‘पाकिस्तान क्या होगा तुम्हारा, तुम्हें अंदाज नहीं है, कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान का नाम न होगा, लाहौर से निकलेगी गंगा, इस्लामाबाद में लहराएगा अपना तिरंगा, कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान न होगा… भारत माता की जय!’ वीर रस से भरे इस लंबे आवाहन गीत को एक सिपाही बार-बार गाता। बस में बैठे बाकी लोग ‘कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान न होगा’ कोरस में दुहराते! ‘उड़ी’ में मारे गए जवानों के प्रति यह एक जवान की श्रद्धांजलि जैसी थी, जो जनता में वीर रस पैदा करने के लिए एक अंगरेजी चैनल पर बार-बार बजाई जा रही थी। पूरा सप्ताह वीर रस से सराबोर रहा!
उड़ी पर हमले के तुरंत बाद हर चैनल पर अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, रूस, अफगानिस्तान द्वारा पाक प्रायोजित हमले को कंडेम करने की लाइनें दिखाई जाती रहीं! ‘पाकिस्तान आज सौ फीसद अलग-थलग पड़ गया है’ ऐसी लाइन चैनलों पर बजती रहीं! एक अंगरेजी चैनल पर चीन का कंडेम करना भी दिखा, लेकिन बुधवार की रात तक चीन पाक के पक्ष में खड़ा नजर आया! अफसोस कि हम अपनी वीरतावश चीन की असली लाइन देर में जान सके! अपना हर चैनल सातों दिन वीर मुद्रा में नजर आया। एक से एक आक्रोशात्मक लाइनें दिखती रहीं:न्यूज चौबीस ने लाइन दी: हिंदुस्तान मांगे पाक से बदला।‘जी न्यूज’ ने लाइनें लगार्इं: घरों में मातम, देश में गुस्सा। अठारह शहीदों की शहादत का भारत कैसे लेगा हिसाब? मेरे पापा का बदला कब? हिंदुस्तान की यही पुकार अबकी बार सीमा पार।
‘इंडिया न्यूज’ पर उसी सैनिक का वीरगान आता रहा कि ‘कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान न होगा’! न्यूज एक्स ने लाइन दी: जिनेवा में बड़ा विरोध प्रदर्शन। सिंधी और बलूचों का प्रदर्शन। बलूच विद्रोही ब्रह्मदाग बुगती ने शरण मांगी।…इंडिया टुडे की लाइन थी: पाक को सबक सिखाने का समय?एनडीटीवी ने खबर दी: बान की मून ने ‘उड़ी’ पर हमले को कंडेम किया। टाइम्स नाउ ने अपने ही तेवर की लाइनें लगार्इं: छब्बीस साल में सबसे बड़ा हमला! इस बार बच कर कहां जाओगे नवाज?‘प्रतिक्रिया करने का हमारा हक सुरिक्षत है। हम तय करेंगे कब और कहां क्या कार्रवाई करें?’ ऐसा कहने वाले ले. जनरल रणवीर का चेहरा तमतमाया रहा। शहीद सैनिकों के ताबूत और रोते-बिलखते लोग। पिता की शहादत के बाद भीएक बालिका इम्तहान देती हुई। एक अंधे पिता का दूसरा बेटा भी चला गया। एक मां रोते हुए बोली: बदला लो!
पहले तीन दिन चैनल गुस्से में आग बबूला होते दिखे। वे जनता के गुस्से का प्रदर्शन दिखाते रहे। दूसरी ओर पीएम, गृहमंत्री, रक्षामंत्री और सुरक्षाधिकारियों की मीटिंगों के निर्णयों के बारे में बताया जाता रहा और ग्राउंड जीरो से भी रिपोर्टें जारी रहीं। यों तो अपने रिटायर्ड सेनाधिकारियों की गरम लाइनें पहली शाम से ही आती रहीं, लेकिन तीसरी शाम तक वीरता के ऐसे प्रदर्शन और आवाहनों को कुछ होश आया। कुछ विशेषज्ञों ने अपने एंकरों को समझाना शुरू किया। एनडीटीवी पर हरदीप पुरी ने चेताया कि बदला लेने की तरकीबों की बातें टीवी पर नहीं की जातीं। उत्तेजना में कूटनीति का दामन नहीं छूटना चाहिए। लेकिन टाइम्स नाउ ने लाइन दी कि यह ‘पे बैक टाइम’ यानी ‘हिसाब चुकता करने का वक्त’ है। पाक के आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया जाय…!इंडिया टुडे पर अमिताभ बच्चन और गौतम गंभीर देश के लिए बोलने आए। बाबा रामदेव ने लाइन दी कि मोदीजी को बुद्ध और युद्ध दोनों की बात करनी चाहिए! अपने यहां लाइन देने वालों की कमी नहीं। कैमरे सामने आते ही बोल पड़ते हैं: चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम!
