कश्मीर अब एक दैनिक खबर है, लेकिन हम चैनलों में एक कश्मीर नहीं, कई कश्मीर देखते हैं। एक चैनल घाटी के घावों को दिखाता रहता है, दूसरा अंगरेजी चैनल सैनिकों के घावों को दिखाता रहता है। जब तक घावों का यह कंपटीशन जारी रहेगा तब तक घाव नजर आते रहेंगे।
मेडल-भूखे देश के लिए मेडल लाने में दम लगाया साक्षी ने, सिंधू ने, लेकिन उनके यश की चमक में अपने चेहरे चमकाने आ गए राजनेता! तेलंगाना और आंध्र में तो जैसे मैच ही हो गया। सिंधू और कोच गोपीचंद को मंचों पर बिठा कर नेता जोर-जोर से भाषण देते रहे, बैंड-बाजे बजवाते रहे, स्कूली बच्चों को नचवाते रहे! डबल डेकर वाली डबल-डबल परेड देख कर लगा कि सिंधू की जीत देश की जीत की जगह दो राज्यों के बीच तेलुगू अस्मिता की अंदरूनी फाइट है! आंध्र के सीएम तो मंच पर ही सिंधू के साथ बैडमिंटन खेलते दिखे! चैनलों की पहली पसंद बैडमिंटन ही रहा, कुश्ती का जिक्र तो साक्षी के कारण करना पड़ा। चैनलों का चरित्र मिडिल क्लास। बैडमिंटन का खेल मिडिल क्लास वाला, इंगलिश मीडियम वाला और कुश्ती का खेल ‘देहाती’ और हरियाणवी हिंदी मीडियम वाला! इसीलिए बैडमिंटन की बारीकियों पर पोपट से लेकर मुराद अली तक सब विशेषज्ञता दिखाते रहे। कुश्ती के साक्षी-दांव पर किसी ने एक वाक्य तक न बोला! चैनलों की प्राथमिकता साफ थी। देश लौटने के बाद सिंधू को दो दिन तक कवरेज मिला और साक्षी को सिर्फ एक दिन! यह कैसा प्रोफेशनलिज्म है भाई? मेडल की शुरुआत तो साक्षी से ही हुई थी न!
नरसिंह यादव के संग जो कुछ हुआ वैसा किसी के साथ न हो। इस कदर डौले-शौले बना कर वह किसी तरह गया, लेकिन वहां से बिस्तर-बोरिया बंधवा कर आना पड़ा। कुश्ती की राजनीति चलती रही। कोच कहता रहा कि साजिश है। एक चैनल ने पूछा कि कहीं उसी ने तो कुछ नहीं ले लिया? लाइन को आगे नहीं बढ़ाया गया, लेकिन जो ‘वाडा’ (विश्व डोप जांच एजंसी) ने कहा, वह सचमुच हमारे ‘नाडा’ (नेशनल डोप जांच एजंसी) की खटिया खड़ी करने वाला दिखा। वाडा ने नाडा की रपट पर साफ संदेह किया और अपने लोग ‘षड्यंत्रकारी’ का प्रमाण तक नहीं दे पाए! इस अंदरूनी दंगल का क्या इलाज है? और पहलवान योगेश्वर को तो पहले मिनट में ही मंगोलियाई पहलवान ने चित कर दिया था! लगा कि योगेश्वर मुकाबले में कहीं थे ही नहीं। मेडल-भूखे देश की आशाओं पर ऐसा सुपरफास्ट तुषारापात कब हुआ? प्राइम टाइम में विचार या तर्क नहीं बिकते। बिकती है तो एंकर की नाराजी। हर रात एक-दो घंटे की फाइट देख राष्ट्र चैन से सो पाता है, तब जाकर देश एंकर की अगली फटकार के लिए तैयार हो पाता है।
रियो मैराथन में भारत की जैशाजी नवासीवें नंबर पर जाकर बेहोश हुर्इं। तीन घंटे तक बेहोश रहीं। कारण: इंडियन आॅफिशियल रास्ते में पानी पिलाने को नहीं खड़े मिले। अगर ऐसे में जैशाजी को कुछ हो जाता तो क्या होता? अफसरों की इस लापरवाही पर एंकर इस कदर नाराज दिखा कि उसने न एथलीट ऐसोसिएशन के सचिव वालसन को बोलने तक न दिया, न दूसरे सदस्य को कुछ कहने दिया और आदत के मुताबिक बीच बहस में सचिव से इस्तीफा मांग लिया! चैनल में एक प्रसन्न-सा सन्नाटा छा गया। सचिव भी जानता था कि क्लाइमेक्स