्य दिवालिया हों तो हों।
इन दिनों कई महानुभावों को ‘जाति गणना’ इतनी प्यारी लगती है कि जब तक उसे करा न लेंगे, मानो पानी तक नहीं पिएंगे। शायद इसी होड़ में ‘एक जी’ कह दिए कि नाक रगड़, कान पकड़ कर जाति गणना कराएंगे। फिर आया एक बड़े सांस्कृतिक संगठन का बयान कि जाति गणना हो, लेकिन उसका राजनीतिक उपयोग न हो। भाई जी! राजनीति के बिना जाति गणना का मतलब क्या?
इसके बाद बंगाल से आया एक ‘बलात्काररोधी विधेयक’ जो बलात्कारियों को देगा आजीवन कैद या फांसी, लेकिन इस पर भी कुछ कह रहे हैं कि यह ‘डराने वाला’ है और जो कोलकाता में हुआ उसे ‘ढंकना’ है। फिर कुछ चैनलों में आया कश्मीर के संदर्भ में ‘बाहरियों’ का ‘लूट विमर्श, फिर आया तीन सौ सत्तर, फिर से आए का विलाप और सन पचास वाले ‘वजीरे आजम’ का आलाप। फिर भी एक कहता रहा कि अब 370 बहाल नहीं हो सकता। फिर आई शिमला में एक अवैध मस्जिद के विरोध की आवाजें और धरना प्रदर्शन। फिर सवाल उठा कि इसका कौन जिम्मेदार, तो जवाब आया कि मस्जिद बनती रही, इनकी आंखें बंद रहीं और उनकी भी बंद रहीं। और अंत में आई ‘भागवत वाणी’ कि कोई अपने को भगवान क्यों समझे? आपके अंदर की दिव्यता को लोग परखेंगे।