चैनलों में स्पर्धा होती दिखी। इंडिया टुडे ने लाइन दी कि ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में भारत के भाषण की तारीफ की, तो तुरत टाइम्स नाउ ने लाइन दी कि अमेरिका का भरोसा नहीं किया जा सकता। इंडिया टुडे ने पीएम के हवाले से चंद लाइनें टिकार्इं कि कोई नरम विकल्प नहीं है। दुश्मन पर कड़े प्रहार की अनुमति है, यानी ‘हिट देम हार्ड’!
ऐसे तनाव भरे दौर में भी टाइम्स नाउ ने कुछ रिटायर्ड पाक जनरलों को भारत को गालियां सुनाने के लिए कनेक्ट कर लिया। वे सब भारत को गालियां सुनाने लगे। जब कहने पर भी चुप न हुए, तो मारूफ रजा ने कहा कि अर्णव इनका माइक आॅफ करो, वरना ये इसी तरह बकवास करते रहेंगे। जब वे फिर भी न माने तो मारूफ ने कहा कि इनको बुलाना बंद करो। ये सिर्फ अपना प्रचार करते हैं। संघ के प्रवक्ता शेषाद्रिचारी ने गुस्से से भर कर कहा कि इन लोगों को इनके चैनल तक नहीं बुलाते, आप क्यों बुला लेते हो? तारिक फतह अली ने कहा कि इन जनरलों को देख कर हम समझ सकते हैं कि पाकिस्तान ने कैसा ‘गटर’ तैयार किया है? ऐसे संकट के वक्त बूढ़े जनरलों की बुढ़भस नहीं झेली जा सकती!
संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में शरीफ के भाषण के अंशों को हमारे अंगरेजी चैनलों ने बाजाप्ता दिखाया, फिर भारत के प्रतिनिधियों के जवाबों को दिखाया और झट लाइन लगाई कि पाक सौ फीसद अलग-थलग पड़ा! पांचवें-छठे दिन की बहसों में चैनल भारत के विकल्पों पर चर्चा में मगन रहे। किसी ने तीन विकल्प दिए, तो किसी ने चार दिए! गोपनीय रणनीतिक विकल्पों का ऐसा कंपटीटिव मार्केट सजा कि आप किसी भी विकल्प को लेकर ताल ठोंक सकते थे। विकल्प देने वाले मारूफ, मनोज जोशी, जनरल शंकर, जनरल मलिक और बाकी विशेषज्ञ खुलेआम बताते रहे कि बदला लेने के ये ये विकल्प हैं! किसी ने न चेताया कि चुप करो! अपने गाल न बजाओ! रणनीतियां टीवी में बैठ कर तय नहीं की जातीं!
आखिर में बुधवार की रात को साथी अर्णव गोस्वामी ने राष्ट्र को पांच विकल्प दिए, जिनमें अंतिम विकल्प इस तरह था कि ‘वन फ्रंट वार’ होगा कि ‘टू फ्रंट वार’ होगा, यानी कि पाक के खिलाफ एक मोरचा पर युद्ध होगा कि डबल मोरचे वाला युद्ध होगा? हमारी सलाह मानें तो इनमें से एक मोरचे पर अर्णव को फ्रंट पर जरूर भेज दिया जाय, ताकि पाकिस्तान हमेशा के लिए ठंडा हो जाए!