के लिए यह एंकर इस्तीफा मांगता ही है। सो, वह भी अपना ‘अरण्यरोदन’ करता रहा! खबरदार, जो पाक का नाम लिया! खबरदार, जो वहां के लोगों को अपने जैसा कहा! सावधान! देशद्रोह के केस में नप जाओगे! रम्याजी की कहानी से कुछ ऐसा ही लगा! रम्याजी एक तो एक्टर, दूसरे कांग्रेस की एक्स एमपी! ‘पाक के लोग अच्छे हैं’ कह कर बड़ी न्यूजमेकर बन गर्इं और बीच बहस में आ गर्इं! उनके पूरक रहे ‘देशद्रोह’ का केस करने के लिए तैयार बैठे लोग। वे भी खबर में आ गए।
एक सनसनीखेज वाक्य बोल कर और प्रतिक्रिया में एफआइआर करके न्यूज से लेकर डिबेटों में छा जाने का यह नुस्खा अब खूब बिकने लगा है। आप पाक का नाम लें और आप पर केस हुआ। एक दिन कुछ बक देंगे, उधर आपके विरोधी आपसे माफी मांगने को कहेंगे। आप अड़ेंगे कि मैं माफी नहीं मांगता! कर लो क्या कर लोगे! यह खेल चलता रहेगा! खबरों में बने रहने का यह नुस्खा आजकल खूब आजमाया जाता है।
संघ पर मिथ्यारोप लगाने को लेकर एक व्यक्ति की दायर याचिका के संदर्भ में बड़ी अदालत की व्यवस्था एक बड़ी खबर बनी। राहुल से कहा गया कि वे माफी मांगें या केस फेस करें! राहुल भैया ठहरे राहुल! कह दिए कि विवादित टिप्पणी संघ को लेकर नहीं थी, व्यक्तियों को लेकर थी! वे माफी नहीं मांगेंगे। अखाड़ा खुल गया। भाजपा के प्रवक्ता इतिहास के बारे में राहुल के अल्पज्ञान पर तरस खाते और कहते रहे कि या तो माफी मांगें या केस फेस करें! राहुल की ओर से कांग्रेस मीडिया प्रकोष्ठ के सुरजेवाला बोले कि राहुल का इतिहास-ज्ञान पक्का है! कश्मीर अब एक दैनिक खबर है, लेकिन हम चैनलों में एक कश्मीर नहीं, कई कश्मीर देखते हैं। एक चैनल घाटी के घावों को दिखाता रहता है, दूसरा अंगरेजी चैनल सैनिकों के घावों को दिखाता रहता है। एक पत्थर मारने वालों को दिखाता है, तो दूसरा अस्पताल में घायल लोगों से बात करता रहता है। तीसरा पाकिस्तान के रिटायर्ड जनरलों को अपने जनरलों से जली-कटी सुनवाता रहता है। जब तक घावों का यह कंपटीशन जारी रहेगा तब तक घाव नजर आते रहेंगे।
कश्मीर को लेकर एक लाइन नहीं दिखती। एक मिनट नरम लाइन, तो दूसरे मिनट गरम लाइन! जम्मू में तिरंगा यात्रा में वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना कि पत्थर मारने वाले सत्याग्रही नहीं हैं! उसी दिन जेके की सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा कि पत्थर मारने वालों को आगे करके कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करते हैं। ज्यादातर कश्मीरी लोग अमन चाहते हैं। इसी क्रम में राजनाथजी की दो दिवसीय कश्मीर की दूसरी यात्रा! इस बार राजनाथजी ज्यादा मुसकुराते नहीं दिखे। प्रेस से बातचीत में एक पत्रकार के सवाल पर सीएम महबूबा मुफ्ती उखड़ती दिखीं! कश्मीर में दो मोर्चे दिखते रहे। एक की बात मानो, तो दूसरा नाराज। दूसरे की मानी तो पहला नाराज! कश्मीर की किस्मत में एक ओर पाकिस्तान और पत्थर हैं, तो दूसरी ओर प्रशासन और पैलेटगनें हैं सड़कों पर कर्फ्यू है। पत्थर मारने वालों से डर कर पीछे हटते सुरक्षाबलों की लाइव तस्वीरें टीवी दर्शकों पर अच्छा असर पैदा नहीं करतीं सरजी!